RANCHI : झारखंड में नन बैंकिंग चिटफंड कंपनियों ने लोगों को अपने जाल में फंसाकर करीब 5 हजार करोड़ रुपए की ठगी की है। दो साल पहले इन कंपनियों के खिलाफ जांच का आदेश मिलने के बावजूद आज तक सीबीआई ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की है, जिससे निवेशकों के पैसे वापस मिलने की उम्मीद जगे। इतना ही नहीं, जालसाजी के इस बड़े मामले में इंटर स्टेट को-ऑर्डिनेशन का लेवल भी 'जीरो' ही है। यही वजह है कि निवेशकों का पैसा हड़पने वाली कंपनियों के दफ्तर तो बंद हो चुके हैं, लेकिन उनके मालिकों की आरामतलब जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है।

कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति

चिटफंड कंपनियों के खिलाफ सीबीआई पिछले दो साल में चार कदम भी आगे बढ़ी हो, इसके प्रमाण नहीं मिलते। जून 2015 में सीबीआई ने कोलकाता वियर इंडस्ट्रीज लिमिटेड एवं वारिस ग्रुप आफ कंपनीज पर प्राथमिकी दर्ज की थी। इसके बाद दोनों कंपनियों के दफ्तर बंद हो गए। कोलकाता वियर हाउस का दफ्तर रांची के आत्माराम भवन के दूसरे तल्ले में है। सीबीआई ने आज तक इस दफ्तर को सील नहीं किया है। इस ऑफिस के भीतर अब भी निवेशकों से लिये गये पैसों के हिसाब से जुड़े सारे दस्तावेज मौजूद हैं। इन्हें जब्त नहीं किया गया है। जांच में यह एक अहम सुबूत साबित हो सकते हैं। दूसरी ओर वारिस ग्रुप ऑफ कंपनीज का ऑफिस रामगढ़ स्थित वारिस भवन में है। इस भवन को सीबीआई ने सील तो किया, लेकिन आज भी वहां तीन दुकानें चल रही हैं। निवेशक आरोप लगाते हैं कि इस तरह की कार्रवाई केवल खानापूर्ति ही है।

हाई कोर्ट ने मांगा जवाब, पर मिला नहीं

11 मई 2015 को झारखंड हाई कार्ट में चिटफंड कंपनियों के खिलाफ दायर एक पीआई्रएल की सुनवाई के द्वौरान 28 चिट फिंड कम्पनीयों पर सीबीआई जांच का ऑर्डर पास हुआ था। दोबारा जब 20 जुलाई 2015 को हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई, तो अदालत ने राज्य सरकार से जवाब मांगा कि आखिर गरीबों का पैसा कैसे वापस होगा? इस बात का जवाब आज तक राज्य सरकार ने नहीं दिया है।

किस कंपनी ने कितना किया गबन

1. कोलकाता वियर हाउस 300 करोड़

2. वारिस ग्रुप ऑफ कंपनीज 150 करोड़

3. साईं प्रसाद ग्रुप ऑफ कंपनीज 124 करोड़

4. त्रिभुवन एग्रो प्रोजेक्ट लिमिटेड 50 करोड़

5. ग्रीन रे इंटरनेशनल कंपनी 5 करोड़

6. रियल वीजन इंटरनेशनल कंपनी 15 करोड़

7. विनायका होम्स एंड रियल एस्टेट 50 लाख

8. फैलकन इंडिया इंडस्ट्रीज 2.67 करोड़

9. आईकोर इंडिया लिमिटेड 30 करोड़

10. वियर्ड इंडस्ट्रीज लिमिटेड 2 करोड़

11. मल्टीनेशनल इंडस्ट्रीज लिमिटेड 70 करोड़

12. डॉलफिन ग्रुप ऑफ कंपनीज 100 करोड़

13. प्रिज्म इन्फ्राकॉन लिमिटेड 15 करोड़

14. आईनोवा ग्रुप ऑफ कंपनीज लिमिटेड 40 करोड़

15. मिलन एंड मिलन कंपनीज 35 करोड़

इन स्थानों के निवेशक ठगे गए

रांची, खूंटी, तोरपा, बसिया, सिमडेगा, गुमला, रामगढ, हजारीबाग, बरही, कोडरमा, चतरा, डालटनगंज, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, बोकारो, धनबाद, अदित्यपुर, गम्हरीया, कांडरा, नोवामुंडी।

टाइमलाइन : कब-कब क्या हुआ

- 11 मई 2015 को हाई कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। 28 चिटफंड कंपनियों के खिलाफ जांच का आदेश।

- 26 मई 2015 को आरबीआइ गवर्नर ने चिटफंड कंपनियों के मामले में सयुक्त कार्रवाई करने का फैसला किया।

- 31 जून 2015 को कोलकाता वीयर इंडस्ट्रीज लिमिटेड एवं वारिस ग्रुप के खिलाफ सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की।

- 20 जुलाई 2015 को झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा।

- 4 अगस्त 2015 को मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सभी जिलों के डीसी को जालसाज कंपनियों की संपत्ति नीलाम करने का अधिकार दिया।

- 26 अक्तूबर 2015 को रांची के डेली मार्केट थाने में कोलकाता वीयर इंडस्ट्रीज लिमिटेड एवं वारिस ग्रुप के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई।

- 12 मई 2016 को मुख्य सचिव ने आरबीआई एवं सेबी के अफसरों के साथ बैठक कर चिटफंड कंपनियों पर शिकंजा कसने एवं ठोस कारवाई करने का फैसला किया।

- 21 सितंबर 2016 को कोलकाता वीयर इंडस्ट्रीज लिमिटेड एवं वारिस ग्रुप के खिलाफ ईडी ने एफआईआर किया।