- कैबिनेट का फैसला, यूजी और पीजी वालों से भराया जाएगा दो साल का बॉन्ड

- राजकीय सेवा न करने पर एक करोड़ रुपये तक की पेनाल्टी

<- कैबिनेट का फैसला, यूजी और पीजी वालों से भराया जाएगा दो साल का बॉन्ड

- राजकीय सेवा न करने पर एक करोड़ रुपये तक की पेनाल्टी

LUCKNOW : lucknow@inext.co.in

LUCKNOW : राजकीय मेडिकल कॉलेजों से पढ़ाई करने वाले डॉक्टरों को अब कम से कम दो साल सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनी सेवाएं देनी होंगी। इसके लिए मेडिकल विद्यार्थियों से पढ़ाई के दौरान ही अनिवार्य सेवा का बॉन्ड भराया जाएगा। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी पूरी करने के उद्देश्य से चिकित्सा शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंगलवार को मंजूरी दे दी है। दरअसल निजी मेडिकल कॉलेजों के मुकाबले कम फीस अदा कर राजकीय मेडिकल कॉलेजों से डिग्री लेने वाले डॉक्टरों को कुछ समय तक सरकारी अस्पतालों में रोकने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने यह फार्मूला तैयार किया है।

फीस का अंतर करना होगा जमा

इसके तहत एमबीबीएस डॉक्टरों को सीएचसी-पीएचसी और एमडी एमसीएच डॉक्टरों को बड़े अस्पतालों या मेडिकल कॉलेजों में दो साल तक सेवा देनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उन्हें सरकार को निजी व राजकीय मेडिकल कॉलेजों में फीस के अंतर बराबर रकम वापस करनी होगी। विभाग ने पाठ्यक्रमों के मुताबिक यह रकम भी तय कर दी हैं। एमबीबीएस के लिए यह रकम क्0 लाख रुपये, एमडी के लिए भ्0 लाख रुपये और एमडी एमसीएच के लिए यह रकम एक करोड़ रुपये होगी। खास बात यह कि सेवा नहीं देने और सरकार को रकम वापस न करने पर विभाग डिग्री वापस ले लेगा। मालूम हो कि प्रदेश में अभी सिर्फ उन पीजी अभ्यर्थियों से बॉन्ड भराया जाता है जो एमबीबीएस करने के बाद प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) में आ गए हों। इन डॉक्टरों से क्0 साल के लिए बॉन्ड भराया जाता है। बीच में करार तोड़ने पर डॉक्टर को एक करोड़ रुपये सरकार को वापस करने पड़ते हैं, जबकि पीजी डिप्लोमा के लिए यह रकम भ्0 लाख रुपये है। अब यही फार्मूला प्रदेश सरकार ने राजकीय मेडिकल कॉलेजों से पढ़ाई करने वाले सभी विद्यार्थियों पर लागू कर दिया है। इसके लिए पिछले साल चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.केके गुप्ता की अध्यक्षता में समिति गठित की गई थी।

निजी क्षेत्र में मिलते हैं लाखों रुपये

सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पीजी कोर्स की फीस जहां करीब ब्0 हजार रुपये सालाना है, वहीं प्राइवेट कॉलेज में यह क्0 से ब्0 लाख रुपये प्रतिवर्ष के बीच है। इस तरह तीन साल के पीजी कोर्स के लिए सरकारी कॉलेज में महज सवा लाख रुपये खर्च होते हैं, जबकि प्राइवेट कॉलेज में यह खर्च फ्0 लाख से सवा करोड़ रुपये तक हो सकता है। यह फर्क कमाई में भी है। पीजी करने के बाद सरकारी कॉलेज में विशेषज्ञ डॉक्टर को जहां म्0-म्भ् हजार रुपये मिलते हैं, वहीं निजी क्षेत्र में शुरुआत ही लाखों रुपये से होती है। यही वजह है कि प्रदेश के सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों से हर पास होने वाले कुल करीब क्क्00 विशेषज्ञ पीजी डॉक्टरों में से क्0 फीसद यानी क्00 डॉक्टर भी हर साल सरकारी सेवा में नहीं आ रहे हैं।

नहीं बढ़े विशेषज्ञ डॉक्टर

पिछले कुछ दशकों में मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस डॉक्टरों की तो सीटें बढ़ीं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर बढ़ाने की चिंता नहीं की गई। नतीजा यह हुआ कि क्980 में 779 के मुकाबले एमबीबीएस की सीटें तो करीब पांच हजार सालाना तक पहुंच गईं, लेकिन सरकारी कॉलेजों में पीजी की सीटें तब और अब भी महज 700 ही रहीं। गनीमत रही कि इस बीच तीन दर्जन निजी मेडिकल कॉलेज अस्तित्व में आए और इनसे ब्00 सीटें और बढ़ गईं। फिर भी प्रति करोड़ आबादी के अनुपात में जितने विशेषज्ञ डॉक्टर क्980 में थे, वर्तमान में उसके आधे भी मौजूद नहीं है।