RANCHI: झारखंड के गुमला जिला से सबसे ज्यादा मानव तस्करी हो रही है। पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज मामलों के मुताबिक, वर्ष 2014 में गुमला में 42 मामले मानव तस्करी के दर्ज किए गए। वहीं, वर्ष 2015 के अगस्त माह तक 54 मामले दर्ज किए गए हैं। सीआईडी की ओर से ऑपरेशन मुस्कान के तहत दिल्ली समेत अन्य राज्यों में चलाए गए रेस्क्यू में गुमला के अधिकतर बच्चे पाए गए।

गुमला के बाद मानव तस्करी के ज्यादातर मामले चाईबासा, गढ़वा, खूंटी, रांची, सिमडेगा, साहेबगंज, लोहरदगा, गोड्डा और लातेहार जिलों में दर्ज किए गए हैैं। इन जिलों की युवतियां झांसे में आकर एजेंटों के चंगुल में फंसती रही हैं।

दिल्ली, हरियाणा, मुंबई में बेची जा रही बेटियां

दिल्ली के साकेत नगर, नोएडा के मानसा, संगरूर, मलेर कोटला, नवांशहर व लुधियाना, मानसा जिले के गांव मघनिया में झारखंड की ज्यादातर बेटियां बेची जा रही हैं। वहीं, हरियाणा के साथ अब ट्रैफिकिंग का जाल मुंबई, बेंग्लुरु, राजस्थान सहित केरल तक पहुंच गया है।

ऐसे होता है शोषण

खरीद-बिक्री कर युवतियों का शारीरिक शोषण, बिन ब्याही मां बनाना, भीख मंगवाना, ईट-भट्ठों के कार्यो में लगाया जा रहा है।

ऐसे फंस रहीं युवतियां

रोजगार के नाम पर कई प्लेसमेंट एजेंसियां झारखंड के ग्रामीण आदिवासी बहुल इलाकों की अशिक्षित तथा कम पढ़ी-लिखी किशोरी व युवतियों को बड़े शहरों व महानगरों की राह दिखाती हैं। गरीबी की मार झेल रही ये युवतियां प्रलोभन में पड़कर इनके झांसे में आ कर बिचौलिए व अन्य असामाजिक तत्वों के चंगुल में फंस रही हैं। झारखंड में मानव तस्करी का पांव बड़े इलाके में पसरा हुआ है। इसका सबसे ज्यादा असर झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पड़ रहा है। मानव तस्करी का मुख्य उद्देश्य यौन शोषण व बंधुआ मजदूरी कराना है।

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झारखंड में क्यों बढ़ रही मानव तस्करी

प्राकृतिक खनिज संपदाओं से संपन्न होने के बावजूद झारखंड की जनता गरीबी का दंश झेल रही है। पिछड़े व आदिवासी समुदाय, जिसे न तो पर्याप्त शिक्षा मिल पा रही है और न रोजगार के अवसर। ऐसे में एजेंटों के प्रलोभन, दिखावा और वादों के फरेब में आकर बिचौलियों के चंगुल में ये फंसती चली जा रही हैं। इस प्रकार के कार्यो में अधिकतर लोकल एजेंट संलिप्त होते हैं। कई बार ऐसी युवतियां भी इस तरह के कार्यो में शामिल होती हैं, जो पहले खुद मानव तस्करी का शिकार हो चुकी होती हैं और अब दलाल के रूप में काम करती हैं। ये बाहर से आने के बाद अपने रहन-सहन और पहनावे से दूसरों को आकर्षित करती हैं और उन्हें भी अमीरों जैसा जीवन जीने के लिए महानगरों की ओर जाने के लिए प्रेरित करती हैं। उकसाती हैं।

रांची में दीया सेवा संस्था लगातार एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए कार्य करती आ रही है। मेंबर वैद्यनाथ कुमार के अनुसार, 2010 में जहां रिपोर्ट केवल 25 की थीं, वहीं 2015 के पहले तीन माह में 70 हो गई।