- नई सरकार नहीं बना पाई क्लाइमेट चेंज पर कोई नीति

- पिछली सरकार की नीति को कर दिया गया था समाप्त

DEHRADUN : दीपावली पर पटाखों से हुए प्रदूषण के बाद एक बार फिर बढ़ते प्रदूषण और इस प्रदूषण के कारण होने से क्लाइमेट चेंज पर बहस शुरू हो गई है। खास बात यह है कि आम लोगों के बीच बेशक यह चर्चा इन दिनों शुरू हुई हो, लेकिन वन विभाग के तहत देहरादून में चल रहा स्टेट क्लाइमेट चेंज सेन्टर (एससीसीसी) लगातार हिमालयी क्षेत्रों में हो रहे प्रदूषण और क्लाइमेट चेंज पर अध्ययन कर रहा है और सरकार को समय-समय पर सुझाव भी दे रहा है, लेकिन एससीसीसी के एक भी सुझाव पर अभी तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है। एससीसीसी के द्वारा दिये गये सुझाव सरकारी फाइलों की शोभा बढ़ा रहे हैं।

नहीं बनी नीति

पिछली सरकार ने एससीसीसी के सुझाव पर राज्य सरकार के सभी म्म् विभागों के बजट की एक प्रतिशत राशि क्लाइमेट चेंज मद में देने के निर्देश दिये थे। इस राशि से एससीसीसी के निर्देशानुसार प्रदूषण नियंत्रण संबंधी विभिन्न कार्य करवाये जाने थे। वर्तमान सरकार ने पदभार ग्रहण करने के बाद निर्णय को वापस ले लिया था। लेकिन इसके बाद राज्य सरकार ने इस संबंध में कोई नीति नहीं बनाई है।

प्रोजेक्ट का सुझाव भी ठंडे बस्ते में

एससीसीसी ने सरकार को एक सुझाव यह भी दिया था कि विभिन्न विभागों के बजट की क्0 प्रतिशत राशि क्लाइमेट चेंज संबंधी कार्यो में खर्च की जाए। इस राशि से संबंधित विभागों को अपने विभाग से ही संबंधित ऐसे कार्य करने थे, जिनका संबंध क्लाइमेट चेंज से हो। उदाहरण के रूप में वृक्षारोपण कार्य, सफाई कार्य, प्रदूषण फैलाने वाले उपकरणों के स्थान पर ईको फ्रेंडली उपकरणों के इस्तेमाल आदि काम किये जाने थे।

क्म् विभागों को किया था शामिल

इस मामले में शासन स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक भी हुई थी। इस बैठक में क्म् विभागों को इस तरह का प्रोजेक्ट बनाने के निर्देश दिये गये थे। इनमें ऊर्जा, वन, कृषि, पेयजल, लोक निर्माण, पशुधन, आपदा प्रबंधन, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, शहरी विकास, पर्यटन, उद्योग और परिवहन जैसे विभाग शामिल थे। इस मामले में इससे ज्यादा अब तक कुछ नहीं हो पाया है।

विभागों में भी नहीं बने सीसीसी

इसके अलावा इस साल के शुरू में ही एससीसीसी ने 8 विभागों में क्लाइमेट चेंज सेंटर सीसीसी बनाने के निर्देश दिये थे। इस तरह के सेंटर बनाने के लिए वन, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, पेयजल, पशुधन और कृषि विभागों को चुना गया था। इस सुझाव पर भी आज तक सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है।

प्रदूषण का असर अन्य क्षेत्रों के मुकाबले हिमालयी क्षेत्र पर ज्यादा पड़ता है। यही वजह है कि विश्व के अन्य क्षेत्रों की तुलना में हिमालयी क्षेत्र पर ग्लोबल वार्मिग का ज्यादा असर पड़ रहा है। एससीसीसी लगातार हिमालय में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन कर रहा है और इस संबंध में राज्य सरकार को सुझाव भी दिये जा रहे हैं। इन सुझावों पर काम करना या उन्हें रद्द कर देना सरकार का काम है।

-आरएन झा, नोडल अधिकारी, एससीसीसी