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पांच साल की उम्र हो गई है और बच्चा बोलने और सुनने में असमर्थ है तो इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्था उसे गोद लेकर न सिर्फ उसका ऑपरेशन कर उसे ठीक करेगा बल्कि ग्रेजुएशन तक मुफ्त शिक्षा की भी व्यवस्था कराएगा। प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय और इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के ईएनटी विभाग के संयुक्त प्रयास से ये बड़ी पहल हो रही है। प्रदेश में ऐसे मासूमों की संख्या अधिक है जो पांच साल की उम्र में भी न तो बोल पाते हैं और न ही सुन पाते हैं।

इलाज नहीं हुआ तो पांच साल बाद जीवन भर का दाग

एक्सपर्ट डॉक्टरों का कहना है कि जन्म से जिन बच्चों में बोलने और सुनने की क्षमता नहीं होती है उनका इलाज पांच साल में नहीं हुआ तो वह जीवन भर ऐसे ही रह जाते हैं। उनका इलाज आगे चलकर काफी मुश्किल हो जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि जो भी बच्चा इलाज से छूट जाता है वह पढ़ाई के साथ साथ हर सुविधाओं से वंचित रह जाता है। ऐसे मरीजों के इलाज में काफी खर्च भी आता है जिससे अधिकतर लोग हाथ पीछे कर लेते हैं। इतना ही नहीं इसकी प्रक्रिया इतनी लंबी है कि प्राइवेट अस्पताल अगर ऑपरेशन भी कर देता है तो सफल नहीं होता है।

बच्चों की होगी मॉनीटरिंग

ईएनटी विभाग के एचओडी राकेश कुमार सिंह का कहना है कि मरीजों को गोद लेने का मतलब उन्हें अस्पताल में रखना नहीं बल्कि उनकी घर पर ही मॉनीटरिंग करना और समय समय पर नि:शुल्क ऑपरेशन व इलाज संस्थान में करते रहना। डॉ राकेश का कहना है कि इसमें ऐसे मरीजों को शामिल किया गया है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हो। वह निदेशक स्वास्थ्य प्रमुख को आवेदन कर सकते हैं जिसपर सरकार की तरफ से संस्थान को 6 लाख से अधिक पैसा मिल जाता है। इसके बाद उपचार शुरू हो जाता है।

ऐसे बनी इलाज के लिए गोद लेने की व्यवस्था

इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्था के ईएनटी के एचओडी राकेश कुमार सिंह ने कोकलियर इमप्लांट की ट्रेनिंग फॉरेन में काफी पहले ही ले ली है। वह लगातार तीन साल से इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में लगे हुए थे। वर्ष 2017 के अगस्त माह में व्यवस्था पूरी होने के बाद उन्होंने मरीजों को गोद लेकर इलाज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। डॉक्टरों का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर तरह से तैयार हो गया है।

ये है कोकलियर इमप्लांट की प्रक्रिया

डॉ राकेश सिंह का कहना है कि कोकलियर इम्प्लांट काफी जटिल प्रक्रिया है। इसमें पहले बच्चे के कान के पास ऑपरेशन कर मशीन लगा दी जाती है फिर डेढ़ माह बाद उस मशीन को ऑन करना पड़ता है। मशीन दो पार्ट में होती है, एक ऑपरेशन कर अंदर लगाया जाता है दूसरा पार्ट कान के बाहर लगता है। दोनों को मैगनेट के जरिए कनेक्ट कर दिया जाता है। इसके बाद लगातार स्पीच थैरेपी की प्रक्रिया शुरू होती है जो तीन साल तक चलती है। तीन साल में बच्चा सुनने और बोलने में परिपक्व हो जाता है। इसके बाद पढ़ाई को लेकर प्रयास शुरू कर दिया जाता है। इस टीम में डॉ राकेश सिंह के साथ एम्स दिल्ली के डॉ राकेश, डॉ वंदना, डॉ रिचि सिन्हा, डॉ सरिता कुमारी मिश्रा और स्पीच थेरेपी के देवेंद्र प्रसाद शामिल हैं। ऑपरेशन के बाद उनकी पढ़ाई के लिए संस्थान व्यवस्था करता है।

पांच साल के मासूमों के कोकलियर ट्रांसप्लांट के लिए इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में स्ट्रक्चर पूरी तरह से तैयार है और अब तक तीन से अधिक बच्चों का सफल ऑपरेशन किया जा चुका है। इसे और विस्तार रूप दिया जा रहा है।

-डॉ राकेश कुमार सिंह,एचओडी ईएनटी विभाग