यहां एकसाथ रहकर पढ़ते हैं,इस एग्‍जाम में पास होने पर ही होती है शादी

पांचवी शताब्दी से रह रही है यह जनजाति

गोंड जनजाति भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं। गोंड भारत के कटि प्रदेश विंध्यपर्वत, सतपुड़ा पठार, छत्तीसगढ़ मैदान में दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम में गोदावरी नदी तक फैले हुए पहाड़ों और जंगलों में रहने वाली आस्ट्रोलायड नस्ल तथा द्रविड़ परिवार की एक जनजाति है। यह जनजाति संभवत पांचवीं-छठी शताब्दी में दक्षिण से गोदावरी के तट को पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों और जंगलों में फैल गई। इस जनजाति के लोगों का दावा है कि सिर्फ़ इसी प्रथा के कारण मुरिया जाति में आज तक बलात्कार का एक भी केस सामने नहीं आया है। गोंड जनजाति के मुरिया समुदाय की शादी से पहले सुहागरात की अनोखी प्रथा के बारे में।

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घोटुल है इस जनजाति की महत्वपूर्ण परंपरा

आपको बता दें कि यह परंपरा है घोटुल। गोंड जनजाति की छत्तीसगढ़ से झारखंड तक के जंगलों में उपजाति या समुदाय मुरिया कहलाता है। मुरिया के लोगों की एक परंपरा है जिसे घोटुल नाम दिया गया है। यह परंपरा दरअसल इस जनजाति के किशोरों को शिक्षा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया अनूठा अभियान है। इसमें दिन में बच्चे शिक्षा से लेकर घरगृहस्थी तक के पाठ पढ़ते हैं। शाम के समय मनोरंजन और रात के समय आनंद लिया जाता है। घोंटुल में आने वाले लड़के को चेलिक और लड़की को मोटियार कहा जाता है।

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घोटुल को इस जाति की यूनीवर्सिटी भी कहा जाता है

घोटुल बांस या मिट्टी की बनी झोंपड़ी होती है। इसे इस जनजाति का विश्वविद्यालय भी कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा। दरअसल गोंड जनजाति के बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल या कॉलेज नहीं जाते बल्कि उन्हें सभी तरह की शिक्षा इस घोटुल में ही दी जाती है। जहां भी इस जनजाति का डेरा होता है वहीं घोटुल का निर्माण अनिवार्य होता है। दिन के समय यहां पाठ पढ़ाया जाता है। जिसमें आरंभिक शिक्षा से लेकर सामाजिक रहन–सहन, आचार–व्यवहार और रिश्ते–नातों के संबंध में गहन जानकारी दी जाती है। इसी दौरान लड़कियों को घर को संभालने की दृष्टि से मानसिक रूप से तैयार करने की कोशिश होती है। घोटुल की पूरी साफ–सफाई और अन्य कामों का जिम्मा वहां रह रही बालिका पर होता है।

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बच्चे 10 साल का हो जाने के बाद घोटुल में जाना है अनिवार्य

मुरिया उपजाति का नियम है कि इस जाति का कोई भी बच्चा जैसे ही दस साल का होता है वह घोटुल में आने के काबिल हो जाता है। यदि उसे अपने समाज में रहना है तो 10 साल का होते ही घोटुल में जाना अनिवार्य होता है। हालांकि ऐसा कोई केस देखने में नहीं आता जब किसी बच्चे या माता–पिता ने अपने बच्चे को यहां भेजने से मना किया हो। यहां न आने वालों के लिए सख्त नियम जरूर हैं। जो घोटुल में नहीं आएगा, उसकी शादी इस उपजाति में होना संभव नहीं।

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लिंगो देव ने शुरु की थी घोटुल प्रथा

