- बिल्डिंग निर्माण में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम मस्ट कराने को लेकर गंभीर नहीं जीडीए

- गिरता जा रहा सिटी का वॉटर लेवल, शासन का आदेश भी नहीं मानते जिम्मेदार

GORAKHPUR: गर्मी में एक-एक बूंद पानी की किल्लत गोरखपुर की आम तस्वीर बनकर रह गई है। प्राकृतिक पानी को सुरक्षित न रख पाना इसकी बड़ी वजह है। सरकार द्वारा पूरे प्रदेश में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के बिना नक्शा न पास किए जाने के नियम की अनदेखी के चलते ही ये स्थिति पैदा हुई है। नियम के प्रति जिले के जिम्मेदारों की उदासीनता का हाल ये है कि यह पूरी योजना वर्षो से सरकारी फाइलों में ही दब कर रह गई। जबकि जीडीए के अधिकारियों का का कहना है कि वाटर लेवल ऊंचा होने के कारण शहर को इस नियम से मुक्त रखा गया था। वहीं, हकीकत ये है कि शहर में इस नियम की धड़ल्ले से धज्जियां उड़ाई जा रही हैं जिसके चलते बीते वर्षो में वाटर लेवल तेजी से नीचे गया है।

जीडीए की ढिलाई पब्लिक पर भारी

भूजल के लेवल को बनाए रखने के लिए सरकार ने सभी प्रमुख बिल्डिंग्स में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की योजना तैयार की थी। लेकिन इसका सही तरीके से पालन नहीं हो सका। शहर की बात की जाए तो यहां जीडीए ने वाटर लेवल ऊंचा होने का तर्क देते हुए इसे अनिवार्य ही नहीं किया है। जीडीए के इस ढीलेपन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर में वाटर हार्वेस्टिंग का एक मॉडल तक तैयार नहीं किया गया है। लेकिन पानी की समस्या का हाल यह है कि हर बार गर्मी के मौसम में पानी के लिए हाहाकार मचने लगता है।

वाटर लेवल में गिरावट, बढ़ा रही चिंता

भले ही जीडीए के अधिकारी शहर में वाटर लेवल के ऊंचा होने का तर्क देते हों लेकिन यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। क्योंकि यहां का वाटर लेवल दूसरे जिलों की अपेक्षा केवल औसत से बेहतर है। यहां भी लगभग हर साल वाटर लेवल में गिरावट हो रही है। दस साल पहले शहर व आसपास के एरिया में नलकूप लगाने पर 40 से 60 फीट पर ही पीने लायक पानी मिल जाता था। लेकिन यही पीने लायक पानी अब 100 से 120 फीट पर मिल पाता है। यदि समस्या का कोई समाधान नहीं खोजा गया तो आने वाले वर्षो में स्थिति और भी खराब हो सकती है।

दस साल में ये हो गई वाटर लेवल की स्थिति

2008 2018

20-25 फीट 28-30 फीट पर मिलता है पानी

40-60 फीट 100-120 फीट पर पीने योग्य पानी

120-200 फीट 400-500 मिनी ट्यूबवेल का लेवल

क्या है वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम या वर्षा जल संग्रहण वह विधि है जिसके तहत बरसात के पानी को छत पर इक्ट्ठा करके पाइप के जरिए उसे जमीन के अंदर सुरक्षित भेज दिया जाता है। जिससे जमीन के अंदर पानी के लेवल को बनाए रखा जा सकता है। इसके तहत पानी को पहले से साफ भी कर दिया जाता है।

बॉक्स

शहर में भूजल दोहन 69.5 प्रतिशत

भूजल के स्तर को बनाए रखने के लिए दोतरफा प्रयास की आवश्यकता है। एक तो बेवजह हो रहे पानी के नुकसान को कम करना होगा तो दूसरी ओर भूजल से जितना पानी का दोहन हो रहा है उतने ही रिचार्ज का प्रयास करना होगा। फिलहाल शहर में भूजल दोहन 69.5 प्रतिशत है जबकि वैज्ञानिकों के अनुसार 50 प्रतिशत भूजल का दोहन होने पर इसके रिचार्ज की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।

सीएम ने भी दिया था आदेश

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंत्रिमंडल की पांचवीं बैठक के बाद भी यह घोषणा की थी कि अब 200 वर्ग मीटर या अधिक क्षेत्रफल की बिल्डिंग बनाने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना जरूरी होगा। लेकिन फिर भी जीडीए ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

ऐसी जगहों पर है आवश्यक

- कम भूजल वाली जगहों पर

- दूषित भूजल वाले स्थल

- पर्वतीय स्थल

- प्रदूषित जल वाले स्थल

- कम जनसंख्या घनत्व वाले स्थल

- सूखा या बाढ़ प्रभावित स्थल

- अधिक खनिज या खारे पानी वाले स्थल

वर्जन

शहरी आबादी बढ़ने के कारण भूजल के रिचार्ज होने के लिए सतह की जमीन व पेड़ पौधे कम होते जा रहे हैं। जिससे भूजल में गिरावट हो रही है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग इस गिरावट को रोकने में मददगार हो सकता है।

- प्रो। गोविंद, एनवायर्मेटल एक्सपर्ट

शहर का वाटर लेवल ऊंचा है। इसी वजह से वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को बिल्डिंग्स का नक्शा पास करने के लिए अनिवार्य नहीं किया गया है।

- वैभव श्रीवास्तव, वीसी, जीडीए