जिस हिन्दी भवन की तत्कालीन सभापति जाबिर हुसेन की परिकल्पना थी, वह लावारिस क्यों?

- बड़ी मात्रा में फर्नीचर, एसी, पलंग ढोकर कोई ले गया, पर एफआईआर नहीं

-कई बेडशीट और टेबल-कुर्सी भी ले गए, कई कमरों में बिजली वायरिंग तहस-नहस कर दिया

- ऑडिटोरियम की ढेरों कुर्सियां और कान्फ्रेंस रूम का माइक तक उखाड़ ले गए

PATNA: आज हिन्दी दिवस है। पटना के हिन्दी भवन में राजभाषा विभाग ने हिन्दी दिवस मनाने की तैयारी भी पूरी कर ली है। रविवार को दोपहर तीन बजे हिन्दी दिवस के आयोजन वाला तोरण द्वार बनाते दिखे कुछ कामगार, लेकिन एक सवाल है। ये सरकार किस मुंह से फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी भवन में हिन्दी दिवस मनाएगी? ख्008 से यहां चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान चलता रहा। एक-दो माह पहले यह संस्थान मीठापुर स्थित अपने कैंपस में चला गया, लेकिन हिन्दी भवन को जहां-तहां से जैसे नोच लिया गया है। फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी भवन के अंदर की हालत देख आई नेक्स्ट ने पाया कि आखिर इतनी बेरहमी कैसे दिखायी गई, और सरकार ने इस लूट (!) पर अब तक कोई एफआईआर तक क्यों नहीं की? लुटेरे की शिनाख्त तो की जानी चाहिए ना! ये जनता के पैसे का हिन्दी भवन है। कोई प्राईवेट संस्थान नहीं।

जाबिर हुसैन की परिकल्पना थी

हिन्दी भवन की पूरी परिकल्पना तत्कालीन विधान परिषद् सभापति जाबिर हुसेन की थी। उन्होंने जमीन उपलब्ध करवाने से लेकर भवन निर्माण और उसमें फर्नीचर से लेकर एससी और बेड शीड तक का सारा इंतजाम कर दिया था। खूबसूरत ऑडिटोरियम, उसमें कुर्सियां, साउंड की मशीने, कुर्सियां सब का इंतजाम कर दिया। ठहरने के कई कमरे से लेकर कांफ्रेंस हॉल तक। किचन से लेकर टायलेट बाथरूम तक। पूछिए क्या नहीं था हिन्दी भवन के पास। परिकल्पना के अनुरूप आगे काम हुआ होता तो देश-विदेश के बड़े संस्थान के रूप में इसकी पहचान बनती। लेकिन सरकार को ये गंवारा नहीं था। नीतीश सरकार ने हिन्दी के नाम पर बने इस भवन को चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान को दे दिया। ख्008 से ख्0क्भ् तक इसमें प्रबंधन संस्थान चलता रहा। लेकिन जब मीठापुर में प्रबंधन संस्थान का भवन बन गया तो संस्थान वहां चला गया। हिन्दी भवन की कई चीजें भी उखाड़ ले गए।

ऑडिटोरियम में इतनी ही कुर्सियां थीं क्या

ऑडिटोरियम में तीन सौ के लगभग कुर्सियौं थी, सोफे थे। कौन ले गया। अब जब हिन्दी दिवस (क्ब् सितंबर) का दिन आया तो दो-तीन दिनों पहले कुर्सियां और सोफे भेजे गए हैं। पता नहीं फिर से ले जाएंगे या क्या करेंगे। अभी मुश्किल से क्भ्0 के आस पास चेयर हैं। जानकारी के अनुसार गेस्ट रूम में क्म् बेड थे। कौन ले गया। इसमें तीन किंग बेड भी थे जिसमें से दो ले गए। लाइब्रेरी में 89 रैख थे सब ले गए। अब तो लगता ही नहीं कि ये लाइब्रेरी भी है। कॉमन रूम में फ्ख् चेयर थे ले गए। कांफ्रेस रूम में भी उजड़ा हुआ सा है। लगभग 80 चेयर थे अभी मुश्किल से ख्भ्-ख्7 होंगे। कांफ्रेसिंग के लिए माइक लगे थे। उखाड़ कर ले गए। कई कमरों में आपको बिजली के तार नोचे हुए मिलेंगे। मेस का डायनिंग टेबल ले गए। हिन्दी के साथ कैसी ज्यादती हुई सोचिए चार-पांच एसी उखाड़ ले गए। इसके लिए कई जगह तारों को काटा गया। वायरिंग का सत्यानाश किया गया। ब्0 डबल बेड के कमरे हैं जबकि म् सिंगल बेड कमरे हैं। आई नेक्स्ट को पड़ताल में पता चला कि क्ख् सितंबर को स्क्रैप भी ले गए।

