-2 दिन तक पड़ी रही लाश, शहर में होते हुए भी अंतिम संस्कार के लिए नहीं पहुंचा पति, बेटियों ने भी मां को मरने के लिए छोड़ दिया

क्कन्ञ्जहृन्: जब उसे रिश्तों की जरूरत थी तब सभी ने उसे अकेला छोड़ दिया। जिस पति ने हर कष्ट में साथ रहने की कसमें खाई थी, वह बिस्तर पर पड़ते ही छोड़कर चला गया। जिन बेटियों को ममता की छांव में पाला, वह भी साथ छोड़कर चली गई। वह बिस्तर पर पड़ी मौत के लिए दिन गिनती रही। उसे क्या पता था जीते जी वह जो सितम झेल रही है मरने के बाद भी नरक झेलना है। पति शहर में होने के बावजूद झांकने तक नहीं आया। मां के हाथों की थपकियां लेकर पली बेटियां उसके सड़ते हुए शरीर को देखने तब आई जब पुलिस ने बुलाया। वाह रे दुनिया, वाह रे रिश्ते एक मां, एक पत्नी अपने रिश्तों को निभाकर चली गई लेकिन उसके शरीर तक को 2 दिन तक छूने कोई नहीं आया। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं गुरुवार को कदमकुआं में हुई दिल दहला देने वाली एक सच्ची घटना है।

उसकी खता क्या थी

राजेंद्र नगर रोड नंबर दस के पीआरडी फ्लैट नंबर जेएफ1/4. यह पता है 50 वर्षीय मिली सरकार का। गुरुवार को फ्लैट के पास भीड़ थी। यहां मौजूद हर आदमी एक ही बात कह रहा था भगवान ऐसी मौत किसी को न दे। आखिर मिली के साथ ऐसा क्या हुआ? यह आप भी जानेंगे तो रो पड़ेंगे। मिली के पति बिहार आयुर्वेदिक कॉलेज एंड हॉस्पिटल में पैथोलॉजिस्ट हैं। उनकी दो बेटियां और दामाद भी है। लेकिन 5 साल से वह यहां अकेले ही रह रही थी। डेढ़ साल से वह बेडसोल से पीडि़त थीं। उठकर पानी तक नहीं ले सकती थीं। यही नहीं नित्य-क्रिया भी बिस्तर पर होती। ऐसे में वह हर दिन तिल-तिल कर मरती। जब भी उनसे मिलो एक ही बात कहती कि भगवान मुझे जल्दी बुला ले। अब यह दर्द यह पीड़ा सही नहीं जा रही। यह कहना है उनके पड़ोसियों का।

संपन्न परिवार की दर्दनाक दास्तां

मिली किसी ऐसे परिवार से नहीं थी कि उनके अंतिम संस्कार के लिए किसी चीज की कमी पड़े। उनके पति डॉ। एके सरकार सरकारी डॉक्टर हैं। दो बेटियां दीपमाला और गीतमाला हैं। दोनों पढ़ाई करने के लिए दूसरे प्रदेशों में गई। उन्होंने वहीं शादी कर ली और पति के साथ दिल्ली में रहती हैं। एक बेटी तो बैंक में काम करती है। इतना संपन्न परिवार होने के बावजूद अंतिम संस्कार के लिए दो दिन तक मिली का शरीर तड़पता रहा।

यह कैसा देवता

पड़ोसियों की मानें तो मिली अपने पति और बच्चों से बहुत प्रेम करती थी। हमेशा उनके ही किस्से और बातें करती रहती। उन्हें एक ही बात का कष्ट था, जब उन्हें परिवार की सबसे अधिक जरूरत थी, तब उनके साथ कोई नहीं था। पड़ोसियों का कहना है कि कोई पति ऐसा जल्लाद कैसे हो सकता है। मरने की खबर सुनने के बाद भी वे नहीं आए। उन्होंने अपने एक दोस्त को घर भेज दिया और लाश को कॉफिन में रखवा दिया।

नौकरानी का था सहारा

पड़ोसी बताते हैं कि बेटियों ने उनके लिए एक नौकरानी लगा रखी थी। वह सुबह आती। घर के सारा काम करने के बाद शाम को घर में उन्हें अकेला छोड़ चली जाती। मंगलवार को नौकरानी काम पर आई तो मिली की सांसें थम चुकी थी.वह कब मरी कैसे मरी यह किसी को नहीं पता। नौकरानी ने तुरंत इसकी जानकारीे पड़ोसियों को दी। पड़ोसियों ने डॉक्टर पति को घटना के बारे में बताया। बेटियों को भी फोन कर जानकारी दी गई। लेकिन दो दिन तक कोई नहीं आया।

पुलिस को बुलाना पड़ा

मिली की लाश दो दिन तक घर के कमरे में पड़ी रही। बेटी-पति दोनों यह बात जानते थे लेकिन अंतिम संस्कार के लिए कोई नहीं आया। मजबूरी में तीसरे दिन पड़ोसियों की संवेदना जगी और उन्होंने कदमकुआं थाने में इस बात की जानकारी दी। पुलिस ने बेटियों को फोन कर बुलाया। बेटियां दिल्ली से गुरुवार को पहुंची। उन्होंने पुलिस को बताया कि ट्रेन न मिलने के कारण वे दो दिन तक नहीं आ पाई। पति को बार-बार फोन करने के बावजूद उन्होंने फोन नहीं उठाया।