- नहीं कम हो सका बच्चों पर स्कूल बैग का बोझ

- स्कूल मैनेजमेंट और बुकसेलर्स की सांठगांठ में पिस रहे माता-पिता

- एचआरडी मंत्रालय की गाइडलाइन को नहीं मान रहे स्कूल

- प्रो। यशपाल कमेटी की सिफारिशों को किया गया दरकिनार

shyamchandra.singh@inext.co.in

LUCKNOW: भले ही सेंट्रल गवर्नमेंट और एचआरडी मंत्रालय को बच्चों की फ्रिक हो, लेकिन सिटी के स्कूल मैनेजमेंट को इसकी कोई फ्रिक नहीं है। नन्हे कंधों से स्कूली बैग का वजन कम करने के लिए गवर्नमेंट की ओर से गाइडलाइन की गई, लेकिन कोई भी स्कूल मैनेजमेंट इसे फालो करने को तैयार नहीं है। नतीजा यह है कि स्कूलों की मनमानी के कारण बच्चे ज्यादा बोझ ढोने पर मजबूर हैं।

जेब तो हल्की होनी है

ऐसे में स्कूलों और बुक्ससेलर्स की सांठगांठ से पैरेंट्स की जेब तो हल्की हो ही रही है, वहीं बच्चों के बैग का वजन बढ़ता चला जा रहा है। हालांकि सब कुछ जानने के बाद भी प्रशासन कोई कार्रवाई से बच रहा है। वहीं सूत्रों का कहना है कि सेंट्रल गवर्नमेंट एक बार फिर नए सिरे से स्कूल बैग को लेकर गाइडलाइन जारी करने वाला है।

ऑर्डर के बाद भी नहीं हुआ सुधार

पिछले साल दिल्ली में भारी-भरकम स्कूल बैग कंधों पर टांगने के बाद एक क्लास छह के बच्चे के साथ हादसा हुआ था। इसके बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय व सीबीएसई ने स्कूलों के लिए स्कूल बैग को लेकर गाइडलाइन जारी की थी। मंत्रालय ने एनसीईआरटी से भी बैग का बोझ कम करने वाला सिलेबस तैयार करने की बात कही थी। इन तमाम कोशिशों के बावजूद पुराना ढर्रा अभी तक जारी है। सिटी में कुछ बड़े स्कूलों में तो लॉकर की सुविधा स्टूडेंट्स को उपलब्ध करवाई जा रही है, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं जहां लॉकर की सुविधा नहीं है। पूरा सिलेबस रोजाना स्कूल बैग में ही बच्चों को लेकर जाना पड़ता है।

कई स्कूलों में लॉकर की सुविधा नहीं

वैसे तो सिटी में कई बड़े हाई प्रोफाइल स्कूल हैं। जो अपने यहां हर तरह की सुविधा होने की बात कहते हैं, लेकिन वह बच्चों को दी जाने वाली बेसिक सुविधा मुहैया नहीं करा पा रहे हैं। सीबीएसई स्कूलों में स्टडी मटेरियल रखने के लिए लॉकर की सुविधा प्रदान करने की ऑडर है। इसके बाद भी कई स्कूल अभी तक इससे वंचित हैं। बोर्ड ने इन स्कूलों को मान्यता तो प्रदान कर दी है, लेकिन उसके साथ जुड़ी शर्तो को स्कूल पालन कर रहे हैं या नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं है।

यशपाल कमेटी ने की थी सिफारिश

क्99फ् में प्रो। यशपाल कमेटी ने स्कूल बैग का वजन कम करने की सिफारिश की थी। इसके बाद एचआरडी मंत्रालय ने एनसीईआरटी से दोबारा से स्कूल सिलेबस तैयार करने की बात कहीं थी। इसका मुख्य उद्ेश्य बैग का बोझ कम करना था। सीबीएसई ने भी अलग से स्कूलों के लिए गाइडलाइन जारी की थी। जिसमें स्कूलों में लॉकर बनाने व छोटी क्लासेस में एग्जाम न लेने, जरूरत का स्टडी मटेरियल ही रोजना बुलवाने जैसे नियम बनाए गए थे, लेकिन इन नियमों को मानना स्कूलों के लिए कम्पलसरी नहीं रखा गया था।

स्कूल बैग पर किसी का ध्यान नहीं

हाल ही में सिटी के स्कूल बुक्स व यूनिफॉर्म को लेकर काफी हंगामा मचा था। पैरेंट्स ने स्कूल व स्टेशनरी संचालकों के बीच चल रही सांठगांठ का विरोध किया था। इसके बाद भी स्थानीय प्रशासन किसी हरकत में नहीं आया। इसका असर यह है स्कूल बैग जैसे गम्भीर मुद्दे को लेकर स्टेशनरी संचालक और स्कूलों की मनमानी जारी है। ख्0क्ख् में दिल्ली में स्कूल बैग के वजन के कारण एक बच्चे के मौत का मामला सामने आया था, जिसके बाद काफी हंगामा हुआ था। इसके बाद भी अभी भी पुराना ढर्रा कायम है। इतना ही नहीं कुछ पैरेंट्स का यहां तक कहना है कि स्कूल बस में भी बच्चों को बैग नीचे नहीं रखने दिया जाता है। ऐसे में बस में बैठे रहने के दौरान भी बच्चे अपने कंधों पर बैग टांगे रहते हैं।

एचआरडी मंत्रालय के हिसाब से बैग का वजन

क्लास वजन

पहली व दूसरी दो किलोग्राम से ज्यादा नहीं

तीसरी व चौथी तीन किलोग्राम से ज्यादा नहीं

पांचवीं व छठी चार किलोग्राम से ज्यादा नहीं

नौवीं से बारहवीं छह किलोग्राम से ज्यादा नहीं

- मेरी बड़ी बेटी तनीषा अभी क्लास फाइव में है, वह रोजाना करीब क्भ् से क्8 बुक्स और टेक्स्टबुक्स लेकर स्कूल जाती है। जिसका वजन करीब छह से आठ किलो है। स्कूल में रोजना सभी बुक्स की पढ़ाई नहीं होती है।

- प्रमिति घोष, अलींगज

- मेरे दो बेटे हैं, एक पांचवी और दूसरा आठवीं क्लास में पढ़ता है। मेरे छोटे बेटे के बैग का वेट करीब छह किलो है, वहीं बड़े बेटे का वजन छह से आठ किलो के बीच में है। दोनों करीब बैग में क्भ् से ख्0 बुक्स और कॉपियां ले जाते हैं।

- रंजीत कौर, डालीगंज