- पाटलिपुत्रा सीट पर असर डाल सकते हैं गुजराती वोटर्स

- सत्तर साल से रह रहे गुजराती समुदाय को अब भी प्रॉब्लम

<- पाटलिपुत्रा सीट पर असर डाल सकते हैं गुजराती वोटर्स

- सत्तर साल से रह रहे गुजराती समुदाय को अब भी प्रॉब्लम

PATNA: patna@inext.co.in

PATNA: हमारो मुहल्लो सुधार करी दियो गनकी बहुत छे, इतने बरसिन आया देबिसी। गुजरातियों का यह तीसरी पीढ़ी का दर्द है। जिसके मुहल्ले की हालत खराब है, गंदगी है सालों से रह रहे हैं वोट डालते हैं, फिर भी कोई सुधार पर ध्यान नहीं देता। कमला नेहरू में रहने वाली गुजराती फैमिली का दर्द अब सत्तर साल पुराना हो गया है। तीसरी पीढ़ी युवा है। महिलाएं काम करती हैं। कम पढ़े-लिखे होने के बाद भी फैशन और स्टाइल के दीवाने हैं। महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं, तो मंदिर में गुजराती मां 'जय मां खोरियल' और बिहार की मां 'पटना देवी' एक साथ विराजमान हैं। सुबह-शाम कीर्तन और भजन होता है। युवा गेम और टैटू के शौकीन हैं। शाम में जब जुटते हैं, तो एक दूसरे को भाई-भाई कह कर बुलाते हैं, क्योंकि गुजरात में हर लड़का भाई और लड़की बेन होती है।

वही अपना भाई, जो विकास करे

पांच सौ वोटर्स की तादात वाले गुजराती फैमिली के दर पर अभी बीजेपी के समर्थक का आना-जाना बना हुआ है। गुजराती हैं इसलिए नरेंद्र मोदी की दुहाई दी जा रही है। पर, गौरी बेन, गूंजा बेन, अलका बेन, रोशनी बेन मानती हैं कि भाई वही जो विकास करे। इसके लिए जरूरी नहीं कि वो गुजरात का ही रहने वाला हो, हमारी प्रॉब्लम सुनने को कोई तैयार नहीं है तो फिर हम ऐसे भाई के साथ होंगे, जो हमारी मुसीबत और प्रॉब्लम को अपना दर्द समझे। एक ही मंदिर में बिहारी और गुजराती देवी रहती हैं।

भाई-भाई छो साथ ही वोट दूंगा

अमन भाई गुजराती, अजय भाई गुजराती, श्याम भाई गुजराती, अनिल भाई गुजराती बताते हैं कि गुजराती भाई-भाई होते हैं। हमारा वोट इकट्ठा जाता है, इसलिए यह देखना जरूरी है कि हमारी प्रॉब्लम को सुन सकने की ताकत किसमें है। वो किसी भी पार्टी का हो, उससे हमलोगों को कोई लेना देना नहीं है। साल में एक बार गुजरात जाने वाले गुजराती भाई बताते हैं कि नवरात्र से लौटने के बाद पूरी फैमिली पटना में ही गुजर बसर करते हैं। पैन कार्ड बन गया, वोटर कार्ड बन गया, पर इनसे कुछ फायदा अब तक नहीं मिल पाया।

कमला नेहरू का एरिया

क्भ्000 की आबादी में सात हजार्स वोटर हैं। इसमें कई जाति के लोग रहते हैं। गुजराती समुदाय सत्तर साल से रह रहे हैं। इनके वोटर्स की तादात पांच सौ के आसपास है, पर यहां की हालत काफी खराब है। स्कूल की जमीन पर कचरा पसरा रहता है। सात चापाकल में चार खराब हो चुका है। एक कुआं और तीन चापाकल के भरोसे इतनी आबादी चल रही है।

नरेंद्र मोदी आएं, तो पता चल जाए

बिहार में गुजराती की तादात काफी अधिक है। गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली में हुए ब्लास्ट में सुपौल में गुजरात की एक लड़की ने नरेंद्र मोदी से बातचीत की थी। यही उम्मीद इन लोगों की भी है कि अगर नरेंद्र मोदी हर किसी से मिलते-जुलते हैं तो एक बार वो यहां आकर देखें हमलोगों की हालत क्या है।

वोटर कार्ड है। कैंडिडेट उम्मीद दिलाकर चले जाते हैं। पांच साल का लंबा टाइम होता है, इसलिए समझ में नहीं आता है कि जिसे वोट दूंगा क्या वो पांच साल से पहले कभी लौटकर हमारी बस्ती में आएगा।

अनिल भाई गुजराती

मैं यहां आयी, फिर बेटी यहीं हुई और नाती-पोते भी हुए। हालत अब तक सुधर नहीं पाया है। कई दफा मिनिस्टर से लेकर ऑफिसर्स तक के पास जाती रही, पर किसी ने हमारी प्रॉब्लम नहीं सुनी। अब तो उम्मीद भी नहीं है।

गौरी बेन