सेक्सुअल हैरेसमेंट में डीआईओएस इलाहाबाद के खिलाफ कार्रवाई न होने पर कोर्ट खफा

हाई कोर्ट ने प्रिंसिपल सेक्रेट्री को 27 को कार्रवाई रिपोर्ट के साथ किया तलब

किसी विभाग के अधिकारी की जांच और पुलिस विवेचना में अंतर है। सेक्सुअल हैरेसमेंट जैसे केस में जांच कर अफसर को बरी करने की अनुमति कोर्ट नहीं दे सकती। इसलिए डीआईओएस राजकुमार यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराइए ताकि पुलिस विवेचना करे। इलाहाबाद हाइ कोर्ट ने यह कड़ा रुख सोमवार को सुनवाई के दौरान दिखाया और प्रमुख सचिव से 27 अक्टूबर को कार्यवाही रिपोर्ट मां ली है। कोर्ट ने गुरुवार को होने वाली सुनवाई के दौरान जिम्मेदार अधिकारी को पत्रावली के साथ मौजूद रहने का निर्देश दिया है।

पूछा, क्यों नहीं दर्ज कराई FIR

बता दें कि पूर्व में बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद पर इलाहाबाद में तैनात रहे राजकुमार पर महिलाओं ने सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया है। इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई न होने और बीएसएस को प्रमोट करके इसी शहर में डीआईओएस बना दिए जाने के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई है। सोमवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक इलाहाबाद राजकुमार यादव के खिलाफ सेक्सुअल उत्पीड़न के आरोप पर राज्य सरकार से कार्यवाही की जानकारी मांगी। कोर्ट ने कहा कि यादव को निलंबित क्यों नहीं किया गया और अपराध की प्राथमिकी क्यों दर्ज नहीं की गई? यह आदेश चीफ जस्टिस डीवी भोसले तथा जस्टिस यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने नीलेश कुमार मिश्र की जनहित याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता मनीष गोयल व राधेकृष्ण पांडेय ने बहस की।

जांच रिपोर्ट में की गई है संस्तुति

पीआईएल में कहा गया है कि सहायक शिक्षा निदेशक बेसिक ने शिकायतों की जांच की थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि छह महिला अध्यापिकाओं ने सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाते हुए हलफनामा भी दिया है। इसी के आधार पर याचिका में प्राथमिकी दर्ज करने एवं विभागीय जांच करने की मांग की गई है। कोर्ट ने स्थायी अधिवक्ता से जानकारी मांगी थी कि क्या कार्यवाही की गई। इस पर जवाब आया कि शिकायत यादव के बीएसए पद पर तैनाती के दौरान की गई है। अब वह डीआईओएस हैं। कोर्ट ने इस पर कड़ा लहजा अपनाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की विशाखा केस की गाइड लाइन के तहत विभागीय व आपराधिक कार्यवाही की जानी चाहिए। निरीक्षक के अधिवक्ता को कोर्ट ने सुनने से इंकार करते हुए कहा कि कोर्ट शिकायतों पर सरकार की कार्यवाही प्रक्रिया की जानकारी मांग रहा है। कोर्ट ने कहा कि कार्यवाही करे नहीं तो आदेश दिया जाएगा। स्थायी अधिवक्ता का कहना था कि विभागीय रिपोर्ट नियमानुसार नहीं है। जिलाधिकारी ने अस्वीकार कर दिया है।