-खुदाई में मिले थे दूसरी और तीसरी शताब्दी के मृदभांड

PATNA: यूं तो पटना शहर में ऐतिहासिक महत्व के कई इमारत या भवन हैं, लेकिन इसमें विरले ही हैं जिनसे इस शहर की पहचान जुड़ी है। ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों में गोलघर का नाम बहुत गौरव के साथ लिया जाता है। निर्माण के समय गंगा के किनारे बसे इस भवन की संरचना अपने-आप में अनोखी है। यह विश्व का सबसे बड़ा आर्क पर निर्मित डोम या गुम्बद है। इसकी घुमावदार सीढि़यां इसकी विरासत को निहारने, चढ़ने का साधन है। 'मेरा पितर, मेरा शहर' के क्क्वीं कड़ी में आज पढि़ए राजधानी पटना की पहचान गोलघर के बारे में

अकाल ने किया मजबूर

मैं गोलघर हूं। पटनावासी और बाहर से आने वाले पर्यटक मेरी सर्वोच्च ऊंचाई तक पहुंचकर पटना शहर को बनते-बिगड़ते देखते हैं। भले ही मेरा निर्माण अनाज भंडारण के लिए किया गया हो, लेकिन मेरी प्रासंगिकता समय के साथ कुछ और ही हो गई है। मैं पटना की पहचान हूं और घनी आबादी के बीचो-बीच रहकर इतिहास को दोहराने का कारण हूं। मेरा निर्माण क्78म् ई में अंग्रेज इंजीनियर जॉन गार्सटिन, जो कि आर्मी इंजीनियर थे, ने किया था। लेकिन मेरे निर्माण को सही तरीके से पूरा नहीं किए जाने से यह अनाज रखने के उददेश्य से आगे जा नहीं सका।

सबसे ऊंची इमारत हूं

मैं आकार में चापाकार हूं और दुनिया में इस प्रकार की आकृति वाला सबसे ऊंची इमारत हूं। मेरी ऊंचाई 98 फीट है और रेडियस क्क्0 फीट । इस प्रकार मैं बीजापुर का गोल गुम्बद, जो कि ब्8 फीट उंचा है। यहां तक कि 'डोम ऑफ रॉक' कहे जाने वाले जेरूसलेम के भ्म् फीट ऊंचा डोम से भी अधिक है।

आर्मी इंजीनियर ने था बनाया

मेरा निर्माण क्78म् में अंग्रेज आर्मी इंजीनियर कैप्टन गार्सिटिन ने किया था। इससे पहले क्770 ई में बिहार में भयंकर अकाल पड़ने के बाद उस आर्मी इंजीनियर ने इस प्रकार की संरचना खड़ा करने का निर्णय लिया। बनी सीढि़यों का दो सेट है। और प्रत्येक सेट में क्ब्ब् स्टेप्स है।

इतिहास के नीचे इतिहास

मेरे बारे में ऐसा बताया जाता है कि जब क्78म् ई में मेरा निर्माण किया जा रहा था तब इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि निर्माण स्थल के नीचे भी एक इतिहास है। पुरातत्व विभाग, बिहार सरकार के निदेशक अतुल वर्मा बताते हैं किआजादी के बाद यहां की गई खुदाई में दूसरी और तीसरी शताब्दी के मृदभांड मिले थे। इसके अलावा मौर्यकालीन भी कई पुरावशेष प्राप्त किए गए हैं। इससे पता चलता है कि मौर्य कालीन सभ्यता का विस्तार ही गोलघर के रूप में है। आज एक बार फिर से सुरती और चूना के मिश्रण से मुझे संरक्षित किया जा रहा है। ताकि नई पीढ़ी के लोग भी हमारे इतिहास से अनभिज्ञ ना रहे।

यूं तो पटना में ऐतिहासिक इमारतों की कमी नहीं है। लेकिन गोलघर सही मायनों में इस शहर का प्रतिनिधि करने वाला भवन है। इसके नीचे मौर्य काल और दूसरी शता?दी के मृदभांड भी प्राप्त हुए हैं।

- अतुल वर्मा, निदेशक, पुरातत्व विभाग, पटना यूनिवर्सिटी