ये है पूजन का मुहूर्त
होलिका दहन मुहूर्त- 12 मार्च, 18:23 से 20:23 तक, इसके बाद भद्रा पूंछ मुहूर्त- 04:11 से 05:23 तक और भद्रा मुख मुहूर्त- 05:23 से 07:23 तक। इसके बाद रंगवाली होली जिसे दुलहेंडी या रंग छिड़कनी होली भी कहते हैं वो 13 मार्च सोमवार को खेली जायेगी।

होली 2017 का जाने पूजन समय और विधि के साथ उससे जुड़ी कहानियां

ऐसे करें पूजा
होलिका दहन के समय इस प्रकार से की जाती है होलिका की पूजा। होलिका पूजन करने के लिए गोबर से बनी होलिका और प्रहलाद की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच या सात प्रकार के अनाज, नई गेहूं और अन्य फसलों की बालियां और साथ में एक लोटा जल का प्रयोग होता है।  इसके साथ ही बड़ी-फूलौरी, मीठे पकवान, मिठाईयां, फल आदि भी चढ़ाए जा सकते हैं।
शाम को ही होगा होलिकादहन

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होली की कहानियां
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। कहा जाता है कि हिरण्यकशिपु नाम के एक असुर ने बल के दर्प में खुद को ही ईश्वर मानना शुरू कर दिया था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। इससे क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। दूसरी ओर हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। इसलिए हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे और उसे जला दे, लेकिन ऐसा हो ना सका और होलिका तो आग में जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। इसी ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होली जलाई जाती है। कहा जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है और होलिका वैर और उत्पीड़न की प्रतीक है।
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कृष्ण का होली से संबंध
एक अन्य कथा के अनुसार यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास से संबंधित है।  कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था। ये भी कहते हैं कि राधा के गोरे रंग से दुखी कृष्ण को खुश करने के लिए माता यशोदा ने उन्हें श्याम रंग में रंगने के लिए कहा और नटखट श्याम राधा सहित सभी गोपियों को रंगने लग जाते हैं। धीरे-धीरे उनकी यह शरारत फैलने लगती है और ऋतुराज वसंत के मौसम में एक दूसरे पर रंग डालने की यह लीला एक प्रेममयी परंपरा के रूप में हर साल फाल्गुन के महीने में निभायी जाने लगी।
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शिव और होली
होली की कथा शिव से भी संबंधित है जो कामदेव के पुनर्जन्म से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि कामदेव ने भगवान शिव का तप भंग किया और इस चेष्टा से रुष्ट होकर भगवान शिव ने फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन ही उसे भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने शिव जी की आराधना की और अपने पति कामदेव को पुनर्जीवन का आशीर्वाद पाया। महादेव से रति को मिलने वाले इस आशीर्वाद के बाद ही होलाष्टक का अंत धुलेंडी को हुआ। चूंकि होली से पूर्व के आठ दिन रति ने कामदेव के विरह में काटे इसलिए इन दिनों में शुभ कार्यों से दूरी रखी जाती है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं।

 

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