यह प्रथा लिंगो पेन यानी लिंगो देव ने शुरू की थी। समस्त गोंड समुदाय को पहांदी कुपार लिंगो ने कोया पुनेम के मध्यम से एक सूत्र में बंधने का काम किया। लिंगो देव को गोंड जनजाति का देवता माना जाता है। सदियों पहले जब लिंगो देव ने देखा कि गोंड जाति में किसी भी तरह की शिक्षा का कोई स्थान नहीं है तो उन्होंने एक अनोखी प्रथा शुरू की। उन्होंने बस्ती के बाहर बांस की कुछ झोंपडि़यां बनवाई और बच्चों को वहां पढ़ाना शुरू कर दिया। यही झोंपडियां बाद में घोंटुल के नाम से प्रसिद्ध हुईं। इनमें बच्चों को जीवन से जुड़ी हर शिक्षा दी जाती थी।

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ऐसे लड़कियां चुनती हैं अपना वर

इस प्रथा में प्रेमी–प्रेमिका जो बाद में जीवनभर के लिए जीवनसाथी भी बनते हैं उनके चयन का तरीका भी अनूठा है। दरअसल जैसे ही कोई लड़का घोंटुल में आता है और उसे लगता है कि वह शारीरिक रूप से मेच्योर हो गया है। फिर उसे बांस की एक कंघी बनानी होती है। यह कंघी बनाने में वह अपनी पूरी ताकत और कला झोंक देता है। क्योंकि यही कंघी तय करती है कि वह किस लड़की को पसंद आएगा। घोंटुल में आई लड़की को जब कोई लड़का पसंद आता है तो वह उसकी कंघी चुरा लेती है। यह संकेत होता है कि वह उस लड़के को चाहती है। जैसे ही वह लड़की यह कंघी अपने बालों में लगाकर निकलती है। जिससे सबको पता चल जाता है कि वह किसी को चाहने लगी है ।

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इस प्रथा की वजह से नहीं होते हैं रेप केस

लड़के-लड़की की जोड़ी बनने के बाद वे दोनों मिलकर अपनी घोंटुल यानी झोंपड़ी को सजाते-संवारते हैं। दोनों एक ही झोंपड़ी में रहने लगते हैं । इस दौरान वे वैवाहिक जीवन से जुड़ी तमाम सीख हासिल करते हैं। इसमें एक-दूसरे की भावनाओं से लेकर शारीरिक ज़रूरतों को संतुष्ट करना तक शामिल होता है। यहां खास बात यह है कि सिर्फ़ वही लड़के-लड़कियां एक साथ एक झोंपड़ी में जा सकते हैं जो सार्वजनिक हो चुके हों कि वे एक–दूसरे से प्रेम करते हैं ।यह परम्परा गोंड जाति की नज़र में सम्माननीय और सराहनीय है। यहां हर लड़के–लड़की को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की आज़ादी है। इस परंपरा को इसलिए भी सराहनीय माना जाता है क्योंकि इसी के कारण गोंड समाज में आज तक दुष्कर्म का एक भी मामला सामने नहीं आया है।

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इस परंपरा में सिर्फ युवओं को मिलता है प्रवेश

इस परंपरा की एक और खासियत यह है कि इसमें सिर्फ़ युवाओं को ही प्रवेश मिलता है। बड़े-बुजुर्ग सिर्फ़ उस समय यहां आ सकते हैं जब घोंटुल की शिक्षा के बाद परीक्षा होती है। यहां परीक्षा का तरीका भी अनूठा है। कोई कलम कागज़ की जरूरत नहीं कोई सवाल-जवाब याद करने की ज़रूरत नहीं। बड़े-बुजुर्ग उस झोंपड़ी में जाकर निरीक्षण करते हैं जिसमें लड़का-लड़की एक साथ रहना चाहते हैं। यदि झोंपड़ी साफ-सुथरी और सजी हुई नहीं हुई तो उन्हें फेल घोषित कर दिया जाता है। उन्हें साथ रहने की अनुमति नहीं दी जाती। इस परम्परा को सराहनीय मानते हैं गोंड जाति के लोग

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