1 . इनके नाम के आगे पंडिता लगा है। इस पंडिता शब्द के बारे में आप क्या जानते हैं। दरअसल अपने समय में वह संस्कृत की विद्वान थी। ये बात कहते हुए उस समय की याद इसलिए दिलाई जा रही है, क्योंकि उस समय महिलाओं की पढ़ाई को लेकर काफी संकट थे। इसी वजह से इनके नाम के आगे पंडिता लगने लगा था। अब जरा जानिए कि आखिर कैसे पाई इन्होंने संस्कृत की शिक्षा।

2 . आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इन्होंने अपने पिता से संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था और 12 वर्ष की उम्र में ही 20 हजार श्लोक इनको मुंह जुबानी याद हो गए थे।

3 . इनके पिता को साधु-संतों की मेहमानदारी करना बहुत अच्छा लगता था। उनकी ऐसी ही मेहमानदारी ने उनको गरीब बना दिया। फिर क्या था उन्हें अपनी पत्नी और रमा की एक बहन व भाई के साथ गांव-गांव में पौराणिक कथाएं सुनाकर पेट पालना पड़ा था। इन परिस्थितियों में भी पंडिता रमाबाई ने हार नहीं मानी थी और लगातार अपने पिता से संस्कृत सीखती रहीं थी।

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4 . इसके बाद अपने समय में इन्होंने महिलाओं के अधिकार और उनकी शिक्षा को लेकर कई बड़े काम किए। इनके उन कामों का काफी सकारात्मक असर भी देखने को मिला, जिसे ये दुनिया आज भी भुला नहीं सकती।

पंडित तो बहुत सुने होंगे ये पंडिता थीं,मिशन था महिला अधिकार और शिक्षा

5 . इनके द्वारा चलाए गए मिशन की बात करें तो इन्होंने मुक्ति मिशन की शुरुआत की। अब आप सोच रहे होंगे कि क्या है ये मुक्ित मिशन। बता दें कि ये मिशन ही घर और समाज से ठुकराई गई महिलाओं और बच्चों का ठिकाना था। इसके तहत इन्होंने कई बेघर बच्चों और महिलाओं की आगे से आगे बढ़कर मदद की।

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6 . मुंबई में इन्होंने उस समय शारदा सदन की शुरुआत की। ये शुरुआत इन्होंने उस समय के बंबई में सिर्फ 20 लड़कियों के साथ की थी।

7 . इन्होंने ही आर्य महिला समाज के जरिए ऊंची जाति की महिलाओं को लड़कियों की शिक्षा की कोशिश में जुटाया। उनको ज्यादा से ज्यादा इस बात का समर्थन करने पर जोर दिया।

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8 . पंडिता रमाबाई को एक या दो नहीं बल्कि सात भाषाओं का ज्ञान था। काफी समय बाद चलकर इन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया और ईसाई बन गईं। इसके बाद इन्होंने एक और बड़ा काम किया।

9 . ईसाई बनने के बाद इन्होंने ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक बाइबल का अनुवाद मराठी में भी किया।

10 . 1919 में ब्रिटिश सरकार ने इनको कैसर-ए-हिंदी के तमगे से भी नवाजा।

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