जिंदगी की सच्चाईयों का आईना दिखाने वाले गीतों को जिन लोगों में आवाज दी उनमें से एक नाम मुकेश का भी था. भले ही उन्हें लगता था कि लोग उन्हें जोकर समझते थे पर सच ये है कि वो दर्द की वो पहचान थे जिससे कोई भाग नहीं सकता. बॉलिवुड में मुकेश का फर्स्ट सांग ही हमें बता देता है कि वो जिंदगी को कितने करीब से पहचानते थे. यही वजह है कि उनका फर्स्ट सांग कहता है 'दिल जलता है तो जलने दे आंसू ना बहा फरियाद ना कर'. इस गाने में स्क्रीन पर उस टाइम के फेमस एक्टर मोतीलाल थे और लहजा फेमस सिंगर के एल सहगल को था पर सच मुकेश का ही था.

 

मुकेश चंद्र माथुर मुंबई में मुकेश के नाम से ही जाने जाते रहे और अपने टाइम के सभी फेमस प्लेबैक सिंगर्स से टफ कंपटीशन करते हुए उन्होंने अपनीMukesh singer आइडेंटिटी मेंटेन रखी और 'जिंदा हूं मैं इस तरह....' गाते हुए अपनी सहजता भी इस आर्टिफीशियल वर्ड में कायम रखी. बेशक उन्हें नेशनल अवॉर्ड 1974 में गाए फिल्म 'रजनीगंधा' के सांग 'कई बार यूं भी देखा है....' के लिए मिला हो पर सीधे सादे मुकेश हमेशा नजर आए 'किसी की मुस्कफराहटों पे हो निसार....' गाते हुए.

1976 में जब अमेरिका टुअर पर उनकी डेथ हुई तो लोग एकबार तो यकीन ही नहीं कर सके कि कह पाते कि 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना....' और 'ये मेरा दीवानापन है या मुहब्ब६त का नशा...' कहते हुए वो बस अपनी दीवानगी में गुजर गए. बाद में उनके बेटे नितिन मुकेश ने उनकी लेगसी आगे ले जाने की कोशिश की पर वो चल नहीं सकी और आज मुकेश के ग्रैंड सन नील नितिन मुकेश पर्दे के पीछे नहीं पर्दे के सामने अपनी पहचान बनाने की कोशिश में लगे हैं. लेकिन 'कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है...' कि वो 'पल दो पल का शायर...' कुछ दिन और गुनगुनाता तो हिंदी प्लेबैक सिंगिंग की हिस्ट्री  कुछ और रिच हो जाती.

 

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