प्रेमचन्द्र की बगिया हिन्दुस्तानी एकेडमी में दो महीने से ठप है काम

नामित अध्यक्ष डॉ। सुनील जोगी ने कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही छोड़ दिया था पद

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ALLAHABAD: हिन्दी और उर्दू साहित्य की जिस बगिया को हिन्दी साहित्य जगत के कालजयी रचनाकार मुंशी प्रेमचंद्र ने जिया हो उस हिन्दुस्तानी एकेडेमी का आज की तारीख में कोई हालचाल नहीं ले रहा है। हालांकि, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर दौरे पर एकेडेमी को और अधिक समृद्ध करने का वायदा किया था लेकिन वायदा अभी तक हकीकत में नहीं तब्दील किया जा सका है। दो महीने से अधिक का समय बीत चुका है इसके बावजूद नए अध्यक्ष का ऐलान नहीं किया गया।

न सेमिनार, न ही पुस्तकों पर काम

हिन्दुस्तानी एकेडेमी में हर महीने हिन्दी और उर्दू साहित्य से संबंधित कम से कम दो सेमिनार का आयोजन होता है। अध्यक्ष के न होने की वजह से अप्रैल और मई महीने में एक भी सेमिनार नहीं आयोजित हो पाया। इतना ही नहीं सीएम बनने के बाद योगी आदित्यनाथ जिस नाथ संप्रदाय से जुड़े रहे उस नाथ संप्रदाय नामक पुस्तक की तीन सौ से अधिक प्रतियां लोगों ने खरीद ली लेकिन बिना अध्यक्ष की संस्तुति के अगले संस्करण का प्रकाशन भी नहीं कराया जा सकता। क्योंकि उसके लिए अध्यक्ष का अनुमोदन होने जरूरी है।

1927 में हुई थी एकेडेमी की स्थापना

हिन्दुस्तानी एकेडेमी की स्थापना मार्च 1927 में हुई थी। मुंशी प्रेमचंद्र एकेडमी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। एकेडमी का पहला सम्मान भी मुंशी प्रेमचंद्र को ही प्रदान किया गया था।

बगिया में 25 हजार पुस्तकें

एकेडमी में हिन्दी और उर्दू साहित्य जगत के नामचीन साहित्यकारों की करीब 25 हजार पुस्तकों का खजाना है। जबकि 1978 से लेकर अब तक सूरदास, आचार्य रामचंद्र शुक्ला, सुमित्रानंदन पंत, राहुल सांस्कृत्यायन व अली सरदार जाफरी जैसी कई शख्सियतों पर 41 विशेषांक निकाला जा चुका है।

अब तक 12 अध्यक्ष

हिन्दुस्तानी एकेडेमी में अब तक 12 अध्यक्ष कार्यभार संभाल चुके हैं। 1928 में एकेडेमी के पहले अध्यक्ष डॉ। सर तेज बहादुर सप्रू थे। उसके बाद क्रमश: डॉ। राय राजेश्वर बली, जस्टिस कमलाकांत वर्मा, चिंतामणि बालकृष्ण राव, जस्टिस सुरेन्द्र नाथ द्विवेदी, डॉ। राम कुमार वर्मा, डॉ। जगदीश गुप्ता, डॉ। राम कमल राय, हरि मोहन मालवीया, कैलाश गौतम व डॉ। योगेन्द्र प्रताप सिंह अध्यक्ष बने। 12वें अध्यक्ष के रूप में डॉ। सुनील जोगी ने मार्च 2017 तक कामकाज संभाला था।

अध्यक्ष के न होने से दो महीने तक कोई सेमिनार नहीं हो सका। पुस्तकों के प्रकाशन का काम भी अधूरा पड़ा है। यह दोनों काम ऐसे है कि इनमें अध्यक्ष की संस्तुति जरुरी होती है।

-रविनंदन सिंह,

कोषाध्यक्ष हिन्दुस्तानी एकेडेमी

एकेडेमी की साहित्यिक परंपरा बहुत समृद्धि रही है। अब नियुक्ति में राजनैतिक हस्तक्षेप होने लगा है। सरकार को हिन्दी या उर्दू के किसी विद्वान को इस पद पर बैठाना चाहिए।

प्रो। राजेन्द्र कुमार,

अध्यक्ष जन संस्कृति मंच

यह एकेडमी के लिए बहुत शर्मनाक बात है कि दो महीने से ज्यादा हो गया लेकिन नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की गई। सरकार को इस पर फौरन नियुक्ति करनी चाहिए।

असरार गांधी,

उर्दू साहित्यकार