-ह्यूमन ट्रैफिकिंग के शिकार 57 बच्चों को कराया गया मुक्त

-बंगाल में काम के बहाने लड़के-लड़कियों को बेच दिया गया था

-सीडब्ल्यूसी, झारखंड व बंगाल पुलिस ने कई जिलों से किया रेस्क्यू

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RANCHI(22 Sep): शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना की इंतहा और पेट भरने के लिए ख्ब् घंटे में सिर्फ दो रोटियां। यह कहना है काम के नाम पर मेट्रो सिटी कोलकाता में बेच दिए गए झारखंड के भ्7 बच्चों का, जिन्हें पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों से ऑपरेशन मुस्कान के तहत मुक्त कराया गया और सीडब्ल्यूसी की टीम शुक्रवार को लेकर रांची पहुंची। रांची स्टेशन पर इन बच्चों की अगवानी बाल संरक्षण आयोग की टीम के अलावा आरपीएफ, जीआरपी, सीडब्ल्यूसी व स्थानीय स्वयंसेवी संस्था के प्रतिनिधि मौजूद थे। कई महीने पहले इन्हें बहला-फुसला कर झारखंड के अलग-अलग जिलों से मानव तस्कर बंगाल ले गए थे। इसके एवज में इन लड़के-लड़कियों के पेरेंट्स को कुछ पैसे भी दिए गए थे।

खौफ के साथ लौटने की खुशी भी

छोटे-छोटे बैग में अपने कपड़ों को बिना समेटे रख घर पहुंचने की लालसा में बंगाल से आए सभी भ्7 बच्चों के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। मानो वो अपने राज्य आकर सुकून महसूस कर रहे हों। ये लडकियां पश्चिम बंगाल के कई इलाके से रेस्क्यू कर लाई गई हैं। झारखंड के अलग-अलग जिलों के इन नबालिग बच्चो को कभी पैसे के नाम पर तो कभी गरीबी के नाम पर तो कभी काम के नाम पर कोलकाता जैसे मेट्रो सिटी में बेच दिया गया था। जहां इनके साथ न सिर्फ शारीरिक शोषण, बल्कि मानसिक शोषण भी किया जाता रहा। अपने चेहरे पर पुरानी यादों का खौफ लिए लौटे इन बच्चों को सीडब्ल्यूसी ने बंगाल पुलिस और झारखण्ड पुलिस के सहयोग से रेस्क्यू किया है।

घर का पता तक याद नहीं

अपने राज्य लौटे कई लड़के -लड़कियों को अपने घर का पता भी याद नहीं है। फिर भी कुछ धुंधली यादों के सहारे ये अपने घर की तलाश कर रहे हैं। वहीं, कुछ लड़कियों ने बताया कि उनके साथ बंगाल में शारीरिक और मानसिक शोषण होता रहा। मानव तस्करी के जाल में फंसे इन बच्चों को बचाने वाला कोई नहीं था। एक एनजीओ की सूचना पर झारखंड पुलिस ने बंगाल पुलिस और सीडब्ल्यूसी के सहयोग से इन्हे गुलामी से मुक्त करवाया।

कड़ाई के बावजूद जारी है मानव तस्करी

झारखंड में हर साल सैकडों बच्चों को कोलकाता, दिल्ली जैसे बडे़ शहरों से बचा कर लाया जाता है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर ये बच्चे वहां तक पहुंचते कैसे हैं? उनको जाने से पहले ही क्यों नहीं रोका जाता, अगर लोकल पुलिस सजग रहती तो शायद यह नहीं होता।