ये जानकारी सरकार ने दंगों की जांच कर रही एक समिति को दी है। दंगों के दौरान टेलिफ़ोन कॉल रिकॉर्ड और अधिकारियों की गतिविधियों से जुड़े दस्तावेज़ों को उन्हें तैयार करने के पांच साल बाद 2007 में ही नष्ट कर दिया गया था।

अधिकारियों का कहना है कि ये सामान्य प्रक्रिया है और सिविल सेवा नियमों के अनुरूप है। 2002 के दंगों में 1,000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे।

गुजरात दंगे

साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग में 60 हिंदुओं के मारे जाने के बाद गुजरात में दंगे भड़के थे। हालांकि ट्रेन में आग लगने की सही वजह क्या थी, इसके बारे में पुख़्ता जानकारी अभी तक सामने नहीं आ सकी है। हिंदू समुदाय का आरोप है कि ट्रेन में आग मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने लगाई थी, लेकिन पहले की एक जांच में ये कहा गया था कि आग महज़ एक दुर्घटना थी।

बाद में गुजरात की एक विशेष अदालत ने गोधरा कांड को एक साज़िश करार देते हुए 31 लोगों को दोषी ठहराया था। गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। इन आरोपों के बाद कि गुजरात सरकार दोषियों को सज़ा दिलाने की पूरी कोशिश नहीं कर रही, सुप्रीम कोर्ट ने दंगों की जांच के लिए 2008 में एक समिति का गठन किया था।

दंगों की जांच कर रही जस्टिस नानावटी कमेटी को सरकारी वकील एसबी वकील ने जानकारी दी है कि दंगों से जुड़े कुछ दस्तावेज़ नियमानुसार नष्ट कर दिए गए हैं। एस बी वकील ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, ''सामान्य सरकारी नियमों के अनुसार टेलिफ़ोन कॉल रिकॉर्ड, गाड़ियों की लॉगबुक और अधिकारियों की गतिविधियों से जुड़ी डायरी एक निश्चित समय के बाद नष्ट कर दी जाती है.''

आरोप

इसी साल अप्रैल में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ लेकर ये आरोप लगाया था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जान-बूझकर राज्य में मुसलमानों के ख़िलाफ़ दंगा भड़कने दिया।

इन आरोपों के जवाब में सरकारी वकील एसबी वकील का कहना है कि भट्ट को ये बात मालूम है कि सरकारी दस्तावेज़ मौजूद नहीं हैं इसके बावजूद वो उन्हें सामने लाने की मांग कर रहे हैं।

हालांकि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ भी ग़लत करने के आरोपों से हमेशा इनकार किया है। गुजरात सरकार ने आरोपों के जवाब में कहा है कि दंगों की जांच कर रही एक विशेष समिति के सामने उसने अपना पक्ष रख दिया है और अब उसे अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार है।

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