हाईकोर्ट के मूल पद पर भेजने के आदेश के बाद इविवि प्रशासन ने खेला खेल

कैम्पस में लिखी जा रही है वित्तीय अनियमितता की नित नई कहानी

ALLAHABAD: इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद इविवि के सहायक कुलसचिव (असिस्टेंट रजिस्ट्रार) डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी को भले ही पदमुक्त कर दिया गया। लेकिन नये आदेश के तहत उसे सहायक कुलसचिव की जगह सेक्शन आफिसर का पदनाम (समान वेतनमान) दे दिया गया है। पिछले भुगतान भी कर दिये गए हैं। हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार उन्हें मूल पद पर भेजा जाना था। आदेश बाहर आने के बाद मामला कैम्पस में चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ कर्मचारियों में इसे लेकर काफी रोष दिख रहा है। रजिस्ट्रार प्रो। एनके शुक्ला द्वारा 30 नवंबर को जारी कार्यालय आदेश में कहा गया है कि सहायक कुलसचिव डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी (याचिका संख्या 39606/ 96) का पुनर्नामित (रीडिजिग्नेटेड) पदनाम अब सेक्शन आफिसर (वेतनमान रु। 6500-10500) कर दिया गया है।

पहले रोक, फिर दे दिया भुगतान

रजिस्ट्रार का यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मई 2016 को जारी आदेश के बाद आया है। कोर्ट ने सहायक कुलसचिव के पद पर डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी की नियुक्ति को अवैध ठहराया था और पूर्व के स्थगनादेश को निरस्त कर दिया था। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति शमशेर बहादुर सिंह की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी की याचिका में हस्तक्षेप करने का कोई आधार पूरी पत्रावली के अवलोकन से नहीं मिलता। ऐसे में याचिका को निरस्त किया जाता है। यह भी कहा गया कि यदि डॉ। त्रिपाठी को इस याचिका से कोई अंतरिम राहत मिली हो तो उसे भी खारिज किया जाता है। उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के 17 मई 2016 को जारी आदेश के बाद भी विश्वविद्यालय ने जुलाई 2016 तक डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी को वेतन दिया और बाद में उक्त आदेश के अनुपालन में वित्त अधिकारी ने अगस्त 2016 से उनके वेतन भुगतान पर रोक लगा दी। इसके लगभग चार महीने के बाद कुलसचिव (रजिस्ट्रार) ने फिर से डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी के वेतन भुगतान का आदेश दे दिया था।

मंत्रालय को भी भेजी है सूचना

हैरत वाली बात है कि इविवि प्रशासन जहां एक ओर डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी को सेक्शन आफिसर का पदनाम व वेतनमान दे रहा है, वहीं दूसरी ओर विवि प्रशासन ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को लिखित तौर पर अवगत कराया है कि डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी का पदनाम 01 सितंबर 2016 से रिसर्च असिस्टेंट कर दिया गया है (पत्र सं। 05/आर/ 689/ 2016)। इविवि के मनोविज्ञान विभाग (जहां डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी के रिसर्च असिस्टेंट पद पर नियुक्ति की बात कही जा रही है) में डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी को विभाग में रिसर्च असिस्टेंट के पद पर नियुक्त किये जाने की बात कही गयी है। जबकि, मनोविज्ञान विभाग में रिसर्च असिस्टेंट का कोई पद ही नहीं है।

करीब 20 साल तक जमे रहे

वर्ष 1994 में मृतक आश्रित कोटे के तहत डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी की नियुक्ति असिस्टेंट रजिस्ट्रार के पद पर की गयी। इनकी नियुक्ति को यह कहकर चैलेंज किया गया कि असिस्टेंट रजिस्ट्रार पद को मृतक आश्रित कोटे से नहीं भरा जा सकता। स्टेट गवर्नमेंट ने 1996 में कहा था कि असिस्टेंट रजिस्ट्रार का पद यूपी लोक सेवा आयोग के तहत आता है। उक्त पद पर मृतक आश्रित कोटे के तहत नियुक्ति नहीं दी जा सकती। गवर्नमेंट के डायरेक्शन पर इविवि के तत्कालीन कुलपति प्रो। एससी श्रीवास्तव ने डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी की नियुक्ति को रद कर दिया था। कहा गया कि मृतक आश्रित कोटे के तहत इन्हें मनोविज्ञान विभाग में रिसर्च असिस्टेंट (शोध सहायक) का पद दिया जाता है। उक्त आदेश के खिलाफ डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी हाईकोर्ट चले गये थे और वहां से मिले स्थगनादेश के बाद लगभग बीस साल से असिस्टेंट रजिस्ट्रार के पद पर जमे रहे।

मेरे संज्ञान में मामला आया है। इसे लीगल सेल में भी भेजा गया था। तत्काल मैं कुछ नहीं कह सकता। लेकिन लीगल सेल से पूछने के बाद फ्राईडे को बता पाऊंगा ऐसा क्यों और कैसे हुआ ?

प्रो। योगेश्वर तिवारी, पीआरओ, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

कैसा-कैसा खेल

1994 में मृतक आश्रित कोटे के तहत डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी को असिस्टेंट रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्त किया गया

स्टेट गवर्नमेंट ने 1996 में कहा कि असिस्टेंट रजिस्ट्रार का पद यूपी लोक सेवा आयोग के तहत आता है। इस पद पर मृतक आश्रित कोटे के तहत नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

गवर्नमेंट के डायरेक्शन पर इविवि के तत्कालीन कुलपति प्रो। एससी श्रीवास्तव ने डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी की नियुक्ति को रद कर दिया।

मृतक आश्रित कोटे से त्रिपाठी को मनोविज्ञान विभाग में रिसर्च असिस्टेंट (शोध सहायक) का पद दिया गया। आदेश के खिलाफ डॉ। त्रिपाठी हाईकोर्ट से स्टे ले आए

स्टे के आधार पर वे लगभग बीस साल तक असिस्टेंट रजिस्ट्रार के पद पर जमे रहे।

हाईकोर्ट ने बीते 17 मई 2016 को मामले में फैसला दिया। फैसले में सहायक कुलसचिव के पद पर डॉ। राजेन्द्र त्रिपाठी की नियुक्ति को अवैध ठहराया और मूल पद पर भेजने का आदेश दिया।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय को दी गई जानकारी के अनुसार 01 सितंबर 2016 से डॉ। त्रिपाठी का पद रिसर्च असिस्टेंट कर दिया गया है।

रजिस्ट्रार प्रो। एनके शुक्ला द्वारा 30 नवंबर को जारी कार्यालय आदेश के अनुसार डॉ। त्रिपाठी का पुनर्नामित (रीडिजिग्नेटेड) पदनाम सेक्शन आफिसर कर दिया गया है।