RANCHI: अलर्ट क्या आपके घर के दरवाजे पर कोई दस्तक दे रहा है, वो आपसे रद्दी कागजों व अखबारों को दान में मांग रहा है। उन कागजों से गरीब व अशिक्षित महिलाओं व युवतियों के कल्याण का प्रलोभन दे रहा हैतो ठहर जाइए क्योंकि राजधानी में ठोंगे के नाम पर ठगी का गोरखधंधा खूब फल-फूल रहा है। महिला उद्यमियों के लिए काम व राहत का वास्ता देकर लोगों से मुफ्त में रद्दी कागज व अखबार बटोरे जा रहे हैं और फिर उनसे कागज के थैले और ठोंगे बनाकर करोड़ों का धंधा किया जा रहा है। एक तरफ मुफ्त में लाखों रुपए का रद्दी कागज मिल जा रहा है, दूसरी तरफ उसे मनमाने दाम में बेचकर करोड़ों की कमाई की जा रही है। इसमें सबसे गंभीर बात यह है कि जिन महिला उद्यमियों से ये थैले बनवाए जा रहे हैं, उन्हें भी न तो रुपए दिए जा रहे हैं न ही वो लोग थैलों को बेच सकती हैं। उनसे कहा जा रहा है कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए यह सारा थैला मुफ्त में बांटा जा रहा है, जबकि हकीकत यह है कि सारा धंधा आज करोड़ों की कमाई का जरिया बन चुका है।
बेरोजगार युवकों का शोषण
इस काम के लिए बेरोजगार युवकों को निशाना बनाया जा रहा है। युवकों को रोजगार और कमिशन का लालच दिया जा रहा है। वे लोग घर-घर घूमकर कागज जमा कर रहे हैं और उसे धंधेबाजों तक पहुंचा रहे हैं।
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तीन पक्षों से ठगी का अनोखा गोरखधंधा
एक साथ तीन पक्षों के साथ ठगी करने का यह अनोखा गोरखधंधा काफी फल-फूल रहा है।
पहला पक्ष: लोगों से कहा जा रहा है कि इस रद्दी कागज व अखबार के उत्पाद बनाकर बाजार में बेचे जाएंगे, जिनसे महिलाओं को रोजगार व रुपए मिलेंगे। दान के नाम पर लाखों के रद्दी कागज व अखबार लिये जाते हैं, जिसकी कोई पावती या रशीद नहीं दी जाती। हर व्यक्ति सोचता है कि रद्दी कागज का क्या मोल है या थोड़े बहुत ही रुपए मिलेंगे। इसलिए लोग बिना छानबीन के आराम से कागज दे देते हैं।
दूसरा पक्ष: महिला उद्यमियों को कहा जा रहा कि ये थैले पर्यावरण की सुरक्षा के लिए मुफ्त में बांटे जाएंगे। इसलिए या तो मुफ्त में उनसे सेवा ली जा रही है या कहीं-कहीं बहुत ही कम शुल्क देकर उनसे काम कराया जा रहा है। इसके बाद उनके बनाए थैले बाजारों में बेचे जा रहे हैं
तीसरा पक्ष: आम जनता से इन मुफ्त में मिलने वाले कागज के थैलों के लिए लाखों-करोड़ों की वसूली की जा रही है। व्यवसायियों को पॉलीथिन बैन की धमकी भी दी जा रही है और ये थैले बेचे जा रहे हैं।
केस-1
बांटने के नाम पर फ्री में बनवाया पेपर बैग
मैं रातू की जामुनटोली में रहती हूं। मेरा नाम बसंती उरांव है। पिता का नाम रोपणा उरांव है। एक संस्था द्वारा खूब सारा कागज व रद्दी अखबार गांव की कुछ महिलाओं को दिया गया। हमसे कहा गया कि कागज का झोला बनाकर गांव और आसपास बांटा जाएगा, जिससे पॉलीथिन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। झोला बनाने की ट्रेनिंग भी दी गई, जब झोला बन गया तो बड़ी गाड़ी में सबको लेकर चले गए।
केस 2
ठोंगा बनवाकर ले गए पर नहीं दिए पैसे
मेरा नाम हीरा टोप्पो है मैं हटिया के हेसाग में रहती हूं। हमलोगों को कहा गया कि सरकारी योजना है कि पॉलीथिन बंद होने पर कागज का ठोंगा बनाना है, जिसके लिए बहुत ही कम रुपए मिलेंगे, लेकिन काम लगातार मिलेगा। हमलोग तैयार हो गये दो बार कुछ कुछ रुपए भी दिए गए, लेकिन फिर सारा माल लेकर वे लोग चले गए और पैसा भी नहीं दिया।