- साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के शोध में हुआ खुलासा

- रोजा लक्जमबर्ग स्टिफटंग, बर्लिन के सहयोग से हुआ है शोध

- चार जिलों के स्कूलों में किया गया अध्ययन

PATNA: बिहार में ढ़ाई दशक से अलग-अलग दल सामाजिक न्याय की बात करते हैं। सामजिक न्याय के नाम पर समाज को बदलने के लिए वोट के बल पर सरकार में पहुंचते हैं, लेकिन गरीब, महिलाएं दलितों की स्थिति में वैसी सुधार नहीं हो पा रही है। ये बातें साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली के समाजशास्त्र डिपार्टमेंट के हेड डॉ रवि कुमार ने कही। डॉ कुमार बर्लिन स्थित रोजा लक्जमबर्ग स्टिफटंग के सहयोग से पाठ्यक्रम, शिक्षाशास्त्र और सामाजिक परिवर्तन पर शोध पत्र जारी करने के अवसर पर अपने विचार रख रहे थे।

चार जिलों के सरकारी स्कूलों में शोध

बिहार के चार जिलों के ख्8 स्कूलों में अध्ययन के आधार पर रिपोर्ट तैयार किया गया है। शोध में क्लास ब्-8 तक के पाठ्य पुस्तकों का भी अध्ययन किया गया। शोध परियोजना के समन्वयक रवि कुमार, सहायक समन्वयक फहद हाशमी व अतुल चंद्र, क्षेत्रीय समन्वयक अनिल कुमार ने शोध कार्य में महत्वूपर्ण भूमिका निभाई है।

पाठ्य पुस्तकों की स्थिति स्तरहीन

बिहार सरकार की ओर से सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए तैयार की जाने वाली शिक्षण सामग्री में कई त्रुटियां हैं। कागज, प्रिटिंग की क्वॉलिटी, ले आउट, व्याकरण संबंधी त्रुटि के अलावा कई कमियां हैं। स्कूलों की पाठ्य सामग्री तैयार करने वाले कमिटी में वैसे लोग शामिल हैं, जिनके बच्चों ने सरकारी स्कूलों का चेहरा तक नहीं देखा है। इतना ही नहीं कई जगहों पर पुस्तकों में गलत जानकारी दी गई है।

शिक्षा समिति की सहभागिता सही नहीं

स्कूलों में शैक्षणिक स्तर को बनाये रखने के लिए ग्राम शिक्षा समिति का गठन किया गया है। ग्राम शिक्षा समिति की बैठकों में मात्र दस परसेंट ग्रामीण ही भाग लेते हैं।

दिसंबर में शोध के निष्कर्षो पर होगी चर्चा

ए एन सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान में भ्-म् दिसंबर को परिचर्चा रखा गया है। परिचर्चा में शिक्षक जगत के जाने-माने लोग, सामाजिक कार्यकर्ता सहित कई प्रमुख हस्तियों विचार रखेंगे।

-प्राइमरी स्कूलों में 8फ् परसेंट नियोजित टीचर्स हैं, मीडिल स्कूलों में यह संख्या म्क् परसेंट हैं।

-प्राइमरी स्कूल के क्9 परसेंट स्कूलों में शौचालय हैं, जबकि मीडिल स्कूलों में यह संख्या फ्म् परसेंट है।

-शिक्षक छात्र अनुपात प्राइमरी स्कूल स्कूलों में क्: म्ब् है, जबकि मीडिल स्कूलों में यह संख्या क्:79 है।

-प्राइमरी स्कूलों में क्लास-स्टूडेंट अनुपात क्:भ्म् है, जबकि मीडिल स्कूलों में यह क्:भ्9 है।

- विशेष आवश्यकताग्रस्त बच्चों के शिक्षा का अधिकार में निर्धारित आवश्यकताओं की पूर्ति किसी भी स्कूल में नहीं है।