-बरेली बनारस एक्सप्रेस के कोच की अपर बर्थ में रोती हुए मिली बच्ची

-सूचना पर पहुंची पुलिस, चाइल्ड लाइन को सौंपा

>

BAREILLY: बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के लिए सरकार तमाम अवेयरनेस अभियान चला रही, लेकिन कुछ लोग बेटी से भेदभाव के अपने नजरिए को बदल नहीं पा रहे हैं। इसी मानसिकता के मां-बाप ने संडे को अपनी तीन माह की बेटी को बरेली जंक्शन पर बरेली-वाराणसी एक्सपे्रस ट्रेन में छोड़ दिया। खाली पड़ी ट्रेन में बच्ची के रोने की आवाज सुनकर यात्री अंदर गए तो, उन्हें अपर बर्थ पर कपड़े में लिपटी बच्ची रोते हुए मिली। इसके बाद पब्लिक ने बच्ची को पुलिस को सौंप दिया, जहां से उसे

चाइल्ड लाइन के सुपुर्द कर ि1दया गया।

एएचटीयू के एसआई ने दी सूचना

बरेली बनारस एक्सप्रेस की अपर बर्थ में बच्ची को रोते हुए जब एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग 'एएचटीयू' बरेली में तैनात एसआई अमर ने देखा तो उन्होंने बच्ची को गोद में उठा लिया और चाइल्ड लाइन को सूचना दी। सूचना पर चाइल्ड लाइन के रमनजीत सिंह मौके पर पहुंचे और चाइल्ड लाइन ऑफिस लेकर गए। बच्ची को शेल्टर होम में महिला की देखरेख में रखा गया है। ट्रेन में मासूम को रोते देख सभी मासूम के मां-बाप पर तंज कस रहे थे, कि ऐसी कौन सी मजबूरी थी, जो बच्ची को छोड़ गए।

मां ने बेच दिया था

विगत 16 मई को एक प्रभा (14) को उसकी मां ने ही एक व्यापारी के यहां घर पर झाडू पोछा करने के लिए किच्छा में बेच दिया था। जिससे वह वहां करीब पांच तक काम भी करती रही, व्यापारी के परिजनों द्वारा परेशान करने पर मासूम वहां से भाग निकली, और जीआरपी ने चाइल्ड लाइन को सौंप दिया।

लवारिस मिली मंदबुद्धि किशोरी

विगत 16 मई को एक मंदबुद्धि (12) किशोरी को बिथरी थाना पुलिस ने चाइल्ड लाइन को सौंपा था, लेकिन किशोरी अपने परिजनों का नाम और पता नहीं बता पा रही है। जिससे किशोरी चाइल्ड लाइन के पास रह रही है।

2016 में मिली थी दिव्यांग किशोरी

अप्रैल 2016 को एक दिव्यांग (12)किशोरी जीआरपी ने चाइल्ड लाइन को सौंपी गई। किशोरी न सुन पाती और न बोल पाती है, जिससे वह किशोरी अभी भी चाइल्ड लाइन के पास रह रही है।

---

सरकार के अवेयर करने के बाद भी पब्लिक का नजरिया अभी तक नहीं बदला है। लोगों को अपना नजरिया बदलना चाहिए। जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे तब तक लोगों को नजरिया नहीं बदला जा सकता है।

चाइल्ड लाइन काउंसलर

----------------------

बेटियां बेटों से कम नहीं होती हैं, अब समय बदल चुका है लेकिन हमारे समाज को भी अपने में बदलाव लाना चाहिए। लोगों को चाहिए कि वह बेटियां और बेटों में फर्क न समझे। मेरा मानना है कि आज की बेटी कल का ताज होती है।

रितु शाक्य वीमेन चाइल्ड वेलफेयर सोसाइटी प्रेसीडेंट

-----------------

रूरल और मिडिल क्लास के कुछ कम पढ़ लिखे लोग अभी भी लड़कियों को बोझ समझते हैं। क्योंकि लोग अभी भी लड़कों को परिवार का सहारा समझा जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है, लड़कियां कभी लड़कों से कम नहीं होती हैं, उन्हें भी बराबर का दर्जा देना चाहिए।

हेमा खन्ना साइकोलाजिस्ट