1300 स्कूल बसें रजिस्टर्ड हैं जिले में

800 शहरी इलाके में हैं रजिस्टर्ड

500 ग्रामीण इलाके में रजिस्टर्ड

-स्कूली बसों की मनमानी के खिलाफ शासन की निगाहें टेढ़ी

-सोमवार से शहर से गोपनीय तरीके से चलेगा अभियान

ALLAHABAD: स्कूल बसों में अगर सुप्रीमकोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है तो ऐसे बस संचालकों को अलग-अलग मद में चालान की राशि भरनी पड़ेगी। चाहे बस में सीसी टीवी लगाने की बात हो, फ‌र्स्ट एड बॉक्स हो, इमरजेंसी गेट या फिर चालक का पांच वर्ष पुराना कमर्शियल डीएल। इसके लिए जहां शासन की निगाहें टेढ़ी हो चुकी हैं। वहीं आरटीओ ऑफिस नामचीन स्कूलों के बाहर गाइडलाइन तोड़कर बस चलाने वालों के खिलाफ गोपनीय तरीके से व्यापक स्तर पर अभियान शुरू करने जा रही है।

बच्चों को छोड़ते ही होगी धरपकड़

इस समय स्कूलों में नए सत्र की पढ़ाई शुरू हो चुकी है। आरटीओ प्रशासन ने सुप्रीमकोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार सोमवार से अपने अभियान का आगाज करेगा। खास बात है कि आरटीओ सगीर अहमद की ओर से एआरटीओ प्रवर्तन रविकांत शुक्ला व उनकी टीम को स्पष्ट निर्देश दिया है कि बच्चों को स्कूल में छोड़ने के बाद ही संबंधित स्कूली बस के खिलाफ धरपकड़ का अभियान चलाया जाए। विभागीय कर्मचारियों की मानें तो टीम के सदस्य सादे वेश में स्कूलों के आसपास सुबह सात बजे से लेकर दोपहर दो बजे तक मौजूद रहेंगे।

किस मद में कितनी है चालान राशि

4000 रुपए होगा चालान

फ‌र्स्ट एड बाक्स, अग्निशमन यंत्र, दो इमरजेंसी गेट, सीसीटीवी, पांच वर्ष पुराना कमर्शियल डीएल और बस में कंडक्टर की सुविधा नहीं मिलती है तो।

800 रुपए का चालान कटेगा

अगर स्कूली बस का इंश्योरेंस नहीं मिलता है।

4000 रुपए चालान

अगर बस ने स्कूल से बिना परमिशन लिए दौड़ रही है।

1000 रुपए चालान

अगर एक साल से पुराना प्रदूषण सर्टिफिकेट बस संचालक के पास मिलता है तो।

यह है सुप्रीमकोर्ट की गाइडलाइन

-अग्नि शमन यंत्र

-फ‌र्स्ट एड बॉक्स

-दो इमरजेंसी गेट

-सीसीटीवी और पांच वर्ष पुराना कॉमर्शियल डीएल बस चालक के पास

-बस में कंडक्टर अनिवार्य रूप से

वर्जन

सुप्रीमकोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक सोमवार से अभियान चलाया जाएगा। स्कूलों के आसपास प्रवर्तन टीम के अधिकारी व कर्मचारी स्कूली बसों की फिटनेस कंडीशन की जांच पड़ताल करेंगे। अगर एक भी संसाधन की कमी मिलती है तो उसके हिसाब से चालान काटकर जुर्माना वसूला जाएगा।

-रविकांत शुक्ला, एआरटीओ प्रवर्तन