- शहरवासियों को है उम्मीद कि लटकी योजनाओं को लग जाएंगे पंख

- अब केंद्र और प्रदेश में एक ही सरकार तो नहीं होगा कोई रोड़ा

- वहीं शहर से ही सीएम होने से उम्मीदें छू रहीं हैं आसमान

GORAKHPUR: गोरखपुर से 29 साल बाद प्रदेश को सीएम मिला है। इसी के साथ गोरखपुर व पूर्वाचल की उम्मीदों को भी पंख लग गए हैं। 1985 से 1988 के दौरान वीर बहादुर सिंह ने जिस तरह शहर बदलने का काम किया था, अब गोरखपुराइट्स को नए मुखिया से उससे भी कहीं अधिक उम्मीदें हैं। इसके साथ ही केन्द्र और प्रदेश में एक ही सरकार होने स लोगों का भरोसा बढ़ गया है कि अब केन्द्रीय योजनाएं भी यहां आएंगी और उन पर काम होगा। शहर में विकास की रफ्तार को और बढ़ाने के लिए पहले जरूरी है कि जो योजनाएं लटकी हैं, वह पूरी हो जाए।

रामगढ़ताल

रामगढ़ताल को चंडीगढ़ की सुखना झील की तर्ज पर डेवलप किया जाना है। इसके लिए समय सीमा तीन साल तय की गई थी, लेकिन काम में देर की वजह से लागत 124.32 करोड़ से बढ़कर 196.67 करोड़ हो गई और योजना पेंडिंग हो गई। सेंट्रल और स्टेट गवर्नमेंट को क्रमश: 70 और 30 फीसद पेमेंट करना था, लेकिन आपसी खींचतान में पेंच फंसा रहा। पिछली सरकार में इसे 'नया सवेरा' प्रोजेक्ट के पहले फेज में 100 मीटर का मॉडल बनाने के लिए दो करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे। दूसरे चरण में 18.86 करोड़ रुपए की लागत से मार्बल स्टोन, ग्रेनाइट स्टोन व डेकोरेटिव पोल लगाए जाने थे। साथ ही जॉगिंग ट्रैक, साइकिल ट्रैक, दिव्यांगों के लिए रैंप, विजिटर्स बेंच, फाउंटेन, महापुरुषों की मूर्ति, घाट सीढ़ी, एलईडी लाइट के लिए सजावटी पोल, लैंड स्केपिंग कार्य, पार्किग प्लेटफॉर्म व लेक फ्रंट रेलिंग के साथ दूसरे काम कराए जाने थे। इसमें कुछ काम तो पूरे हुए, लेकिन काफी कुछ अब भी बाकी है।

बॉटलिंग प्लांट

गीडा में करीब दो सालों से बंद पड़े प्राइवेट अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रिजोल्यूशन (एडीआर) प्लांट को फिर शुरू करने की कवायद 2013 में शुरू हुई। इसस गोरखपुर के अलावा देवरिया, महाराजगंज, कुशीनगर के उपभोक्ताओं को राहत मिलने की उम्मीद थी। यहां रिफिल होने वाले लगभग पांच हजार सिलिंडरों को जरूरत के मुतबिक जिलों में भेजे जाने की तैयारी थी। 2013 तक इंडियन ऑयल एडीआर प्लांट को अपने सिलिंडर और तय रकम दे देता था और रोजाना बॉटलिंग प्लांट से सिलिंडर रिफिल होकर मिल जाते थे, मगर करार खत्म हो जाने से यह प्लांट बंद हो गया। इसके बंद होने की वजह कुछ अफसरों की मांगें पूरी न होना बताया जाता है। इस बीच घरेलू गैस सिलिंडरों की किल्लत कम करने के लिए इंडियन ऑयल ने गीडा के बंद पड़े प्लांट को दोबारा शुरू करने की पहल की। इसके साथ ही प्लांट का इंडियन ऑयल के अफसरों ने दौरा किया। उन्होंने कुछ आवश्यक निर्माण कराने के निर्देश दिए। सारी कवायदें हुई, बॉटलिंग प्लांट का शिलान्यास भी हुआ, लेकिन आज तक लोगों को उसका इंतजार है।

