गंगा की लहरों पर संगीत की स्वरलहरियों पर झूमते नजर आये लोग
VARANASI
सरस सलीला मां गंगा की कलकल बहती धारा पर एक बार फिर बनारस की समृद्ध व अनोखी परंपरा जीवंत हुई। गंगा की लहरों पर इठलाते, बलखाते बजड़े से संगीत की स्वर लहरियां उठीं। जिसने हर किसी को मदहोश कर दिया। मौका था पुरातन बनारस के रस को वर्तमान तक पहुंचाने के प्रयास सांस्कृतिक संध्या 'बुढ़वा मंगल' का। अस्सी घाट पर संगीत साधकों ने सुर और ताल की कुछ ऐसी महफिल सजाई कि बुढ़वा मंगल की गहराती शाम जवां हो उठी। संगीत की स्वरलहरियों ने मन की लहरों को तरंगित किया और लोग झूमते से नजर आये। सफेद कुर्ते पायजामे और दुपलिया टोपी में सजे पुरुष और गुलाबी साडि़यों में रंगी महिलाओं की उपस्थिति ने माहौल को बनारसी अंदाज दिया। गुलाब की पंखुडि़यों और बेहतरीन लाइट की सजावट ने आयोजन की खासियत को बढ़ाया। आयोजन में अश्विनी शंकर व संजीव शंकर के शहनाई वादन, पद्मविभूषण गिरिजा देवी की शिष्या मानसी मजुमदार ने गायन व अवतिंका चक्रवर्ती ने ठुमरी, चैती व होरी सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। इसके पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में संगीत रसिक मौजूद थे।