LUCKNOW : मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के अचानक से देश के सभी डॉक्टर्स को जेनेरिक दवाएं ही कैपिटल लैटर्स में लिखने के आदेश से हड़कंप मचा हुआ है। इस आदेश के बाद मरीज, मेडिकल स्टोर्स ओनर्स, डॉक्टर सभी परेशान हैं। न ही डॉक्टर्स और न ही मेडिकल स्टोर्स इस आदेश को लागू करने मे सभी के पसीने छूट रहे हैं। जानकार बताते हैं कि इसमें काफी व्यवहारिक समस्याएं हैं। इन्हीं समस्याओं को उजागर करती सुनील यादव की एक स्पेशल रिपोर्ट

1. समस्या

अस्पतालों में जेनेरिक दवाएं नहीं

आदेश तो जारी कर दिया गया, लेकिन न ही अस्पतालों के स्टोर और न ही प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स में जेनेरिक दवाएं उपलब्ध हैं। सरकार की ओर से प्रदेश में अब तक सिर्फ 162 जन औषधि केंद्र खोले गए हैं जिनमें से सिर्फ 10 लखनऊ में हैं। ऐसे में डॉक्टर दवाएं लिख भी देंगे तो दवा मिलेगी कैसे।

समाधान

पर्याप्त संख्या में जेनेरिक दवाओं के काउंटर खोले जाएं, सभी दवा की दुकानों में हर प्रकार की जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जाएं उसके बाद ही जेनेरिक दवाएं लिखी जाएं।

2. समस्या

मेडिकल स्टोर्स में फार्मासिस्ट नहीं

ज्यादातर मेडिकल स्टोर्स में ट्रेंड फार्मासिस्ट नहीं हैं। सिर्फ अंग्रेजी पढ़ सकने वाला व्यक्ति ही ब्रांड नाम पढ़कर दवा दे देते हैं। जेनेरिक दवाएं और उसकी सही डोज देखकर देने में दिक्कत हो रही है। डॉक्टर जेनेरिक दवा लिखकर देते हैं तो मेडिकल स्टोर वाले उसे वापस कर देते हैं और दोबारा दवा लिखवाकर लाने को कहते हैं।

समाधान-

सभी मेडिकल स्टोर्स पर ट्रेंड फार्मासिस्ट की 24 घंटे उपलब्ध सुनिश्चित की जाए। सभी मेडिकल स्टोर्स पर जेनेरिक दवाएं उपलब्ध हों। ताकि मरीज को बिना दवा के वापस न किया जाए।

3. समस्या

लोकल परचेज में भी हो लागू

सरकारी अस्पतालों में लोकल परचेज के नाम पर लाखों की ब्रांडेड दवाएं 'माननीयों' के लिए खरीदी जाती हैं। यह सभी दवाएं नामी कंपनियों की ब्रांडेड दवाएं होती हैं। इसके लिए डॉक्टर्स पर दबाव भी डाला जाता है। वे अब ब्रांडेड लिखे या जेनेरिक दवाएं।

समाधान

प्रदेश के सभी अस्पतालों में लोकल परचेज पर ब्रांडेड दवाओं की खरीद पर पूर्णत: रोक लगा दी जाए। रोक लगने से डॉक्टर भी बिना दबाव के जेनेरिक दवाएं लिख सकेंगे।

4. समस्या

सरकारी अस्पतालों में सभी दवाएं सप्लाई में नहीं होती। जिससे मरीज बाहर से दवाएं लिखने को कहते हैं। मरीज जेनेरिक दवाओं का पर्चा लेकर मेडिकल स्टोर पर पहुंचता है तो उसे पता ही नहीं है कि कौन सी दवा देनी है।

समाधान

सभी केमिस्ट को पहले जेनेरिक दवाओं की जानकारी दी जाए। ताकि वह मरीजों को वापस न करें।

