-बड़े हादसे की जानकारी के बाद भी इमरजेंसी नहीं पहुंचे 'आला'

-उपेक्षा से खिन्न है मेडिकल प्रशासन, अफसरों ने दी प्रतिक्रिया

Meerut: ऐसा शायद मेरठ में ही होता है, एक नेता की टांग टूट जाए तो आला अफसर दवा-पट्टी के लिए डाक्टरों पर चीखने लगते हैं और खड़ौली में सड़क हादसे में छह की मौत पर सब मौन रहते हैं। ऐसा ही एक बाकया शुक्रवार को देखने को मिला। मेडिकल कॉलेज में दो दर्जन छात्राएं जिंदगी की जंग लड़ रही थीं तो वहीं जिम्मेदार आंसू गैस का असर कम होने का इंतजार कर रहे थे। 'बडे हादसे' के बावजूद एक भी आला अफसर इमरजेंसी नहीं पहुंचा।

चिकित्सकों में झलक रही थी पीड़ा

जिम्मेदार पेशे से जुड़े चिकित्सक बेशक अपनी नाराजगी को दबाकर हताहत छात्राओं के इलाज में लगे थे किंतु पुलिस-प्रशासन की उपेक्षित रवैये से सब नाराज थे। 'बडे हादसे' के बाद भी इमरजेंसी में लॉ एंड आर्डर को नियंत्रित करने के लिए महज सीओ सिविल लाइन और एसओ सिरोही की पहुंचे। कॉलेज का हर अधिकारी और कर्मचारी एक तो पुलिस की लापरवाही से आक्रोशित था ऊपर से आला अफसरों की नजरअंदाजी ने 'आग में घी' का काम किया।

अफसरों ने दी सफाई

अफसरों की लापरवाही पर आई नेक्स्ट ने कुछ आला अधिकारियों से सवाल किया तो उनके जबाव कुछ यूं थे

यह घटना एक बड़ी लापरवाही का नतीजा है। पुलिस के बड़े अधिकारियों से बात चल रही है। इस घटना की निष्पक्ष जांच कराई जाएगी। जो भी दोषी पाया जाएगा उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

-पंकज यादव, डीएम, मेरठ

मॉक ड्रिल पुलिस नियमावली के आधार पर किया जाता है, लेकिन ग‌र्ल्स हॉस्टल के पास थाने की पुलिस को मॉक ड्रिल नहीं करना चाहिए था। पूरे प्रकरण की जांच एसपी सिटी को सौंपी गई है। एसओ समेत जो भी दोषी होंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

-दिनेश चंद्र दूबे, एसएसपी

प्रधानमंत्री के कार्यक्रम से लौट रहा हूं। अभी मेरठ से सहारनपुर के रास्ते में हूं। पूरे मामले की ठीक से जानकारी नहीं है। कुछ कहना जल्दबाजी होगा, मेरठ पहुंचकर स्थिति की जानकारी लूंगा।

-रमित शर्मा, डीआईजी मेरठ रेंज

नोट: इनमें से एक भी अधिकारी मौके पर (इमरजेंसी) नहीं पहुंचा। कमिश्नर आलोक सिन्हा ने एसएमएस से पारिवारिक व्यवस्तता का जिक्र किया तो वहीं आईजी आलोक शर्मा का सीयूजी नंबर स्विच ऑफ था। सीएमओ डॉ। रमेश चंद्रा से भी बात नहीं हो सकी।