- मेरठ के लालबत्ती एरिया के हैं दिल्ली कनेक्शन, रेस्क्यू अभियान में हुआ खुलासा

- ह्यूमन ट्रैफिकिंग, देह व्यापार को रोकने के लिए आईआईएमटी में कार्यशाला का आयोजन

-पुलिस संरक्षण में फल-फूल रहा है देह व्यापार, आका को बचाने के लिए गुर्गे कराते हैं अपनी गिरफ्तारी

Meerut : दिल्ली के लालबत्ती एरिया जीबी रोड में रेस्क्यू अभियान के तहत पकड़ी गई लड़कियों के ताल्लुक मेरठ से होते हैं। बंगाल से जो लड़की लाई जाती है वो मेरठ से होकर दिल्ली पहुंचती है। मेरठ, लोनी, मजनू का टीला यहां पूरा एक नेटवर्क काम कर रहा है। मेरठ में ह्वूमन ट्रैफिकिंग रोकने, महिला एवं बाल संरक्षण के संबंध में आईआईएमटी में आयोजित कार्यशाला में गुरुवार को ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर काम कर रही दिल्ली की संस्था शक्ति वाहिनी के रविकांत ने जो खुलासे किए वे बेहद चौंकाने वाले थे।

मेरठ है ट्रेनिंग सेंटर

कार्यशाला में जो तथ्य सामने आए उनमें से अहम यह भी है कि वेश्यावृत्ति के लिए लाई जाने वाली लड़कियों की ट्रेनिंग मेरठ में होती है। लोनी में ट्रैफिकर ने कुछ मकान भी बना लिए हैं। दिल्ली में सख्ती होने पर इन्हें यहां आश्रय दिया जाता है। ज्यादातर केसेज में दिल्ली पहुंचने वाली ज्यादातर लड़कियों को मेरठ में रोका जाता है, यहां से पेशे के लिए तैयार कर इन्हें दिल्ली एवं देश के विभिन्न शहरों में पहुंचाया जाता है।

'आका' तक नहीं पहुंचती पुलिस

मानव अवैध व्यापार में पुलिस की पकड़ कमजोर है। जांच अधिकारी केस की इन्वेटीगेशन के दौरान तथ्यों की गहराई में नहीं जाते, जिससे इस बंगाल, नेपाल, छत्तीसगढ़, असम में बैठा इस कारोबार का 'आका' साफ बच निकलता है। यह कहना है संस्था के रविकांत का। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार तो आका को बचाने और पुलिस को गुमराह करने के लिए इस खेल के गुर्गे खुद अपनी गिरफ्तारी कराते हैं।

टै्रफिकर चला रहे एनजीओ

संस्था के प्रतिनिधि रविकांत ने बताया कि ज्यादातर ट्रैफिकर एनजीओ चला रहे हैं। किसी भी रेस्क्यू अभियान के दौरान ये ट्रैफिकर सक्रिय हो जाते हैं और पुलिस की मौजूदगी में पीडि़ता के पास तक पहुंच जाते हैं। उसे डराते-धमकाते हैं, और मुंह न खोलने के लिए दबाव बनाते हैं। ट्रैफिकर के ट्रेनिंग का ही नतीजा है कि पकड़ी गई लड़की अपना बार-बार बयान बदलती हैं। कार्यशाला में शक्ति वाहिनी ने पुलिस अधिकारियों को एनजीओ के चयन में सावधानी बरतने के लिए भी कहा।

निर्भया दे गई 'जिंदगी'

दिल्ली के निर्भया केस के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन किया गया, जनवरी 2013 में दाखिल रिपोर्ट में ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर पूरा एक चैप्टर लिखा गया और सरकार को निर्देश दिए गए कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर सख्त कानून बनाया जाए। सेक्शन 370 में संशोधन भी हुआ और ट्रैफिकिंग के सौ फीसदी मामलों में मुकदमा कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही थानों में दर्ज हो रहे हैं।

अड्डा बनीं कन्सल्टेंसी

दिल्ली-एनसीआर में लेवर ट्रैफिकिंग के सैकड़ों मामले प्रकाश में आए हैं, 70-80 हजार रुपये देकर कन्सल्टेंसी को देकर पूर्वी प्रदेशों से लाकर बच्चों एवं किशोरियों को घरेलू नौकर बनाकर रखने का चलन बढ़ा है। दिल्ली में सेक्सुअल हैरसमेंट के मैक्सिमम मामलों में डोमेस्टिक सेक्सुअल केसेस शामिल हैं। दिल्ली में ऐसे बच्चों को उपलब्ध कराने वाली एजेंसियों की भरमार है। नेपाल त्रासदी को भी इन एजेंसियों ने कैश किया है।

शादी के नाम पर 'ट्रैफिकिंग'

वर्कशॉप में संस्था के प्रतिनिधि ने बताया कि उप्र, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान आदि स्टेट में लड़कियों की गिरती आबादी के चलते शादी के लिए ट्रैफिकिंग का चलन बढ़ा है। संस्था ने बताया कि गत डेढ़ साल में करीब 350 ऐसे मामले नजर में आए हैं जहां पूर्वी राज्यों से लड़कियों को झांसा देकर लाया गया और किसी के साथ ब्याह दिया गया। यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही इन लड़कियों को प्रपंच रचकर लाया जाता है। आर्गन ट्रेड के लिए भी ट्रैफिकिंग के मामले सामने आए हैं।

गुमशुदगी में मुकदमा

बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट के चाइल्ड-वूमेन ट्रैफिकिंग के मामलों में अनिवार्य मुकदमे के आदेश का फायदा हुआ है। अपराधों में कमी बेशक न आई हो किंतु धरपकड़ की संभावनाएं बढ़ी हैं। शक्ति वाहिनी ने बताया कि यहां दिल्ली में लालबत्ती एरिया से जो लड़की रेस्क्यू की जाती है उसका बंगाल के किसी थाने में गुमशुदगी का केस दर्ज होता है। उन्होंने ऐसे मामलों में पुलिस को सक्रिय भूमिका अदा करने को कहा।