i exclusive

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर या कहिए डीडीयूजीयू। 245 संबद्ध कॉलेजों वाली इस यूनिवर्सिटी में पढ़ने की ख्वाहिश पूर्वाचल के हर स्टूडेंट्स की होती है तो कैम्पस में ही रहकर अपना भविष्य संवारने की चाह में इसके हॉस्टल्स के लिए भी होड़ मची रहती है। वजह है, इन हॉस्टल्स में रहने वाले स्टूडेंट्स का इतिहास जिनमें कई आज आईएएस, पीसीएस अधिकारी, टीचर्स आदि हैं। दैनिक जागरण- आई नेक्स्ट ने इन्हीं हॉस्टल्स की हकीकत जानने की कोशिश की तो रहने वाले स्टूडेंट्स बोल पड़े कि हम तो बता-बताकर थक गए हैं। अब आप हमसे न पूछिए, खुद हालत देख लीजिए। सोमवार को अपने पड़ताल अभियान की पहली कड़ी में हम बता रहे हैं 50 साल पुराने एनसी हॉस्टल के बारे में।

-----------------

- नाथ चंद्रावत हॉस्टल में मेस नहीं, स्टूडेंट्स खुद बनाते हैं खाना

- स्टूडेंट्स बोले, फीस लेते पूरी लेकिन सुविधाएं देते हैं अधूरी

GORAKHPUR: डीडीयूजीयू का नाथ चंद्रावत (एनसी) हॉस्टल। दैनिक जागरण- आई नेक्स्ट रिपोर्टर सोमवार को इस हॉस्टल में पहुंचा तो हॉल में फर्श पर बैठे कुछ स्टूडेंट्स टीवी पर मूवी देखते नजर आए। फ्लैश चमकते ही पीछे मुड़े और यूं देखा, जैसे पूछना चाह रहे हों कि क्या बात है? रिपोर्टर ने हॉस्टल में मिल रही सुविधा-असुविधा के बारे में सवाल किया तो एक-दूसरे को यूं देखा जैसे कि कोई अजूबा सवाल हो गया हो उनसे। चंद सेकेंड की चुप्पी के बाद एक स्टूडेंट ने कहा कि यहां की हालत देखिए ना और खुद सोच लीजिए, हॉस्टल का हाल हमसे क्या पूछ रहे हैं? हर बार कोई न कोई प्रॉब्लम पूछने आता है लेकिन हालत नहीं बदली। हॉस्टल के वॉर्डेन भले ही बदल जाएं लेकिन यहां के हालात नहीं बदलते।

15 साल से बंद है मेस

कुछ देर बार हॉस्टलर्स जब खुले तो रिपोर्टर के सामने जैसे शिकायतों का गट्ठर ही खोल दिया। बात मेस से शुरू हुई। हॉस्टलर्स ने बताया कि हॉस्टल एलॉटमेंट के समय फीस तो पूरी ली गई लेकिन सुविधाएं अधूरी ही मिलीं। 15 साल से मेस बंद है, खुद ही खाना बनाना पड़ता है। मेस बंद क्यों है, जब इस पर सीनियर क्लर्क से बात की गई तो बताया कि तत्कालीन वीसी प्रो। राधेमोहन मिश्रा के कार्यकाल में मेस शुरू हुआ था। तीन साल तक संचालन हुआ लेकिन फिर बंद हो गया। तब मेस का चार्ज 1500 रुपए मंथली था लेकिन समय पर भुगतान न होने के कारण मेस बंद हो गया।

वाई-फाई है कि कबूतर का घोसला?

दो साल पहले एनसी हॉस्टल में वाई-फाई की सुविधा देने का दावा हुआ। हॉस्टल के सभी तरफ वायरिंग का काम कंप्लीट हो गया, वाई-फाई बॉक्स भी लग गया लेकिन आज तक चालू नहीं हो पाया। वाई-फाई बॉक्स के पास ही कुछ कबूतर नजर आए तो स्टूडेंट्स ने बताया कि यहीं पर कबूतरों ने अपना घोसला बना लिया है। एक ने मजाकिया लहजे में कहा कि यूनिवर्सिटी ने ऐसी वाई-फाई दी है कि उसे हम लोग यूज नहीं कर सकते इसलिए कबूतर ही इसके जरिए चैटिंग कर रहे हैं। बस क्या था, ऐसा सुनते ही समस्याओं के जिक्र से बोझिल हो रहे माहौल में सबके ठहाके गूंज गए।

