न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का कड़ा फैसला

कोर्ट ने कहा, साम्या न्याय न करने वाले को इसकी मांग करने का हक नहीं

साम्या न्याय की मांग वही कर सकता है जो खुद भी ऐसा करता हो। जो इस पर अमल नहीं करता उसे साम्या न्याय की मांग करने का भी हक नहीं है। कोर्ट में वैसे भी मुकदमो का बोझ अधिक है। इसमें मुकदमो की संख्या बढ़ाकर कोई न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करे यह ठीक नहीं है। कोर्ट ने इसी टिप्पणी के साथ भारत संचार निगम लिमिटेड की याचिका खारिज करते हुए उस पर पांच लाख रुपए का हर्जाना लगाया है।

ट्रांसफर-पोस्टिंग के खेल में फंसे

कोर्ट ने कहा कि एक अधिकारी को नोएडा में बनाए रखने के लिए आईटीएस आदेश कुमार गुप्ता का मेरठ तबादला कर दिया गया। इसके खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में याचिकाएं दाखिल हुई। मुकदमे का अंतिम निर्णय होना था तो पहले ही तबादला आदेश वापस ले लिया और दो दिन बाद दुबारा देहरादून भेजने का आदेश दिया। इसे भी अधिकरण द्वारा तबादला नीति के खिलाफ होने के कारण जब रोक लगाई तो उसे भी याचिका में चुनौती दी गई। कोर्ट ने बीएसएनएल द्वारा बार-बार याचिका दाखिल करना और तबादला आदेश वापस ले पुन: तबादला करना, रोक के बाद पुन: कोर्ट में आने को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग माना और कहा कि सरकारी विभाग को मुकदमों के बोझ को और बढ़ाने के लिए बेकार के मुकदमे दाखिल नहीं करने चाहिए।

दो जजों की बेंच का फैसला

यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल तथा जस्टिस डॉ। केजे ठाकर की खण्डपीठ ने बीएसएनएल की याचिका पर दिया है। निगम ने आईटीएस अधिकारी आदेश कुमार गुप्ता का तबादला मेरठ कर दिया। इनके स्थान पर अरुण कुमार को तैनात किया गया। तबादले पर अधिकरण ने रोक लगा दी। अंतिम निर्णय से पहले तबादला आदेश वापस लेकर दुबारा देहरादून तबादला कर दिया गया। पहली याचिका अर्थहीन हो गई। दुबारा याचिका दाखिल करनी पड़ी। नियमानुसार चार साल में तबादला हो सकता है जिसका पालन नहीं किया गया। बार-बार अर्जी व याचिका दाखिल की गई। किसी भी तरह से तबादले को कायम रखने की कोशिश की गई। कोर्ट ने इसे कानूनी दुर्भावना करार दिया और कहा कि गलत सलाह से याचिका दाखिल की गई। हाई कोर्ट में विचाराधीन मुकदमों का पहाड़ है। संसाधनों का अभाव है और लोगों को त्वरित न्याय देने की जिम्मेदारी है। ऐसे में सरकारी विभागों को व्यर्थ की याचिकाओं से बचना चाहिए। जिसने स्वयं व्यर्थ की मुकदमेबाजी की हो उसे कोर्ट की सहानुभूति नहीं मिल सकती।

हाई कोर्ट में विचाराधीन मुकदमों का पहाड़ है। संसाधनों का अभाव है और लोगों को त्वरित न्याय देने की जिम्मेदारी है। ऐसे में सरकारी विभागों को व्यर्थ की याचिकाओं से बचना चाहिए। जिसने स्वयं व्यर्थ की मुकदमेबाजी की हो उसे कोर्ट की सहानुभूति नहीं मिल सकती। -इलाहाबाद हाई कोर्ट