ALLAHABAD:

मां ललिता देवी

मीरापुर में देवी ललिता का शक्तिपीठ है। किवदंती है कि यमुना तट पर सती के हाथ की अंगुली गिरने से भगवती ललिता का प्राकट्य हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार सती के पिता प्रजापति दक्ष द्वारा अपने दामाद भगवान शिव को यज्ञ में न बुलाने और शिव के अपमानित होने से क्षुब्ध सती ने यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था। शिव को सती के मोह से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काट कर जिन 51 स्थानों पर गिराया वे सभी शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुए। ललिता देवी इन्हीं में से एक हैं।

मां कल्याणी देवी

कल्याणी देवी मोहल्ले में सिद्धपीठ कल्याणी देवी का मंदिर है। पद्म पुराण के अनुसार भगवती ललिता ही कल्याणी देवी के रूप में प्रतिष्ठित है। महर्षि याज्ञवल्क्य ने भगवती की अराधना करके 32 अंगुल की देवी कल्याणी की प्रतिमा स्थापित की थी। पुरातात्विक अध्ययनों की मानें तो यह प्रतिमा डेढ़ हजार वर्ष पुरानी है। देवी की प्रतिमा मंडल के मध्य भाग में चतुर्भुज रूप में सिंह पर आसीन देवी कल्याणी विद्यमान हैं। मूर्ति के शेष भाग में एक आभाचक्र, मस्तक पर योनि, लिंग व फणीन्द्र शोभायमान है। मध्य मूर्ति के बाई ओर भगवती छिन्नमस्ता की प्रतिमा है। उनके दक्षिण भाग में महादेव जिनके अंग में पार्वती विराजमान हैं।

अलोपशंकरी मंदिर

प्रयाग में ललिता पीठ के रूप में सर्वाधिक मान्यता अलोपशंकरी देवी को प्राप्त है। यह शक्तिपीठ संगम से पश्चिम और अक्षयवट के वायव्य कोण उत्तर पश्चिम में स्थित है। दुर्गा सरस्वती कवच के अनुसार करांगुल्यौ शंकरी यानी यहां पर सती के हाथ की अंगुलियां गिरी थी। सती के हाथ की गिरी अंगुलियों से अलोपशंकरी व भैरव प्रकट हुए थे। कहते हैं कि देवी का जो अंग गिरा था वह अलोप हो गया था। इसलिए यहां देवी को अलोपशंकरी कहा जाता है।

मां खेमामाई मंदिर

चौक गंगादास क्षेत्र में शक्ति स्वरूपा मां खेमामाई के नाम से विख्यात शीतला देवी का मंदिर है। देवी के इस मंदिर की प्रमुख विशेषता यहां स्थापित नव दुर्गा की मूर्ति है। देवी भगवती नव विधा हैं। जनश्रुति है कि क्षेत्र में गंगादास के चौराहे के पास एक खंडहर में लगे वर्षो पुराने नीम के पेड़ से ही देवी शीतला प्रकट हुई थी। बाद में देवी की पूजा अर्चना की जाने लगी और यह खंडहर मंदिर के रूप में बदल गया।