प्राईवेट में चल रही मेस, यूनिवर्सिटी कुछ नहीं दे रही

जीएन झा हास्टल में गंदगी के बीच खाना खाने को मजबूर अन्त:वासी

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: विश्वविद्यालय प्रशासन हास्टल को खाली करवाने की बात की बात तो करता है लेकिन सुविधा देने की बात पर कन्नी काट जाता है। अब जब कि वॉशआउट की कार्रवाई संभावित है। दैनिक जागरण आई ने हॉस्टल्स की एक्चुअल कंडीशन जानने की कोशिश की। जीएन झा हास्टल से इसकी शुरुआत हो रही है। आगे हम बताएंगे कि हॉस्टल्स हैं किस हाल में और छात्रों को सुविधाएं क्या मिल रही हैं।

कैसे खा रहे, कोई पूछने वाला नहीं

रिपोर्टर ने पड़ताल अभियान की शुरुआत जीएन झॉ हॉस्टल के मेस से की। यूनिवर्सिटी की ओर से हास्टल में मेस की कोई सुविधा नहीं दी गई है। यहां छात्र जुगाड़ से प्राइवेट लोगों को बुलाकर मेस चलवाते हैं। छात्र कैसे मेस में खाना खा रहे हैं और क्या खा रहे हैं? इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। मेस में घुसते ही भारी गंदगी का आलम नजर आया है। काली पड़ी दीवारें और गंदे बर्तनो में खाना पकाने वाले छात्र रिपोर्टर को देखते ही बोल पड़े यही हमारी नियती है, और क्या देखेंगे। छात्र बताते हैं कि अक्सर खाने से गोजर, बिच्छू, मरे हुये चूहे और कीड़े निकलते हैं। हास्टल में मवेशी घूमते नजर आए। हास्टल का टेबिल टेनिस रूम और लाइब्रेरी कबाड़ खाना बन चुकी है। 133 कमरों के इस हास्टल में अंतिम बार पुताई कब कराई गई थी? यह किसी को याद नहीं। हास्टल का सीवर ब्लास्ट कर चुका है और नगर निगम का नाला भी 20 साल से चोक पड़ा है।

खुद लेकर आए कुर्सी, मेज, तखत

हास्टल में तखत, कुर्सी, मेज का जुगाड़ छात्रों को खुद ही करना पड़ रहा है। नव प्रवेशी छात्र जमीन पर सोने को मजबूर हैं। हास्टल छह ब्लाक में बंटा है। जिसमें चार आरओ वाटर पम्प लगा है। इनमें से दो खराब पड़े हैं। अन्त:वासी अश्वनी मौर्या बताते हैं कि लास्ट इयर उनके साथी अन्त:वासी विद्या विभूति पांडेय की पीलिया से मौत हो गई। पढ़ने लिखने में अव्वल, मिलनसार और हंसमुख स्वभाव के विद्या विभूति हास्टल की अव्यवस्था का ही शिकार हुये। अश्वनी कहते हैं कि विद्या भईया आज होते तो जरूर आईएएस बनते।

जीएन झा हास्टल का संक्षिप्त परिचय

इसकी स्थापना वर्ष 1927 में हुई। हास्टल में रहने वाले पीजी के छात्रों में तकरीबन 80 फीसदी का चयन वर्ष 1990 तक सिविल सेवा परीक्षा में होता था। इसके बाद वर्ष 2010 तक कोई भी ऐसा वर्ष नहीं रहा, जब हास्टल से चार पांच आईएएस न निकलते हों। महाकवि, प्रख्यात आलोचक एवं साहित्यकार मार्कण्डेय जी, भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी, संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप, वर्तमान में यूपी के कैबिनेट मंत्री मोती सिंह, आईपीएस सूर्य कुमार शुक्ला, इलाहाबाद के पूर्व आईजी राजकुमार सिंह, यूपी सरकार के पूर्व महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह इत्यादि ऐसे नाम हैं जो इसी हास्टल के पूर्व अन्त:वासी रहे हैं।

हर बार हास्टल खाली करवाने को लेकर हंगामा मचता है। यह बिल्कुल नगर निगम के अतिक्रमण अभियान की तरह होता है। जिसका कोई हल नहीं है। यूनिवर्सिटी के पास इसका जवाब ही नहीं है कि हास्टल में क्या सुविधा दी जा रही है?

अश्वनी मौर्या

हास्टल में सुविधाएं देने से किसने एयू एडमिनिस्ट्रेशन को रोका है? प्राब्लम यह है कि ऑफिसर्स बेसिक फेसेलिटीज उपलब्ध कराने पर बात ही नहीं करते। बीएचयू जाइये चाहे जेएनयू वहां सब्सिीडी युक्त मेस है और बाकायदा हर रोज छात्रों को नाश्ता मिलता है।

अनुज द्विवेदी

ब्लाक दो के सभी कमरों में सीलन है। कपड़े खराब हो जाते हैं। कमरा पेंट कब हुआ, यह किसी को याद नहीं। भाई साहब हम तो खुद ही कील से ठोंक ठोंककर अपने तखत, कुर्सी और मेज को बचाये हुये हैं। वरना शायद चैन से सो भी न सकें।

मधुर गुप्ता

यूनिवर्सिटी का बजट वापस चला जा रहा है। हास्टल का क्या बजट है और इसको कैसे खपाया जाना है? इसका कोई प्लान नहीं है। कुछ समय पहले हमारे हास्टल में छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष स्व। कुलदीप सिंह केडी की तबियत बिगड़ी तो उन्हें हास्पिटल पहुंचाने के लिये एम्बुलेंस आने में ही दो घंटे लग गया।

राघवेन्द्र प्रजापति

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