चिडि़याघर

सूबे में कई निजाम बदले। करोड़ों रुपए पानी की तरह खर्च कर दिए गए। लेकिन गोरखपुर में चिडि़याघर की आस, हकीकत न बन सकी। इस प्रोजेक्ट के नाम पर करोड़ों के वारे-न्यारे हो गए। 80 के दशक में मुख्यमंत्री बनते ही पूवरंचल के विकास पुरुष वीरबहादुर सिंह ने एक उम्मीद जगाई थी, लेकिन यह प्रोजेक्ट अमलीजामा नहीं पहन सका। चिडि़याघर का सपना तब पूरा होता नजर आया जब वीरबहादुर सिंह के बेटे फतेहबहादुर मंत्री बने। बसपा सरकार में तत्कालीन वन व जंतु उद्यान मंत्री फतेह बहादुर सिंह ने वर्ष 2007 में चिडि़याघर निर्माण के लिए वन विभाग को प्रस्ताव बनाने का निर्देश दिया। वन विभाग ने 124.274 एकड़ भूमि में 88.80 करोड़ रुपये की योजना तैयार कर प्रदेश सरकार के पास अनुमति के लिए भेज दिया। प्रदेश सरकार से मुहर लगने के बाद केंद्र सरकार ने भी अनुमति प्रदान कर केंद्रीय चिडि़याघर प्राधिकरण (सीजेडए) और सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी लेने का निर्देश दिया। कुछ शर्तो के साथ सीजेडए से भी मंजूरी मिल गई। करीब दो साल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी। इसके बाद वन मंत्री ने इसकी घोषणा कर दी। 18 मई 2011 को इसको बनाने का काम शुरू हो सका। बसपा सरकार में इसकी घोषणा हुई थी तो इसका नाम कांशीराम प्राणि उद्यान रखा गया, लेकिन सरकार बदलते ही नाम भी बदल गया। सपा ने 25 जनवरी 2014 को आजादी के परवाने शहीद अशफाक उल्लाह खां के नाम पर इसका नाम रख दिया। राज्यमंत्री डॉ। शिव प्रताप यादव ने प्राणि उद्यान के प्रशासनिक भवन का लोकार्पण किया। अब नई सरकार से लोगों को जू के शुरू होने की आस है।

एम्स

गोरखपुर में खराब पानी और गंदगी की वजह से बीमारियों का बोलबाला है। 35 साल से ज्यादा अरसा बीत चुका है, मगर इंसेफेलाइटिस जैसी महामारी आज भी हावी है। पिछली कई सरकारों ने इसके लिए काफी कवायदें की, लेकिन किसी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। कुछ साल पहले इंसेफेलाइटिस को महामारी घोषित करने और शहर में भी एम्स की स्थापना को लेकर मुहिम छिड़ी, जिसमें सारे शहर ने एक सिरे से यहां के लिए एम्स मांगा। केंद्र में बीजेपी सरकार बनने के बाद पहली बार शहर में आए पीएम नरेंद्र मोदी ने एम्स की सौगात भी दे दी। मगर जमीन का पेंच फंसने की वजह से काफी दिनों तक यह मामला पेंडिंग रहा। दो साल के बाद 2016 में इसकी मांग तेज हुई, चुनाव करीब आने की वजह से सूबे और केंद्र की सरकारों ने अपना पिटारा खोल दिया। इससे गोरखपुर में एम्स की राह आसान हो गई। मगर जबतक निर्माण शुरू हो, इससे पहले ही सूबे की सत्ता बदल गई। नई सत्ता पर बीजेपी के काबिज होने से एम्स को लेकर भी उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। वहीं, बीआरडी में बन रहे 274.4 करोड़ की लागत से बनने वाले 500 बेड के हॉस्पिटल से भी इंसेफेलाइटिस के मरीजों को फायदा मिलेगा। केंद्र और प्रदेश दोनों में ही बीजेपी की सरकार होने और शहर से ही सीएम होने की वजह से एम्स की फाइलों की स्पीड बढ़ने की उम्मीद है, जिससे जल्द से जल्द शहरवासियों को एम्स की सौगात मिल सके।

