- कई हत्याओं के बाद भी नहीं थमी गैंगवार

- बृजेश सिंह गिरोह पर भारी पड़ रहा मुख्तार गैंग

LUCKNOW: मुख्तार और बृजेश के बीच गैंगवार करीब तीस साल पुरानी है। 27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में रविन्द्र सिंह की हत्या हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने की थी। रविन्द्र के पुत्र बृजेश ने पिता के हत्या का बदला लेने के लिए एक साल तक इंतजार किया और 27 मई 1985 को उसने हरिहर सिंह की हत्या कर दी। नौ अप्रैल 1986 को सिकरौरा गांव में उसने एक बार फिर साथियों के साथ पांच लोगों को गोलियों से भून दिया। इसके बाद पहली बार वह पुलिस के हत्थे चढ़ा। बाद में उसकी मुलाकात गाजीपुर में त्रिभुवन सिंह से हुई। दोनों ने मिलकर यूपी में शराब, रेशम व कोयला में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।

साधू सिंह की हुई हत्या

त्रिभुवन भी अपने पिता के हत्यारे साधू सिंह से बदला लेना चाहता था। अक्टूबर 1988 में वाराणसी पुलिस लाइन में तैनात त्रिभुवन सिंह के भाई हेड कांस्टेबल राजेंद्र सिंह की साधू सिंह ने हत्या कर दी। इस मामले में कैंट थाने में साधू सिंह, मुख्तार अंसारी के साथ गाजीपुर के ही भीम सिंह पर मुकदमा दर्ज हुआ। 1990 में त्रिभुवन के भाई के हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश और त्रिभुवन ने पुलिस के भेष में गाजीपुर अस्पताल में इलाज करा रहे साधू सिंह को भून दिया। इसके बाद साधू सिंह गैंग की कमान मुख्तार के हाथों में आ गयी। वहीं बृजेश मुंबई भाग गया और उसने वहां जेजे अस्पताल में घुसकर गवली गिरोह के शार्प शूटर समेत चार पुलिस वालों की हत्या कर दी। लंबे समय के बाद बृजेश को 2008 में उड़ीसा से दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया।

कृष्णानंद राय हत्याकांड

बनारस के मशहूर व्यापारी रुंगटा के अपहरण के बाद मुख्तार अंसारी का नाम यूपी के बड़े माफियाओं में शुमार किया जाने लगा। इसी बीच मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी को कृष्णानंद राय ने चुनाव में हरा दिया और बृजेश से नाता जोड़ लिया। कृष्णानंद का साथ मिलने के बाद बृजेश के वर्चस्व में बढ़ोतरी होने लगी और मुख्तार अंसारी गिरोह कमजोर पड़ गया। बृजेश ने मुख्तार को ठिकाने लगाने के लिए 2001 में गाजीपुर के ऊसर चट्टी के पास हमला किया लेकिन मुख्तार बच गया। इस हमले के बाद बृजेश मुंबई भाग गया। वहीं मुख्तार ने अपने शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी और अतिकुर्रहमान उर्फ बाबू की मदद से वर्ष 2005 में कृष्णानद राय और उनके पांच साथियों की हत्या कर दी। इस हत्याकांड में पहली बार पूर्वाचल में एके-47 का इस्तेमाल हुआ। वर्ष 2005 में मऊ दंगे के बाद मुख्तार को भी जेल जाना पड़ा, जिसके बाद उसका पूरा कारोबार भीम सिंह संभालने लगता है। वर्तमान में मुख्तार अंसारी लखनऊ जेल में है।

कांट्रैक्ट किलर से माफिया बना मुन्ना बजरंगी

मुन्ना बजरंगी शुरुआत में मामूली कांट्रैक्ट किलर था। मुख्तार का साथ मिलने के बाद उसका नाम पूर्वाचल के माफियाओं में शुमार हो गया। प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी का नाम सबसे पहले 1982 में गाजीपुर के सुरेरी गांव में मारपीट की घटना में आया। 1984 में गाजीपुर के रामपुर थाने में मुन्ना के खिलाफ हत्या और डकैती का मुकदमा दर्ज हुआ। 1993 में मुन्ना ने जौनपुर के लाइन बाजार थाना के कचहरी रोड पर भाजपा नेता राम चन्द्र सिंह व उनके गनर अब्दुल्लाह समेत तीन लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद मुन्ना ने वाराणसी में कई वारदातों को अंजाम दिया। 1995 में उसने वाराणसी के कैंट इलाके में छात्र नेता राम प्रकाश शुक्ल की हत्या कर दी। 1996 में रामपुर थाना के जमालपुर के पास एके-47 से ब्लाक प्रमुख कैलाश दुबे पंचायत सदस्य राजकुमार सिंह समेत तीन लोगों को मौत की नींद सुला दिया। 2002 में उसने वाराणसी के चेतगंज में सराफा व्यापारी की गोली मारकर हत्या कर दी। मुन्ना ने यूपी के अलावा दिल्ली में भी कई घटनाओं को अंजाम दिया। वर्ष 2009 में मुन्ना को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मुंबई से गिरफ्तार किया। फिलहाल वह झांसी जेल में है। उस पर चालीस से ज्यादा मुकदमे दर्ज है।