Washroom के लिये class छोड़कर hostel तक जाना पड़ता है

छेड़छाड़ पर बोलीं छात्रायें, हजारों comments सुनने को मिलते हैं

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: पीएम नरेन्द्र मोदी का पूरा जोर स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत पर है। वे गांव-गांव को शहर बना देने का दावा करते हैं। टीवी पर एक्ट्रेस विद्या बालन का एड भी आता है। जहां सोच वहां शौचालय। लेकिन यह बात हकीकत से कितने परे है। यह सेंट्रल यूनिवर्सिटी इलाहाबाद में लेडीज टॉयलेट की हालत से समझा जा सकता है। यहां नाम मात्र के लेडीज टॉयलेट हैं। वॉशरूम न होने से छात्रायें परेशान हैं। यह मुद्दा करेंट में कैम्पस में गर्माया हुआ है। इसे उठाया है फोरम फॉर कैम्पस डेमोक्रेसी से जुड़े छात्रों ने। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इस इश्यू पर छात्राओं से बात की तो उनका दर्द छलक उठा।

System भी कम दोषी नहीं

फोरम के एजेंडे में कई मांगें हैं। लेकिन दो मांगे ऐसी हैं, जिनका सरोकार सीधे तौर पर छात्राओं से है। फोरम ने कैम्पस में छात्राओं की सुरक्षा का मसला उठाया है। उनसे आये दिन होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं को लेकर जागरूकता का काम किया जा रहा है। फोरम से जुड़े छात्रों का सीधा सवाल है कि आखिर कैम्पस में कोई ऐसा कदम क्यों नहीं उठाया जाता जिससे शोहदों के बीच भय का वातावरण बने। छात्रायें छेड़छाड़ की घटनाओं के लिए शोहदों को तो जिम्मेदार मानती हैं, लेकिन इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार उन ऑफिसर्स को बताती हैं जो कैम्पस की सुरक्षा का ठेका लेने का दम भरते रहते हैं।

आर्ट फैकेल्टी में स्थित कैंटीन लफंगों का अड्डा बन गया है। कैम्पस में अकेले आना जाना बिल्कुल सेफ नहीं है। हजारों कमेंट्स सुनने को मिलते हैं।

नीती

कैम्पस में कोई रूल रेग्यूलेशन नहीं है। यहां पुराने तरीकों से आज भी सबकुछ चल रहा है। कोई कुछ भी बोल दे, उसपर कोई एक्शन नहीं होता। शिकायत पर भी नहीं।

विजय लक्ष्मी

शाम पांच बजे के बाद ग‌र्ल्स को इसलिये कैम्पस में नहीं जाने दिया जाता कि ब्वायज बद्तमीजी करने लगते हैं। ब्वायज के चलते ही ग‌र्ल्स सेफ नहीं हैं।

प्रीती वर्मा

उल्टे सीधे कमेंट्स सुनना अब हमारी आदत बन चुकी है। सब बहुत ही अजीब निगाहों से देखते हैं। कैम्पस में छेड़छाड़ पर रोक लगाने के लिये कुछ करना चाहिये।

ज्योत्सना

अगर हम वॉशरूम की बात करें तो शायद ही मुझे कभी ग‌र्ल्स वॉशरूम मिला हो। डिपार्टमेंट वाइज पर्याप्त संख्या में टॉयलेट होने चाहिये। लेकिन कोई भी ध्यान नहीं दे रहा।

रंजना सिंह

वॉशरूम सबकी जरूरत है। लेकिन वीसी प्रो। आरएल हांगलू जब से आये हैं, इस ओर ध्यान नहीं दिया है। जबकि पीएम मोदी हमेशा स्वच्छ भारत का नारा देते हैं।

संध्या सिंह

कोई सुविधा नहीं है यूनिवर्सिटी में। हमें तो पता ही नहीं है कि यूनिवर्सिटी में वॉशरूम है भी या नहीं। मुझे तो यह कहीं भी नहीं मिला। इसे हम सेंट्रल यूनिवर्सिटी कैसे कहें?

पूजा पटेल

मेरे साथ छेड़छाड़ तो नहीं हुई पर वॉशरूम न होने की दिक्कत कई बार महसूस की है। जरूरत पड़ने पर हॉस्टल में जाना पड़ता है। इससे क्लास में वापस आने में देर होती है।

आंचल

छात्रों की मांगें काफी हद तक सही हैं। मुझे तो नहीं लगता कि उनके एजेंडे में कोई भी ऐसी मांग है। जिसे एयू एडमिनिस्ट्रेशन को फॉलो नहीं करना चाहिये।

नन्दनी

छेड़छाड़ पर रोक लगे। इसके लिये लोगों को खुद में सुधार लाना होगा। ब्वाजय को सोचना चाहिये कि कोई उनकी बहन के साथ ऐसा करे तो क्या वे सह पायेंगे?

निकिता सिंह

यह सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। उस लिहाज से व्यवस्था निल है। वॉशरूम न होने से बहुत असुविधा होती है। इसके लिये बहुत खोज करनी पड़ती है। बाकी टायलेट भी बहुत गंदे हैं।

अर्पणा

गिने चुने वॉशरूम हैं और वे भी गंदे पड़े हैं। इससे महिला शिक्षिकायें भी परेशान रहती हैं। मोदी गवर्नमेंट गांव गांव को स्वच्छ बनाने की बात करती है। पहले यूनिवर्सिटी में तो शौचालय बना ले।

अंकिता