(1) हिंदी के जाने-माने कवि दुष्यंत कुमार ने कई बेहतरीन कविताएं लिखीं हैं। इनकी कविताओं की खासियत यह थी कि इनकी रचनाएं इंसान को अंदर से झकझोर देती थीं। दुष्यंत कुमार की कविताओं को पढ़कर आपके अंदर एक अलग ही चिंगारी पैदा होती है।

हो गयी है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
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(2) कवि हूबनाथ ने अपनी रचनाओं में राजा के उस चरित्र का वर्णन किया है। जिसे कोई नहीं देख पाता, राजा कैसे अमर और निर्भय है, उसके हालात को बताती है यह कविता।

राजा निर्भय है राजा अमर है, डरी हुई प्रजा बनाती है राजा को निर्भय
मरती हुई प्रजा से होता है राजा अमर, अपने अभेद किले में राजा प्रजा से आवाहन करता है निर्भय रहने का
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(3) यह एक गजल है, जिसे महान कवि दुष्यंत कुमार ने लिखा है। इसके शब्दों पर गौर करें तो आपको एक मस्ती का अहसास होगा।

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूं, वो गजल आपको सुनाता हूं
एक जंगल है तेरी आंखो में, मैं जहां राह भूल लाता हूं
तू किसी रेल सी गुजरती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूं
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(4) यह कविता आलोधन्वा द्वारा रचित है। वह एक जनवादी और क्रांतिकारी कवि थे।

ये 1972 की 20 अप्रैल है या किसी पेशेवर हत्यारे का दायां हाथ, या किसी जासूस का चमड़े का दस्ताना
या किसी हमलावर की दूरबीन पर टिका हुआ ठप्पा है।
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(5) दीपक कबीर ने जब आधुनिक कविता पर अपना ध्यान लगाया तो उन्होंने 'फेसबुक वाला प्यार' जैसी एक बेहतरीन रचना लिखी।

फेसबुक हमारी दोस्ती का प्रस्थान बिंदु है, मेरी दोस्ती में झूठे होने के तमाम खतरे हैं।
नेट खराब जैसी बेवफाईयों को विस्तार है, तुम्हारे झिझकते हुए लाइक्स हैं मैं ही क्यों करूं का मासूम ईगो है
इनबॉक्स का बेसब्र इंतजार और जाहिर न करने की परंपरागत आशिकी है
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