गायत्री देवी का बचपन

गायत्री देवी जयपुर राजघराने की राजमाता थी। वोग मैग्जीन ने भी उन्हें एक बार अपनी 10 सबसे खूबसूरत महिलाओं की सूची में शामिल किया था। गायत्री देवी बचपन से ही प्रतिभावान थीं। इनका बचपन का नाम 'आयशा' था। गायत्री देवी कूच बिहार की राजकुमारी और जयपुर की महारानी थी। इनके पिता का नाम 'महाराजा जीतेंद्र नारायण' था जो कूच बिहार के राजा थे। इनकी माता का नाम 'इंदिरा राजे' था। राजकुमारी का बचपन बेहद ही ठाठ-बाट में बीता। बचपन से ही महारानी गायत्री देवी प्रतिभावान बालिका थी, जिनके हर शौक लड़कों की तरह थे।

महारानी गायत्री देवी : वोग मैगजीन ने माना था दुनिया की सबसे सुंदर लेडी

21 साल में की लव मैरिज

21 साल की उम्र में गायत्री देवी का विवाह सवाई मानसिंह द्वितीय के साथ हो गया था। बताते हैं गायत्री देवी की ख़ूबसूरती, बहादुरी व उनकी अदाओं के मुरीद होकर मानसिंह अपना दिल दे बैठे थे। वे जब-जब भी लंदन जाते, तब-तब अपनी इस प्रेमिका से मुलाकात करते। इसका कारण दोनों की विचारधाराओं का मेल भी हो सकता है, महाराज और महारानी दोनों ही घुड़सवारी व पोलो के शौकीन थे। कई बार तो उनकी मुलाकात खेल के मैदान में होती थी। जब मुलाकातें बढ़ने लगी तो धीरे-धीरे दोनों के बीच प्यार भी बढ़ने लगा और यह प्यार इस हद तक बढ़ा कि सवाई मानसिंह द्वितीय ने गायत्री देवी से विवाह कर लिया। 9 मई 1940 को जयपुर के अंतिम महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने गायत्री देवी से विवाह कर उन्हें अपनी तीसरी धर्मपत्नी का दर्जा दिया। उनके पुत्र प्रिंस जगत सिंह का जन्म 17 अक्टूबर 1949 में हुआ था।

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खुलेपन की समर्थक थीं गायत्री देवी

अब तक रंग-बिरंगी पेंटिंगों व फ़िल्मों में दिखाई देने वाली ख़ूबसूरत राजकुमारियों की तरह गायत्री देवी भी खूबसूरती की मिसाल थी। वह खुलेपन की समर्थक थीं। उनका ड्रेसिंग सेंस कमाल का था। गायत्री देवी ने पर्दा प्रथा को कभी तवज्जो नहीं दी। वह बेलबॉटम पैंट भी पहनती थीं, तो साड़ी में भी उनको कोई फेल नहीं कर सकता था।

भारत में पहली मर्सडीज लाने वाली

महारानी को रॉयल गाड़ियों का भी शौक था, मर्सडीज बेंज डब्ल्यू 126 को पहली बार भारत लाने का श्रेय भी गायत्री देवी को ही दिया जाता है। उनके पास रॉल्स रॉयस तो थी ही सही लेकिन वह एक पर्सनल एयरक्राफ्ट की भी मालकिन थीं।

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चुनाव लड़कर सांसद बनीं

राजमहलों में शानो-शौकत का जीवन बसर करने वाली महारानी गायत्री देवी से आमजन की पीड़ा कभी छुपी नहीं थी। लड़कों की तरह बहादुर व खुली विचारधारा की समर्थक गायत्री देवी ने तत्कालीन सक्रिय राजनीति में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सन् 1962 में गायत्री देवी स्वर्गीय राजगोपालाचार्य की पार्टी 'स्वतंत्र पार्टी' की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी। इसके बाद 1962, 1967 व 1971 के चुनावों में गायत्री देवी जयपुर संसदीय क्षेत्र से 'स्वतंत्र पार्टी' के टिकिट पर लोकसभा की सदस्य चुनी गईं।

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तिहाड़ जेल में बीते कुछ महीने

जनता के बीच महारानी गायत्री देवी का वर्चस्व इतना अधिक था कि सन् 1962 में जनता की प्रिय महारानी गायत्री देवी ने अपने प्रतिद्वंदी को लगभग साढ़े तीन लाख वोटों के अंतर से हराकर एक रिकॉर्ड कायम किया, जिसके कारण गायत्री देवी का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड' में शामिल किया गया। इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दिनों में 'कोफेपोसा एक्ट' के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर गायत्री देवी ने अपने जीवन के कुछ माह तिहाड़ जेल में बिताए थे। 90 वर्ष की आयु में 29 जुलाई 2009, जयपुर में गायत्री देवी का निधन हो गया।

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