भ्रूण 24 सप्ताह का हो चुका है। इससे न तो मां को कोई खतरा है और न ही गर्भ में पल रहे शिशु को। इस स्थिति में गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को नैनी जेल में बंद एक रेप पीडि़ता की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि कानूनन 20 हफ्त्ते तक के गर्भ को ही जीवन व मानसिक स्थिति के खतरे को देखते हुए ही गिराने की अनुमति दी जा सकती है। यह समयावधि निकल चुकी है और विशेष स्थिति ऐसी नहीं है जिसमें गर्भपात की अनुमति दी जाय।

 

घटनाक्रम

याची को आपराधिक मामले में 12 जून 2017 को गिरफ्तार किया गया।

25 जुलाई 17 को चार्जसीट दाखिल की गयी है जिसे सीजेएम ने संज्ञान भी ले लिया है।

20 मई 2017 को जबरन पकड़ कर उसके साथ दुराचार किया गया था जिसकी पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की

जेल में गर्भ का पता चला तो जेल अधीक्षक के मार्फत जुलाई 2017 में सीजेएम इलाहाबाद की अदालत में अनचाहा गर्भ गिराने की अनुमति की अर्जी दाखिल की गयी

इसे मजिस्ट्रेट ने 17 अगस्त 17 को खारिज कर दिया

इसके बाद यह याचिका दाखिल की गयी थी।

 

डाक्टर्स की राय

कोर्ट ने 12 अक्टूबर को सीएमओ की अध्यक्षता में डाक्टरों की कमेटी गठित कर मेडिकल रिपोर्ट मांगी

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी ऐक्ट 1971 के तहत कमेटी गठित कर राय मांगी गयी।

कमेटी ने कहा कि स्वरूपरानी नेहरू हास्पिटल में ही आपरेशन किया जा सकता है

इसके बाद कोर्ट ने स्वरूपरानी नेहरू हास्पिटल इलाहाबाद के डाक्टरों की कमेटी गठित कर रिपोर्ट मांगी।

डाक्टरों ने रिपोर्ट दी कि गर्भ कायम रहता है तो पीडि़ता के जीवन को कोई खतरा नहीं है।

24 हफ्ते के भ्रूण में शारीरिक रूप से कोई अक्षमता नहीं है।

गर्भ कायम रखने से पीडि़त महिला के जीवन को कोई खतरा नहीं है

 

कोर्ट का आदेश

जेल में कैद पीडि़ता को पौष्टिक आहार दिया जाय ताकि वह स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सके।

कोर्ट ने कहा कि यदि बच्चे के जन्म से महिला को कोई नुकसान नहीं है तो गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी जा सकती

यदि गर्भ बने रहने से मानसिक या शारीरिक नुकसान और बच्चा विकलांग पैदा होने की संभावना हो तो ही गर्भ गिराने की अनुमति दी जा सकती है।