कान में तेल डालने का शौक मानसून सीजन में लोगों के लिए बना मुसीबत

डेढ़ महीने में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की ओपीडी में कान में फंगस के मरीज बढ़े

ईएनटी विभाग में कुल मरीजों के 55-70 फीसदी टेंपरेरी बहरेपन के शिकार मिले

BAREILLY:

बरेली शहर में टेंपरेरी हियरिंग डिसेबिलिटी की दिक्कत से जूझ रहे मरीजों का आंकड़ा पिछले डेढ़ महीने में तेजी से बढ़ा है। टेंपरेरी हियरिंग डिसेबिलिटी या बहरेपन के लिए इस बार शहर का शोर शराबा जिम्मेदार नहीं। इस बार कान को साफ रखने का घरेलू नुस्खा ही लोगों के कान का दुश्मन साबित हो रहा। कान में तेल डालने के शौकीन लोग ओटो माइकोसिस बीमारी से जूझ रहे हैं। ओटो माइकोसिस कान में फंगस होने की बीमारी है। जिसमें पीडि़त को टेंपरेरी बहरपेन की शिकायत होती है। समय पर इलाज न मिलने से यह समस्या परमानेंट बहरेपन की वजह बनती है।

तीन चौथाई केसेज बहरेपन के

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की ओपीडी के ईएनटी विभाग में 175 से 225 मरीज तक रोजाना आ रहे। यह आंकड़ा जनवरी से जून 2015 के मुकाबले करीब 35 फीसदी ज्यादा है। पिछले डेढ़ महीने में जुलाई मिड से अगस्त के बीच मरीजों का बढ़ा आंकड़ा टेंपरेरी बहरेपन के शिकार पीडि़तों का है। ईएनटी विभाग में कान की परेशानी से जूझ रहे कुल मरीजों के 55-70 फीसदी ओटो माइकोसिस रोग से ही पीडि़त है। इन पीडि़तों में भी 30-55 साल एजग्रुप के मरीजों की तादाद सबसे ज्यादा है।

खतरनाक है कान में तेल डालना

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंच रहे मरीजों में टेंपरेरी बहरेपन की बीमारी की असल वजह कान में सरसो का तेल डालना है। दरअसल कान में सरसों का तेल, जड़ी बूटी का तेल या फूलों का रस डालने के चलते कान में नमी बढ़ जाती है। सर्दी और गर्मी में कान में तेल डालने का शौक मानसून में अपना असर दिखाता है। दरअसल फंगस नमी और अंधेरे में डेड ऑर्गेनिक के ऊपर तेजी से बढ़ती है। मानसून का सीजन इसके लिए मुफीद बनता है। कान में डाला गया तेल कान से नेचुरली निकलने वाले वैक्स के साथ मिलकर फंगस के पनपने के लिए बेहतर ऑर्गेनिक मैटर मुहैया कराता है। धीरे धीरे यह फंगस कान की अंदरूनी परत, बोन और कॉर्टिलेज को खराब कर बाहरी पर्दे पर असर डालना शुरू कर देता है।

खुजली बीमारी की पहली पहचान

सुनने की शक्ति के लिए कान में भी नर्व होती है। ओटो माइकोसिस में इन नर्व के आखिरी छोर या नर्व एंडिंग तक फंगस की पहुंच हो जाती है। फंगस नर्व एंडिंग को पेनिट्रेट या छेद देता है। जिससे कान में इचिंग या खुजलाने की समस्या शुरू हो जाती है। जैसे जैसे फंगस फैलता जाता है, कान में खुजली की समस्या से मरीज की परेशानी बढ़ जाती है। कान खुजलाने के चलते कान की अंदरुनी लियर में घाव होने लगता है। बार बार इंचिंग प्रॉब्लम होने से कान के अंदर घाव बढ़ जाता है। जो पहले कान का बाहरी पर्दा और फिर कान की हड्डी व कॉर्टिलेज को नष्ट कर देता है। जिससे कान बहने की दिक्क्त शुरू हो जाती है।

अन्य बीमारियों का भी खतरा बढ़ा

कान में तेल डालने का शौक सिर्फ ओटो माइकोसिस बीमारी की ही वजह नहीं बनता। कान का बाहरी पर्दा या झिल्ली फटने और कान बहने की दिक्कत शुरू होते ही रॉड्स, कॉकई और स्यूडोमोनास बैक्टीरिया-वायरस भी एक्टिव हो जाते हैं। जो कान में घाव होने से ब्लीडिंग के चलते अन्य बीमारियों फैलाने की वजह बनते हैं। इससे कान के अंदर फोड़े फुंसी होना और कान का अंदरुनी पर्दा तक डैमेज होना जैसी दिक्कत होती है। इससे पीडि़त को परमानेंट हियरिंग डिसेबिलिटी या स्थाई बहरेपन की समस्या हो जाती है।

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मोबाइल-ईयरप्लग बने कान के दुश्मन

शहरी शोर शराबे और कान में तेल डालने के अलावा मोबाइल व ईयरप्लग का बेहिसाब इस्तेमाल भी लोगों की हियरिंग एबिलिटी को खत्म कर रहा है। ईएनटी एक्सपर्ट ने बताया कि मोबाइल और ईयरप्लग से म्यूजिक सुनने की आदत ने यूथ में टेंपरेरी बहरपेन की शिकायत बढ़ा दी है। मोबाइल से निकलने वाली रेडियों फ्रीक्वेंसी कान के अलावा पूरे शरीर पर धीरे धीरे बुरा असर डालती है। एक्सपर्ट ने बताया कि माइक्रोवेव में खाना पकाने के लिए जिस रेडियो फ्रीक्वेंसी का यूज होता है,वही मोबाइल से भी निकलती है। एक्सपर्ट ने बताया कि 40 साल की एज में ही कान में लो इंटेसिटी की हियरिंग वाली समस्या देखने को मिल रही है। जो पहले 60 साल में देखने को मिलती थी। वहीं शहर में बढ़ता नॉएस पॉल्युशन भी इसके लिए जिम्मेदार है।

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इसका रखें ध्यान, सेफ रहेगा कान

- कान में सरसो का तेल, घी, शहद, गेंदे का रस या जड़ी बूटी न डाले

- कान को साफ कराने के लिए अनस्किल्ड लोगों की मदद न लें।

- राह चलते कान साफ करने वालों से कान की सफाई कतई न कराएं।

- कान को सूखा ही रहने दे। डॉक्टरी सलाह पर ही दा डालें।

- बरसात के सीजन से पहले कान की जांच व सफाई जरूर करा लें।

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कान में तेल डालना बेहद खतरनाक आदत है। इससे कान में फंगस फैलने की समस्या बढ़ जाती है। मानसून का सीजन इस बीमारी का सबसे बेहतर समय है। ओपीडी में इस समय 70 फीसदी मरीज कान में फंगस यानि ओटो माइकोसिस बीमारी से पीडि़त आ रहे। यह टेंपरेरी बहरेपन की समस्या है। जो समय पर इलाज न कराने पर परमानेंट बहरेपन की वजह बनती है। - डॉ। एसके यादव, सीनियर ईएनटी एक्सपर्ट, डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल