ऐसा मेरे साथ पहले हो चुका था जब मैंने वहीदा रहमान को (इंटरनेट पर दी गई जानकारी के मुताबिक़ उनका जन्मदिन 14 मई को होता है) 14 मई की सुबह फ़ोन किया और उनके नौकर ने फ़ोन उठाने के साथ ही कहा, "मैडम आज उनका जन्मदिन नहीं है. मैं तंग आ गया हूं सबको जवाब देते देते." ये कहकर उसने फ़ोन काट दिया. इसीलिए मैंने अभिनेता पंकज कपूर से ये पूछना ठीक समझा. राहत ये रही कि उनका जन्मदिन वाक़ई 29 मई ही है.

अभिनेता पंकज कपूर पूरे 60 साल के हो गए हैं. उन्होंने 'मक़बूल', 'जाने भी दो यारों' और 'मटरु की बिजली का मंडोला' जैसी फ़िल्मों में कमाल का काम किया है. पंकज कपूर ने मशहूर टीवी सीरियल 'करमचंद जासूस', 'ज़बान संभाल के' और 'ऑफ़िस ऑफ़िस' में भी उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी.

एक 'मिडिल क्लास' आदमी

Pankaj Kapur

मैंने बातों ही बातों में पंकज कपूर से उनके मुंबई में रहन सहन के बारे में पुछा और उनका जवाब सुनकर मैं दंग रह गई. उन्होंने मुझसे कहा, "मैं मुंबई शहर में एक मिडिल क्लास ज़िंदगी जीता हूं. आप आइए मेरे घर पर चाय पीजिये, खाना खाइए और आपको महसूस हो जाएगा कि मेरी ज़िंदगी कैसी है."

आजकल इतने सारे नए चेहरे भी बॉलीवुड में देखने को मिल रहे हैं. हाल ही में अभिनेता जैकी श्रॉफ़ के बेटे टाइगर श्रॉफ़ की भी फ़िल्म 'हीरोपंती' आई जो बॉक्स ऑफिस पर अच्छी खासी चल पड़ी. तो मैंने पंकज से पूछा कि आप तो चलते फिरते एक्टिंग के स्कूल हैं क्या आप इन 'न्यू कमर्स' को कोई सलाह नहीं देना चाहेंगे?

पंकज ने फट से बोला, "वो मुझसे इतना ज़्यादा आगे हैं कि मैं उन्हें क्या एडवाइस दूंगा. वो सब बहुत कमाल के कलाकार हैं और अपनी पहली ही फ़िल्म में वो कमाल का काम कर जाते हैं." उन्होंने आगे कहा, "मेरे पास सिखाने को कुछ नहीं है लेकिन उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है. ये मुझे अंदर से महसूस होता है और इसलिए मैं आपसे ये कह रहा हूं."

'कभी अपनी इमेज नहीं बनाई'
हर एक अभिनेता का अपना एक 'ड्रीम रोल' होता है जो वो करना चाहता है क्योंकि उसे मन ही मन ये लगता है कि वो उसे बेहतर तरीके से कर पाएगा और वो उस किरदार की एक तस्वीर सी बना लेते हैं.

जब मैंने यही बात पंकज कपूर से पूछी तो वो बोले, "देखिये मैंने इसी 'इमेज' से ही तो 30-35 साल भागने की कोशिश की है. मैं किसी ऐसी चीज़ में ना फंसू कि मुझे कहा जाए कि ये तो सिर्फ़ विलन का रोल ही कर सकता है या हीरो के दोस्त का किरदार निभा सकता है." वो आगे कहते हैं, "मेरे विचार में जो भी किरदार आपको दिया जाता है वो बिल्कुल नया होता है. उसके नएपन का ही सुख है क्योंकि उसे ढूंढ कर बनाने का मज़ा ही अभिनय है."

Shahid in Mausam

'शाहिद का होना ज़रूरी नहीं'
फ़िल्म 'मौसम' पंकज कपूर की बतौर निर्देशक पहली फ़िल्म थी जिसमें उन्होनें अपने बेटे शाहिद कपूर को लिया था. 'मौसम' बॉक्स ऑफ़िस पर फ़्लॉप हो गई. मैंने जब पंकज से इस बारे में पुछा तो उन्होनें बड़ी सरलता से कहा, "देखिये मौसम बहुत बड़ी फ़िल्म थी, बहुत मुश्किल फ़िल्म थी और मेरी पहली फ़िल्म थी."

उन्होँने आगे कहा, "वो फ़िल्म बनाना बड़ा मुश्किल साबित हुआ. उसको बनाते वक़्त मैंने काफी कुछ सीखा और समझा. मेरी सोच से मैंने मौसम में रोमांस को दर्शाया और उसे जनता तक पहुंचाने की कोशिश की."

उन्होंने मुझे ये भी बताया कि अभी वो कुछ स्क्रिप्ट्स पढ़ रहे हैं और जल्द ही वो दूसरी फ़िल्म का निर्देशन कर सकते हैं. और पंकज ने साफ़ कर दिया कि उनकी दूसरी फ़िल्म में भी शाहिद कपूर ही रोल कर रहे हों, ऐसा ज़रूरी नहीं.

पंकज कपूर जिस साफ़ ज़ुबान से अपनी बात कहते हैं उसे देखकर मैं काफ़ी प्रभावित हुई. मैंने उनसे कहा कि आपकी ज़बान काफ़ी साफ़ है तो उन्होंने कहा कि इसका श्रेय रेडियो को जाता है. उन्होंने रेडियो सुनना आल इंडिया रेडियो के उर्दू प्रोग्राम से शुरू किया जिसकी सलाह उन्हें उनके पिता ने दी थी.

60 साल के पंकज कपूर से बात करके मुझे हाथ में गाजर पकड़ा वो करमचंद जासूस याद आ गया और 'ज़बान संभाल के' का वो टीचर. आशा यही करती हूं कि पंकज आने वाले कई वर्षों तक अपने हास्य और बेहतरीन अभिनय से हम सबका मनोरंजन करते रहेंगे!

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