-12 साल से कोच की बहाली नहीं, फुटबॉल खेलना सीख नहीं पा रही नई पीढ़ी

-एसोसिएशन के भरोसे ट्रेनिंग की व्यवस्था तय करना कठिन

PATNA : फुटबॉल से कई खिलाडि़यों ने शोहरत की बुलंदियों को छूआ है। लेकिन बिहार में इसकी एक अलग ही दास्तां है। यहां खेल जहां स्कूल के प्ले ग्राउंड तक सिमटता जा रहा है तो दूसरी ओर इस खेल के प्रति रूझान रखने वाले के सामने ट्रेनिंग की समस्या है। बिहार में प्रोफेशनल कोच की कमी है। जब कभी बड़ा फुटबॉल टूर्नामेंट होता भी है तो इसके खिलाड़ी दूसरे राज्यों में जाकर कोच करते हैं और यहां खेल में हिस्सा लेते हैं। कई बार टूर्नामेंट की टीम बाहर से ही बनकर आती है। ऐसे में सवाल लाजमी है कि नई पीढ़ी में फुटबॉल की खुमारी चढ़े तो चढ़े कैसे? पेश है रिपोर्ट।

समय के साथ सब बदल गया

70- 80 का दशक पटना में फुटबॉल का कभी स्वर्णिम काल हुआ करता था जब गांधी मैदान, कॉलोनी के बीच के खुले मैदान, मिलर स्कूल का ग्राउंड, गर्दनीबाग स्टेडियम और प्रशिक्षित कोच का एक दल नई प्रतिभा को एक निखारने के लिए उपल?ध रहता था। अब गांधी मैदान सालो भर मेला के लिए या किसी सरकारी कार्यक्रम के लिए बुक रहता है। यहां खेलने या अभ्यास करने का स्कोप ही खत्म हो गया है। यह बताते हुए पटना फुटबॉल एसोसिएशन के सेक्रेटरी ज्वाला प्रसाद सिन्हा का कहना है कि कोच की बात से पहले तो ग्राउंड की समस्या है। इस बारे में कोई ध्यान ही नहीं देता है। पटना फुटबॉल एसोसिएशन के सेक्रेटरी ज्वाला प्रसाद सिन्हा ने बताया कि पटना फुटबॉल एकेडमी और कुछ हद तक राज मिल्क कोचिंग कराता है। राज मिल्क सिर्फ अपनी टीम के लिए कोच कराता है। जबकि पटना फुटबॉल एकेडमी से खिलाड़ी जुड़ना चाहते हैं लेकिन ग्राउंड नहीं मिलने के कारण ट्रेनिंग नहीं हो पाता है। जहां तक प्रोफेशनल कोच का प्रश्न है यहां लाखों की आबादी के बीच एनआइएस कोच नहीं है।

राज्य सरकार को मतलब ही नहीं

पटना फुटबॉल एसोसिएशन और बिहार फुटबॉल एसोसिएशन के मेंबर्स का कहना है कि कोच का न होना एक तकनीकी समस्या है, यह व्यवस्था स्थायी तौर पर होना चाहिए। लेकिन राज्य सरकार ने कभी भी इसे गंभीरता से नहीं लिया है। कभी साई का कोचिंग होता था लेकिन अब सब बंद है। वहीं, कोच की बहाली भी एक लंबे अर्से से बंद है। यहां फुटबॉल सहित अन्य कई खेल होते हैं लेकिन सभी किसी न किसी संस्था की ओर से होते हैं। समस्या तकनीकी एक्सपर्ट की आती है। फुटबॉल के पुराने खिलाड़ी एवं समीक्षकों का कहना है कि आज के समय में फुटबॉल टूर्नामेंट किस प्रकार से हो रहा है, यह सवालों के घेरे में है। अचानक से टीम तैयार हो जाती है। मैच के दूसरे- तीसरे दिन तक सेमीफाइनल आदि की घोषणा कर दी जाती है।

तो खत्म हो जाएगा फुटबॉल

पटना फुटबॉल एसोसिएशन के सेक्रेटरी ज्वाला प्रसाद सिन्हा इस खेल के भविष्य को लेकर बेहद सशंकित हैं। इनका कहना है कि यदि इसी प्रकार से फुटबॉल उपेक्षित रहा तो एक दिन यह खत्म हो जाएगा। अकेले एसोसिएशन इसे आगे नहीं ले जा सकता है। बिहार फुटबॉल एसोसिएशन के सेक्रेटरी मो। इम्तियाज हुसैन का कहना है कि पटना में खिलाडि़यों की कमी नहीं है। अच्छे खिलाड़ी तैयार हो सकते हैं बशर्ते कि राजधानी पटना में एकलव्य कोचिंग सेंटर खोला जाए। इसके लिए मनोज कमलिया स्टेडियम बेस्ट हो सकता है। खिलाड़ी रहेंगे और वहीं ट्रेंनिंग भी लेंगे, इससे बेहतर क्या हो सकता है।

कोच की बहाली कम से कम क्ख् सालों से बंद है। जबकि बिहार फुटबॉल एसोसिएशन इंडियन फुटबॉल फेडरेशन के साथ मिलकर कोचिंग करा रहा है और रेफरी ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाया जाता है।

-मो। इम्तियाज हुसैन, सेक्रेटरी बिहार फुटबॉल एसोसिएशन