कुसियां जंक खा रही है

ऊपरी तल पर जाने के लिए लिफ्ट काम कर रहा है। जेनरेटर भी यहां है। लेकिन सैकड़ों कुर्सियां फेंकी पड़ी मिली कबाड़ की तरह। ये सब हिन्दी भवन को डरावना रूप देने के लिए काफी हैं। बिजली के तार जहां-तहां इस बेरहमी से काटे गए हैं, जिससे ऐसा लगता है किसी सभ्यता पर बाहर की सभ्यता ने हमला किया हो और तबाही मचा कर लूटपाट की हो। सच सोच रहे हैं आप हिन्दी पर ही है ये हमला। हिन्दी को ही लूटा गया। हिन्दी का ही मजाक बनाया गया।

किसके भरोसे छोड़ गए हिन्दी भवन को

एक समय था जब हिन्दी भवन में चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान चला करता था, तब प्रवेश करने पर काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। एक फोटो लेने पर गार्ड कई सवाल करता था। प्रिंसिपल से परमिशन लेने का निर्देश देता था। हिन्दी दिवस के एक दिन पहले यानी रविवार को जब आई नेसक्ट ने हिन्दी भवन में प्रवेश करना चाहता तो मेन गेट पर ताला लगा मिला। अंदर जहां गार्ड रहता था वह केबिन उजाड़ सा पड़ा मिला। दूसरे गेट का फाटक अंदर से लगा था। उसे खोलकर अंदर जाने पर यह सब दिखा। एक व्यक्ति दिखा अंदर रखवाली करता हुआ रत्नेश यादव। उसने बताया कि वह केयर टेकर है। हर सवाल पर डर कर जवाब देता हुआ। सोचिए कैसे हिन्दी भवन को छोड़ दिया गया। जाते-जाते जो किया गया वह तो हैरत में डालने वाला है ही। गजब ये कि अभी भी यहां से सामान ढ़ोये जाने की जानकारी मिल रही है।

अब किस संस्थान को सौंपेगी सरकार?

चर्चा है कि चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान से मुक्ति के बाद कई अन्य संस्थाएं हिन्दी भवन को लेना चाहती हैं। जानकारी के अनुसार नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी व ऐसे कई संस्थान चाहते हैं कि सरकार यह भवन उन्हें दे दे। पता नहीं आगे हिन्दी भवन के साथ कैसा सलूक होगा। हां ऊपरी तल पर बिहार विधान सभा निर्वाचन- ख्0क्भ् (पटना समाहरणालय, पटना) सामग्री कोषांग, लिखा कागज चिपका हुआ है। साफ है चुनाव में हिन्दी भवन का इस्तेमाल किया जाएगा।

सिर्फ हॉस्टल की बात करें तो सवाल ये कि ये सामान यहां आए थे। अब सभी कहां हैं?

मल्टीपल पर्पस चेयर- म्

गोदरेज ओपेल सिंगल बेड- 8म्

स्लीपवेल ओमेगा -8म्

स्लीपवेल फाइबर पिलोज-8म्

गोगेन्ट्स टेबल (टी-क्0क्क्)-म्

गोदरोज जोर्डन डायनिंग सेट (क्प्लसम्)- ब्

पर्दा- फ्ब्7

बेडशीट- ख्ख्म्

ये लिखा है यहां शिलापट पर

क्ब् सितंबर क्99म् को हिन्दी दिवस समारोह के अवसर पर तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने हिन्दी भवन की आधारशिला रखी थी। कुछ कारणों से ख्00ब् तक हिन्दी भवन का निर्माण-कार्य शुरू नहीं किया जा सका। वित्तीय वर्ष ख्00ब्-0भ् के दौरान, बिहार विधान परिषद् के सभापति जाबिर हुसेन ने अपने विकास निधि से हिन्दी भवन के निर्माण के लिए राशि उपलब्ध करायी। वित्तीय वर्ष ख्00भ्-0म् में उन्होने हिन्दी भवन के शेष खंडों के निर्माण कार्य के लिए वित्तीय व्यवस्था की। वित्तीय वर्ष ख्00म्-07 में राज्य सभा के शेष निर्माण कार्य और सभी भवनों की साज-सज्जा के लिए राशि उपलब्ध करायी। इसी वित्तीय वर्ष में हिन्दी भवन के निर्माण और उसकी साज-सज्जा का काम पूरा हुआ। हिन्दू भाषा एवं संस्कृति विकास के केन्द्र के रूप में हिन्दी भवन के निर्माण को लेकर बिहारवासियों का सपना पूरा हुआ।

हमने ऑडिटोरियम के सारे सामान वापस कर दिए। आप जिस एसी की बात कर रहे हैं, वे हमने लगवाए थे। उसे हम ले आए। हम वही सामान लेकर आए जो हमारे थे, बाकी वहीं छोड़ दिया।

डॉ वी मुचकंद दास, डायरेक्टर, सीआईएमपी

बहुत सारा सामान हैंडओवर किया जा चुका है। अभी इसकी प्रक्रिया चल ही रही है। हमने बिजली का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। इंटरनेट का कनेक्शन हटाया गया है। सीलिंग देख लीजिए हमलोगों ने करवायी थी, उसे नहीं हटाया है। हम पारदर्शी तरीके से सब कुछ कर रहे हैं।

विष्णु, मीडिया प्रभारी, सीआईएमपी