गंदगी का अंबार, डस्टबिन तक नहीं

हॉस्टल में गंदगी ही गंदगी नजर आई। बाथरूम देखकर लग रहा था जैसे कभी सफाई ही नहीं होती। स्टूडेंट्स ने बताया कि न तो बाथरूम की सफाई होती है और न ही इसमें लगे नल से प्रॉपर पानी ही आता है। इस कारण खुले मैदान में नहाने और बर्तन धुलने के लिए मजबूर हैं। हॉस्टल में कहीं भी डस्टबिन तक नहीं है। इससे बचा खाना व कूड़ा स्टूडेंट्स हॉस्टल के पीछे ही फेंक दिए हैं। नीचे के कमरे की खिड़की पर चावल वगैरह पसरा पड़ा था। यह बताने के लिए काफी था कि यहां सफाई को लेकर जिम्मेदार कितने सुस्त हैं।

-----------

बॉक्स

नाथ चन्द्रावत हॉस्टल : एक नजर

वार्डेन: प्रो। शिवाकांत सिंह

सुप्रिटेंडेंट: डॉ। राकेश तिवारी

153 टोटल कमरे

12 जर्जर कमरे

4 कर्मचारी

8 सफाई कर्मचारी

3 आरओ

3 सिक्योरिटी गार्ड

15 साल से बंद है मेस

--------------

बॉक्स

35 टीचर दिए इस हॉस्टल ने

एनसी हॉस्टल की स्थापना 6 मई 1956 को हुई थी। गोरखपुर जिले के जगदीशपुर निवासी ठाकुर नाथ वक्स सिंह व उनकी धर्मपत्नी चंद्रावती द्वारा इस हॉस्टल का शिलान्यास किया गया था। दोनों के संयुक्त नाम के रूप में इसका नाम पड़ा- नाथ चन्द्रावत हॉस्टल। स्टूडेंट्स बताते हैं कि अभी तक इस हॉस्टल से करीब 35 स्टूडेंट्स टीचिंग में अपना कॅरियर बना चुके हैं। वहीं दर्जनभर से अधिक स्टूडेंट्स सिविल सेवा में जा चुके हैं। पूर्व वॉर्डेन प्रो। केएन सिंह के कार्यकाल में समय-समय पर हॉस्टलर्स के लिए विभिन्न प्रतियोगी कार्यक्रम ऑर्गनाइज कराए जाते थे जिसे हॉस्टलर्स आज भी याद करते हैं।

-----------

कॉलिंग

हॉस्टल में अक्सर पानी की समस्या रहती है। बर्तन धोने में दिक्कत होती है। कई बार वॉर्डेन से शिकायत की जा चुकी है लेकिन कोई समाधान नहीं निकलता।

- अरमान अली, स्टूडेंट, बीएससी पार्ट वन

हॉस्टल एलाटमेंट के दौरान 3300 रुपए लिए गए थे लेकिन सुविधा बस नाम की है। मेस तो आज तक चलता हुआ देखा ही नहीं। बाथरूम में अक्सर पानी नहीं आने के कारण खुले में ही बर्तन धोना पड़ता है।

- विशाल शर्मा, स्टूडेंट, बीए पार्ट वन

हॉस्टल में सफाई के लिए सफाई कर्मियों की तैनाती की गई है, लेकिन किसी भी कमरे में सफाईकर्मी झाड़ू नहीं लगाते हैं। बाथरूम और टॉयलेट में एसिड या फिनाइल के छिड़काव तो गुजरे जमाने की बात होगी।

- अमन गुप्ता, स्टूडेंट, बीए फ‌र्स्ट इयर

केवल कहने के लिए यूनिवर्सिटी का हॉस्टल है। वार्डेन या सुप्रिटेंडेंट का पता ही नहीं चलता है। पानी, सफाई की बेहद आवश्यकता है। नहाने के लिए बाथरूम में व्यवस्था है, लेकिन गंदगी इतनी रहती है कि जाने का मन नहीं करता है।

सत्येंद्र यादव, स्टूडेंट, बीए फ‌र्स्ट इयर

-----------

वर्जन

हॉस्टलर्स की समस्या के समाधान के लिए प्रयास जारी है। वॉर्डेन की जिम्मेदारी अभी नई मिली है। धीरे-धीरे सभी समस्याओं को दूर कर दिया जाएगा।

प्रो। एसके सिंह, वार्डेन, एनसी हॉस्टल, डीडीयूजीयू