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नंबर गेम

- 54 डिस्मिल में सेल्टर होम व कम्युनिटी हॉल बनना था बरगदवां में।

- 1.41 करोड़ रुपए की लागत थी।

- 2016 की जनवरी में पास हुई योजना।

- 2016 मार्च में कार्यदायी संस्था सीएनडीएस काम करने पहुंची तो पता चला कि जमीन विवादित है।

- 2016 अप्रैल में काम शुरू कराने के लिए लोगों ने प्रदर्शन किया।

- 2016 जून में विवादित जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नगर निगम के पक्ष में आया।

- 1000 परिवार ऐसे हैं, जो जैसे-तैसे रह रहे हैं, इन्हें शेल्टर होम से आसरा मिल जाता।

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- बरगदवां में आसरा योजना के तहत बनने वाला शेल्टर होम अब तक पूरा नहीं, आसरे की आस में हैं 1000 परिवार

- शेल्टर होम के लिए चयनित जमीन है विवादित, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी निगम नहीं ले पाया कब्जा

GORAKHPUR: नगर निगम, नगर की पब्लिक के लिए कितनी फिक्रमंद है, इसके लिए आसरा योजना के तहत स्वीकृत शेल्टर होम एक उदाहरण के रूप में हो सकता है। 2016 की जनवरी में ही 1.41 करोड़ की यह योजना पास हुई लेकिन इसका निर्माण आज तक पूरा नहीं हुआ। दरअसल, निगम ने विवादित जमीन पर ही योजना पास कर दिया था। हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और स्थानीय पार्षद ने लंबी लड़ाई लड़ी। फैसला निगम के पक्ष में भी आ गया लेकिन तब भी निगम नहीं जागा और निर्माण तो दूर, अब तक जमीन को अपने कब्जे में ही नहीं ले पाया है। उधर, आसपास के एरिया में 1000 परिवार ऐसे हैं जो जैसे-तैसे रह रहे हैं। यदि यह शेल्टर होम बन जाता तो उन्हें आसरा मिल सकता था।

इसलिए पड़ी जरूरत

शहर के विकास नगर कॉलोनी, जप्ती टोला गांव में एक हजार परिवार ऐसे हैं, जो मामूली जगह में किसी तरह रहते हैं। यहां पर स्थानीय लोगों ने बहुत पहले रैन बसेरा बनवाने की मांग की थी, लेकिन रैन बसेरा नहीं बन पाया है। शेल्टर होम के साथ ही कम्युनिटी हॉल भी बनना था। चूंकि यहां पर कोई सार्वजनिक प्लेस नहीं है, जिससे मोहल्ले के लोगों को किसी भी कार्यक्रम के लिए मैरेज हॉल या अन्य जगह बुक कराना पड़ता है। कम्युनिटी हॉल बन जाता तो सबको राहत मिलती।

और विवादित निकली जमीन

जब आसरा योजना आई तो यहां पर सेल्टर होम प्रोजेक्ट पर मोहर लग गई। मार्च 2016 में जब कार्यदायी संस्था सीएनडीएस काम करने पहुंची तो पता चला कि जमीन विवादित है। उसके बाद कार्य बंद हो गया। अप्रैल में यहां के स्थानीय लोगों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया, उसके बाद नगर निगम ने इसकी सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई की पैरवी शुरू की।

जून में ही आ गया फैसला

शेल्टर होम नगर निगम के डूडा द्वारा बनवाया जाना था और कार्यदायी संस्था सीएनडीएस थी। पार्षद जनार्दन चौधरी ने बताया कि जून 2016 में इस जमीन पर नगर निगम के पक्ष में निर्णय आ गया। उसके बाद मैंने फिर से पत्र लिखा, लेकिन नगर निगम द्वारा यहां पर अभी तक कार्य शुरू नहीं किया है। न तो डूडा का पता चल रहा है और न ही सीएनडीएस का।

आवास बना, शेल्टर होम नहीं

नगर निगम में आसरा योजना में आवास बनने की भी योजना थी। इसके लिए राप्तीनगर के द मिलेनियम सिटी के पीछे आसरा योजना के तहत आवास बनने के भी योजना आई थी। आई तो दोनों योजना साथ लेकिन आवास बनकर तैयार हो गया है और सेल्टर होम की अभी नींव तक नहीं पड़ पाई है।

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कॉलिंग

नगर निगम केवल सपना दिखाता है। हमारे यहां भी नगर निगम ने यही किया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं। अभी तक शेल्टर होम की नींव तक नहीं पड़ी है।

मोहन राव, सर्विसमैन

यहां पर सामुदायिक भवन बनने से सबसे अधिक फायदा होता। लोग छोटे-छोटे कार्यक्रम यहां कर सकते थे। जिससे उनको हजारों रुपए की बचत होती। लेकिन नगर निगम अभी तक कोई कदम नहीं उठा रहा है।

मंजू देवी, हाउस वाइफ

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