लैप्स पॉलिसी धारक को फायदा पहुंचाने का आरोप

एजेन्सी निरस्त करने पर हस्तक्षेप से हाई कोर्ट का इंकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लैप्स बीमा पॉलिसी धारक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति के मर जाने के बाद स्वास्थ बताकर दावा मंजूर कराने वाले बीमा एजेन्ट की एजेन्सी निरस्त कर अर्थदण्ड लगाने के आदेश पर हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि याची बीमा एजेन्ट ने खत्म पॉलिसी को पुनर्जीवित कर दावा दिलाने में भूमिका निभाई है। बीमार व्यक्ति को फिट घोषित करने में सहयोग दिया है। ऐसे में हस्तक्षेप करने का आधार नहीं है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है।

इलाज के दौरान हो गयी मौत

यह आदेश जस्टिस एपी साही तथा जस्टिस इफाकत अली खां की खण्डपीठ ने एलआईसी बीमा एजेन्ट रामेश्वर वर्मा की याचिका पर दिया है। बीमा कम्पनी के अधिवक्ता वीके चन्देल का कहना था कि याची ने एक गंभीर बीमारी से पीडि़त पॉलिसी होल्डर को डॉक्टरी जांच में स्वस्थ्य घोषित कराया। इसके बाद पॉलिसी पुनर्जीवित करायी। अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी। इस प्रकार एजेन्ट ने निगम की नीतियों के खिलाफ काम किया। पॉलिसी धारक गिरीश चन्द्र शुक्ल के अच्छे स्वास्थ्य घोषित करने में याची गवाह बता पॉलिसी धारक की पॉलिसी किश्त ने जमा करने के कारण लैप्स हो गयी थी जिसे बहाल कराया।

जांच में फिट दिखाना उचित नहीं

इससे फर्क नहीं पड़ता कि याची पॉलिसी धारक का एजेन्ट नहीं था उसी के कारण मृतक को भुगतान किया गया बीमा पॉलिसी नियमों के तहत एजेन्ट का दायित्व है कि वह उचित जांच करे। गंभीर बीमारी के बावजूद मेडिकल जांच में फिट दिखाना उचित नहीं किया जा सकता। याची ने स्वीकार भी किया है कि उसने पॉलिसी धारक की मेडिकल जांच में सहयोग किया है। याची को सुनवाई का मौका भी दिया गया। ऐसे में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।