RANCHI : निजी स्कूल जहां बच्चों से फीस के नाम पर मोटी वसूल रहे हैं, वहीं किताबों के नाम पर भी मोटा कमीशन डकार रहे हैं। साथ ही किताबें इतनी महंगी हैं कि खरीदने में अभिभावकों के पसीने छूट रहे हैं। इस बार किताबें 25 परसेंट तक महंगी हो चुकी हैं। राजधानी के कई नामी-गिरामी स्कूलों में जेट के आदेश को ताक पर रखकर यह धंधा चल रहा है। दरअसल इन स्कूलों की किताबें किसी एक खास दुकान पर उपलब्ध हैं, जिससे स्कूल मोटा कमीशन ले रहा है, लेकिन इसपर किसी का नियंत्रण नहीं है।

बदल जाती हैं बुक्स

ज्यादातर स्कूल हर साल किताबें बदल देते हैं। पूरी किताबें नहीं भी बदलतीं, तो कुछ चैप्टर ही बदल देते हैं, ताकि बच्चे पुरानी किताबों का उपयोग नहीं कर सकें। ऐसे में अभिभावकों को मजबूरी में नई किताबें खरीदनी पड़ रही है। कुछ वर्ष पहले तक सीधे प्रकाशक से पैसा लिया जाता था, चाहे किताबें कहीं बिके, लेकिन अब सिस्टम बदल गया है। अब प्रकाशक और बुक डिपो दोनों से स्कूल संचालक मोटी रकम ले रहे हैं, जिसका सीधा असर अभिभावकों की जेबों पर पड़ रहा है।

थमा देते हैं पर्ची

स्कूल मैनेजमेंट और बुक पब्लिशर्स की मिलीभगत से किताब-कॉपियों में कमीशन का कारोबार फल-फूल रहा है। ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों द्वारा रिजल्ट के ही दिन किताबों की सूची उपलब्ध करा देते हैं। इस सूची के साथ एक पर्ची भी अटैच होती है, जिसमें उस दुकान का नाम लिखा होता है, जहां ये किताबें मिलेंगी। इन दुकानों में पहले से ही अलग-अलग कक्षाओं के लिए किताब-कॉपी व कवर का एक बंडल तैयार रहता है। वे अभिभावक को बिना किसी मोल-भाव के किताब का बंडल थमा दे रहे हैं।

वसूल रहे हैं मनमानी कीमत

दरअसल किताबों की लिस्ट पर ही प्रकाशित होते हैं। इन किताबों के पैकेटों की मनमानी कीमत भी निर्धारित कर जाती है। हाल यह है कि पैकेट से स्टेशनरी को निकाल कर देख भी नहीं सकते हैं। इतना ही नहीं, कुछ दुकानदार किताबें खरीद की लिस्ट भी नहीं देते हैं। रसीद के बदले सादे कागज पर किताब की कीमत लिख कर दे देते हैं.इस तरह ये टैक्स की भी चोरी करते हैं।

एनसीईआरटी की किताबें इग्नोर

प्राइवेट स्कूल जानबूझ कर एनसीइआरटी की सस्ती किताबों की जगह प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों को कोर्स में शामिल करते हैं। जिस क्लास के एनसीइआरटी किताबों के सेट का मूल्य 250 से 300 रुपए की बीच होता है, उसी कक्षा की प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों के सेट का मूल्य चार हजार से पांच हजार के बीच होता है। इस तरह अभिभावकों की जेब पर किताबों के नाम पर डाका डाला जा रहा है।

50 से 60 करोड़ का कारोबार

राजधानी में करीब 100 मान्यता प्राप्त सीबीएसई व आइसीएसई स्कूल हैं। इन स्कूलों में तकरीबन दो लाख स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं। औसतन एक बच्चे के लिए किताब की कीमत ढाई से तीन हजार रुपए है। ऐसे में किताब-कॉपी का 50 से 60 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा है। इस मद में स्कूलों को 25 से 30 फीसद तक कमीशन दिया जा रहा है।

कैश हो रहा कारोबार

सरकार एक तरह डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा दे रही है तो दूसरी तरह स्कूलों द्वारा तय दुकानों में किताब-कॉपियों का कारोबार कैश हो रहा है। ये दुकानदार किताब-कॉपी के एवज में अभिभावकों से न तो चेक ले रहे हैं और न ही एटीएम अथवा पेटीएम के मार्फत पेमेंट लिया जा रहा है। सेंट थॉमस स्कूल की किताब सिर्फ धुर्वा के स्टूडेंट्स जेनरल स्टोर में उपलब्ध है। यहां पर डेबिट, क्रेडिट, एटीएम, पेटीएम और चेक स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं। किताबों का धंधा पूरी तरह कैश में चल रहा है।