5. समस्या

एक समान नहीं है MRP

अलग अलग कंपनियों की जेनेरिक दवाएं एक समान नहीं है। ऐसे में मेडिकल स्टोर वाले महंगी कंपनियों की दवा ही देंने का प्रयास करते हैं। सिप्रोफ्लाक्सिन सिप्ला में 12 रुपए और मैनकाइंड की दो रुपए की है। लेकिन कमीशन के कारण केमिस्ट 12 रुपए वाली ही बेचेगा। मतलब कमीशन का चक्कर जो डॉक्टर के पास था वह मेडिकल स्टोर के पास पहुंच जाएगा।

समाधान

जेनेरिक दवाओं के रेट्स समान किए जाएं। ताकि केमिस्ट मनमानी न कर सकें।

6. समस्या

कैसे लिखें कैपिटल लेटर

सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर्स की शिकायत है कि वे रोजाना 300 से 400 मरीज देख रहे हैं। हर मरीज के पर्चे पर जेनेरिक या मॉलीक्यूल का नाम लिखना संभव नहीं है। यह काम वही कर सकते हैं जो ओपीडी मे सिर्फ 30 से 40 मरीज देखते हैं। अगर सभी डॉक्टर कैपिटल लेटर में जेनेरिक नाम लिखने लगेंगे तो सरकारी अस्पताल की आेपीडी में झगड़ा बढ़ सकता है।

समाधान

अस्पतालों में डॉक्टर्स की कमी को दूर किया जाए। सीमित संख्या से अधिक मरीज देखने पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए।

7. समस्या

गुणवत्ता का तंत्र नहीं

मरीज से लेकर डॉक्टर्स तक में डर है कि जेनेरिक दवाएं असर नहीं करती। जबकि सरकार का दावा है कि ब्रांडेड और जेनेरिक दवाएं एक समान हैं। कई बार छोटी कंपनियों की जेनेरिक दवाएं घटिया क्वालिटी की होती हैं और असर नहीं करती हैं। इसको लेकर डॉक्टर्स परेशान हैं।

समाधान

सरकार दवाओं की क्वालिटी कंट्रोल पर संख्ती करे। हर दवा मार्केट में कडी जांच के बाद ही उतारी जाए। ताकि लोगों में और डॉक्टर्स में दवाओं का भरोसा बढ़े।

8. समस्या

मरीज डालते हैं दबाव

डॉक्टर्स के अनुसार मरीज भी डॉक्टर्स पर दबाव डालते हैं कि ब्रांडेड दवा लिखी जाएं ताकि वह जल्दी स्वास्थ्य हो जाए। लोगों में भ्रम है कि जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी घटिया होती है।

समाधान

सरकार को पब्लिक को जागरुक करने के लिए अभियान चलाने चाहिए। ताकि लोगों में दवाओं को लेकर बने भ्रम दूर हों।

9. समस्या

डॉक्टर्स को जानकारी नहीं

डॉक्टर्स को मेडिकल की पढ़ाई के दौरान पढ़ाया जाता है कि कौन सा फॉर्मूला किस दवा पर असर करेगा, लेकिन उसके बाद प्रैक्टिस के दौरान कंपनियों के एमआर ही बताते हैं कि कौन सा ब्रांड नाम लिखना है। बड़ी संख्या में डॉक्टर परेशान हैं कि अब कौन सी दवा किस बीमारी पर असर करेगी उसकी जानकारी फिर से पढ़े। यही नहीं कांबिनेशन वाली दवा को भी अलग-अलग फॉर्मूला लिखना पड़ेगा। जो काम एक दवा में होता था उसके लिए कई दवाएं देनी होंगी।

समाधान

मॉल्यूलर फॉर्मूला या जेनेरिक दवाओं के लिए डॉक्टर्स को समय समय पर जानकारी देनी होगी। ताकि वे डरे नहीं और लोगों को दवाएं लिख सकें।

एमसीआई का आदेश सराहनीय है। इससे दवा कंपनियों पर दवाएं सस्ती करने के लिए दबाव बढ़ेगा। सरकारी अस्पताल के डॉक्टर्स पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वहां पर सप्लाई की दवाएं आती हैं। लेकिन सरकार को कंपनियों के स्तर पर ही ब्रांडेड का सिस्टम खत्म कर देना चाहिए कोई दिक्कत नहीं होगी।

- डॉ। सचिन वैश्य, महासचिव, प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