इंटरनेशनल एयरपोर्ट

गोरखपुर में दिल्ली और मुंबई जाने की डगर काफी मुश्किल है। लोगों को अगर इन दोनों जगह जाना हो तो या तो उन्हें ट्रेन में धक्के खाने पड़ेंगे या फिर महीनों पहले जर्नी प्लान कर लाइन लगाकर टिकट हासिल करना पड़ेगा। अगर कोई तीज या त्योहार पड़ रहा हो, तो हालात और भी खराब होते हैं। काफी कोशिशों के बाद ट्रेन तो ठीक हुई, लेकिन इमरजेंसी में जाने वालों के लिए अब तक कोई बेहतर ऑप्शन नहीं मिल सका है। वहीं, अगर किसी को इंटरनेशनल फ्लाइट पकड़नी है, तो उन्हें लखनऊ या वाराणसी की दौड़ लगानी पड़ती है। अगर गोरखपुर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाए तो दिल्ली मुंबई जाने वाले पैसेंजर्स को जहां राहत मिल जाएगी, वहीं, इंटरनेशनल फ्लाइट पकड़ने के लिए दो-तीन दिन पहले से परेशान रहने वाले लोगों को भी घर में एक्स्ट्रा वक्त बिताने का मौका मिल जाएगा।

फर्टिलाइजर

लाखों हाथों को रोजगार और किसानों की आंखों में चमक देने वाले फर्टिलाइजर की आस आजादी के 69वें जश्न में करीब पूरी हो गई। गोरखपुर फर्टिलाइजर कारखाने को चालू कराने की बात पीएम नरेंद्र मोदी ने लालकिले से ज्योही दोहराई, गोरखपुराइट्स में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। 1990 में गोरखपुर फर्टिलाइजर में एक छोटी सी घटना हुई और यह कारखाना बंद हो गया। इसके बाद देश या प्रदेश में जितने भी चुनाव हुए, उसमें यह अहम मुद्दा बना रहा। जो भी नेता गोरखपुर में जन सभा को संबोधित करने आता, उसकी जुबां पर दूसरे मुद्दों के साथ ही फर्टिलाइजर का नाम जरूर जुड़ा रहा। देश के 6 प्रधानमंत्री भी इसे शुरू कराने का वादा कर चुके हैं और अब इसमें सातवें पीएम नरेंद्र मोदी का नाम भी जुड़ चुका है। सबसे पहले 1990 के बाद हुए चुनाव में वीपी सिंह ने वादा किया था कि फर्टिलाइजर चालू होगा। उसके बाद चंद्रशेखर, नरसिम्हा राव, एचडी देवगौड़ा और अटल बिहारी बाजपेयी के बाद मनमोहन सिंह ने भी गोरखपुर की जनता से इसे शुरू कराने का वादा किया था, लेकिन सभी वादे अब तक वादों ही तक सिमटे हुए हैं। अब प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार बनने से उम्मीदें और बढ़ गई हैं, लोगों को उम्मीद है कि जल्द ही गोरखपुर फर्टिलाइजर में भी उत्पादन शुरू होगा और रोजगार का इंतजार कर लोगों की उम्मीदें पूरी होंगी।

टूरिज्म

टूरिज्म के लिए गोरखपुर शहर कई ऐसी चीजों को समेटे हुए है, जिनका ऐतिहासिक, सामाजिक महत्व है। मगर जिम्मेदारों की अनदेखी और रख-रखाव के अभाव में यह सभी मॉन्यूमेंट्स और स्पॉट्स उपेक्षा का शिकार हों। दुनियाभर में पढ़ी जाने वाली गीता की यहां छपाई होती है, तो वहीं नाथ संप्रदाय का फेमस गोरखनाथ मंदिर भी गोरखपुर में मौजूद है। देश की एक मात्र सोने और चांदी से बनी ताजिया, जहां गोरखपुर के इमामबाड़े में रखी हुई है, तो वहीं मुगलों के जमाने से बनी मस्जिद भी शहर में मौजूद है। बंसतपुर में बनी सराय जहां मुगलकाल की याद दिलाती है, तो वहीं गोरखपुर जेल में राम प्रसाद बिस्मिल के फांसी का तख्ता भी लोगों को अपनी ओर अट्रैक्ट करने के लिए काफी है। इतना ही नहीं अब दुनिया का सबसे लंबा प्लेटफॉर्म भी अपने शहर में भी है, अगर इसे भी टूरिस्ट स्पॉट के तौर पर डेवलप कर दिया जाए, तो न सिर्फ विदेशी सौलानियों की तादाद बढ़ेगी, बल्कि शहर में रोजगार के अवसर पैदा हो जाएंगे।