विश्व स्वास्थ संगठन का कहना है कि पिछले दशक में दक्षिण एशिया में हेपेटाइटिस से मारे जानेवाले लोगों की संख्या मलेरिया, डेंगू बुख़ार और एचआईवी-एड्स को मिलाकर मारे जानेवाले लोगों की कुल तादाद से अधिक थी।

इस क्षेत्र के 11 देशों में , जिनमें भारत और बांग्लादेश शामिल हैं, पिछले साल अनुमानत: क़रीब दो करोड़ 90 लाख लोग हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हुए थे जबकि एचआईवी से संक्रमित होनवालों की संख्या साढ़े तीस लाख थी।

संगठन का कहना है कि सरकारों को हेपेटाइटिस के ख़िलाफ़ अभियान को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनानी चाहिए। ये चेतावनी एक ऐसे समय दी गई है जबकि विश्व स्वास्थ संगठन गुरूवार को विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है।

जानकारी की कमी

संस्था का मानना है कि इस बीमारी के बारे में कम बातें हुई हैं। हेपेटाइटिस में कलेजे में सूजन आ जाती है और इसके कुछ क़िस्म में सिरोसिस या कैंसर भी हो सकता है। कई बार लोग सालों तक बिना जाने इस बीमारी से ग्रसित रह सकते हैं।

विश्व स्वास्थ संगठन का कहना है कि पिछले सालों बच्चों में हेपेटाइटिस बी के टीकाकरण के मामले में काफ़ी बेहतरी हुई है लेकिन दक्षिण-पूर्वी एशिया के ज़्यादातर देशों में बीमारी से लड़ने की पूरी योजना कारगर तरीक़े से लागू नहीं की जा रही है।

ग़रीबी और धन की कमी हेपेटाइटिस के कई कारणों में से एक हैं। हेपेटाइटिस ए और ई दूषित भोजन और जल से फैलता है। वर्षा के मौसम में इसके फ़ैलने का ख़ास ख़तरा होता है जब सैलाब का पानी पीने के पानी में जा मिलता है।

हेपेटाइटिस ख़ून और शरीर के दूसरे द्रव्यों के माध्यम से भी फैलता है। मुफ्त टेस्टिंग सुविधा की कमी और अस्पताल में सुईयों का फिर से इस्तेमाल किया जाना इसके बढ़ने की वजहें हो सकती हैं।

लेकिन विश्व स्वास्थ संगठन का कहना है कि लोगों में जानकारी की कमी इसके फैलाव की सबसे बड़ी वजह है।

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