ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि इस परिवार का तालुक्क किसी राजनीतिज्ञ से है या वो किसी ख़ास विचारधारा से संबंध रखता है. बल्कि इसलिए क्योंकि एक ही छत के नीचे रहने वाले इस परिवार में 115 मतदाता हैं - 65 पुरुष और 50 महिलाएँ.

राजधानी के लोहानीपुर इलाक़े में रहने वाले इस परिवार में कुल संख्या 150 सदस्य हैं जो एक ही घर में रहते हैं.

परिवार के लोग दावा करते हैं कि वे राय-मशवरे के बाद हर चुनाव में एक ही प्रत्याशी को मत देते हैं.

'वोट बैंक'

इनके ‘बड़े वोट बैंक’ का असर यह है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जहां एक ओर अमूमन हर दल के उम्मीदवार उनसे वोट मांगने आते हैं वहीं दूसरी ओर छोटी समस्याओं को दूर करने के लिए नगर निकाय के प्रतिनिधि ख़ुद इस परिवार के पास पहुंचते हैं.

पटना में गुरुवार को मतदाता लोकसभा प्रतिनिधि चुनने के लिए मत डाल रहे हैं.

चंदेल परिवार पटना साहिब लोकसभा के बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र का मतदाता है और पूरा परिवार एक नहीं बल्कि दो मतदान केंद्रों पर मत डालने जाता है.

आम चुनाव: एक घर,115 वोटर,उम्मीदवारों की क़तार

मतदान से एक दिन पहले बुधवार को लोहानीपुर मोहल्ले में चंदेल परिवार का मकान ढूंढने में ज़्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा.

अपने बड़े आकार के कारण जल्द ही हमें उस मकान तक पहुंचने का पता विस्तार से बता दिया गया जिसके बाहर ‘चंदेल निवास’ का एक छोटा सा बोर्ड लगा है.

लगभग साढ़े तीन कट्ठे में बने इस निवास के बीच एक गली छोड़ी गई है जिसके दोनों ओर चार मंजिला मकान खड़े हैं. इस मकान में चंदेल परिवार की चार पीढ़ियां एक साथ रहती हैं.

पढ़ाई के लिए आए पटना

परिचय के बाद मुझे चंदेल निवास के उस कमरे में ले जाया गया जिसमें परिवार के सबसे बुज़ुर्ग सदस्य चौरासी साल के परशुराम सिंह रहा करते हैं.

बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि सबसे पहले 1954 के आसपास वह वैशाली ज़िले के अपने गांव से पढ़ाई के सिलसिले में पटना आए थे. 1956 में उनका पटना आना तब सफल भी हो गया जब उन्हें पटना सिविल कोर्ट में किरानी की नौकरी मिल गई.

चंदेल परिवार मूलतः वैशाली ज़िले के राघोपुर प्रखंड के जुड़ावनपुर गांव का निवासी है. गांव से इस परिवार का रिश्ता अब भी पूरी तरह बना हुआ है. गांव की खेतीबाड़ी इस बड़े परिवार के गेहूं, दलहन जैसी खाद्य पदार्थों की ज़रुरतों को भी पूरा कर देती है.

पटना में आज चंदेल परिवार जहां बसा है वह ज़मीन उन्होंने 1973 में ख़रीदी थी और 1980 में वहां रहना शुरू किया था.

चूल्हे

लेकिन इन प्रारंभिक जानकारियों के साथ मैं यह जानने के लिए उत्सुक था कि यह परिवार किन मामलों में एक संयुक्त परिवार है? क्या सभी का भोजन भी एक साथ बनता है?

मेरी इस जिज्ञासा को शांत करते हुए परशुराम सिंह ने बताया कि इतने बड़े परिवार का खाना एक साथ बनाने में परेशानी आने लगी तो चूल्हे अलग कर दिए गए.

साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि गांव में खेतीबाड़ी एक साथ है, गांव और पटना शहर में अचल पैतृक संपत्ति भी संयुक्त रूप से है.

आम चुनाव: एक घर,115 वोटर,उम्मीदवारों की क़तार

चंदेल निवास में फ़िलहाल शहरी जीवनशैली और दूसरे कारणों से वर्तमान में चंदेल परिवार अलग-अलग चूल्हों पर खाना बनाता है.

सामूहिक निर्णय

कैसे तय करता है चंदेल परिवार अपनी पसंद का उम्मीदवार या दल?

इस सवाल के जवाब में परशुराम सिंह ने बताया कि सभी सदस्य आपस में बातचीत कर यह तय करते हैं. अंतिम फ़ैसले पर पहुंचने के पहले सबकी बात सुनी जाती है और ऐसा करते हुए हुए कभी कोई विवाद नहीं होता है.

वहीं परिवार के अरुण कुमार सिंह के अनुसार चंदेल परिवार इस बार विकास करने वाली साफ़ सुथरी सरकार चुनने के लिए मतदान करेगा.

अरुण बातचीत में इस बात पर चिंता भी जाहिर करना नहीं भूलते कि आज पढ़ाई बहुत मंहगी हो गई है और ऐसे में मतदान करते समय महंगी होती शिक्षा और रोज़गार के घटते अवसर का मुद्दा भी उनके मतों की दिशा तय करेगा.

पहले महिलाएं

परिवार की एक महिला सदस्य आभा सिंह ने बताया कि हर बार परिवार की महिलाएं ही पहले मत डालने जाती हैं. आभा के अनुसार मतदान के लिए उनकी तैयारी पूरी है और इस बार उनमें पहले से ज़्यादा उत्साह भी है.

"सभी सदस्य आपस में बात-चीत कर यह तय करते हैं. अंतिम फ़ैसले पर पहुंचने के पहले सबकी बात सुनी जाती है और ऐसा करते हुए हुए कभी कोई विवाद नहीं होता है."

-परशुराम सिंह, बुजुर्ग सदस्य, चंदेल परिवार

इस बार परिवार के आठ युवा पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे जिसमें छह युवतियां हैं और दो युवक.

पहली बार मत डालने को रोमांचित दिखाई दे रहीं गीतांजलि ने कहा कि वह निष्पक्ष ढ़ंग से काम करने वाली सरकार के लिए वोट डालना पसंद करेंगी.

साथ ही गीतांजलि ने पंचायतों और नगर निकाय चुनाव में महिलाओं को आरक्षण दिए जाने का समर्थन किया तो दूसरी ओर सरकारी नौकरियों में जाति के आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण से वह नाराज़ दिखीं.

निराशा

परिवार के बालिग हुए सदस्यों को मतदाता बनाने के साथ-साथ यह परिवार दूसरी बातों का भी ध्यान रखता है.

चंदेल परिवार एक ओर बहू के रूप में परिवार का हिस्सा बनने वाले नए सदस्यों का नाम स्थानीय मतदाता सूची में शामिल कराता है तो दूसरी ओर परिवार से विदा होने वाली बेटियों का नाम सूची से हटवाता भी है.

इस संबंध में परिवार के एक दूसरे बुज़ुर्ग सदस्य सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि कुछ दिनों पहले परिवार की चार नई बहुओं का नाम मतदाता सूची में शामिल कराने के लिए आवेदन दिया गया था.

लेकिन इस बार उनका नाम शामिल नहीं हो सका. सुरेंद्र के अनुसार इस कारण वह थोड़ा निराश भी हैं.

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