ऐसा है मामला
चिदंबरम ने यह भी स्वीकार किया है कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से देश में इमरजेंसी (आपातकाल) लगाने के फैसले को एक गलती करार दिया है। पूर्व वित्त मंत्री शनिवार को यहां एक साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान देश में बढ़ती असहिष्णुता पर अपने विचार रख रहे थे।

कांग्रेस के लिए खड़ी हो सकती है मुसीबत
चिदंबरम, राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में गृह राज्य मंत्री (1986-89) थे। अक्टूबर 1988 में 'सेटेनिक वर्सेज' पर प्रतिबंध लगाया गया था। इस किताब पर प्रतिबंध लगाने वाला भारत पहला देश था। चिदंबरम का यह बयान कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है। जाहिर है, ऐसे वक्त जब मोदी सरकार पर असहिष्णुता को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए विरोधी दल राजग सरकार पर लगातार हमलावर हैं, इस स्थिति में चिदंबरम का यह बयान कांग्रेस को बैकफुट पर ला सकता है।

आपातकाल के सवाल पर ऐसा बोले चिदंबरम
आपातकाल संबंधी सवाल पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इंदिरा गांधी ने 1980 में खुद यह स्वीकार किया था कि इमरजेंसी लगाकर उन्होंने गलत किया है, अब अगर वह फिर से सत्ता में आईं तो आपातकाल कभी नहीं लगाएंगी। जनता ने उन पर विश्वास किया और इस प्रकार सत्ता में उनकी फिर वापसी हुई। इसके आगे असहिष्णुता के मुद्दे पर वह बोले कि उनके लिए यह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले भी असहिष्णुता देखी है। ये भी सच है कि हाल के दिनों में असहिष्णुता बढ़ी है।

ऐसे नहीं हो सकता उदारवादी समाज का निर्माण  
उनके अनुसार जो भी व्यक्ति स्वाधीनता और लोकतंत्र में विश्वास करता है, उसे देश में बढ़ रही असहिष्णुता के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहिए। असमानता को बढ़ाने वाले प्रत्येक विचार के पूर्णतया खत्म होने तक आप आधुनिक उदारवादी समाज का निर्माण नहीं कर सकते।

खाप पंचायतों पर बोले चिदंबरम
चिदंबरम ने ये भी कहा कि आज के समय खाप पंचायतें अधिक प्रभावी व खुल्लम-खुल्ला 'कंगारू जस्टिस' (न्याय के मानकों की परवाह किए बिना निर्णय देना) दे रही हैं। बहुत से प्रतिबंध लग रहे हैं। जींस पहनने से लेकर लोगों के खाने-पीने, आने-जाने के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे है। एनजीओ पर प्रतिबंध थोपे जा रहे हैं।

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