RANCHI : विधानसभा के मॉनसून सेशन के तीसरे दिन भी छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (एसपीटी) मामले पर हंगामे का दौर जारी रहा। गुरुवार को सदन की कार्यवाही शुरू ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। सदन में मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने भले ही सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक वापस ले लिया हो लेकिन यह राज्य हित में था। इस मुद्दे पर उन्होंने विपक्षी दलों को कठघरे में खड़ा किया। जेएमएम पर निशाना साधरते हुए उन्होंने कहा, सीएनटी संशोधन पर कुछ राष्ट्रविरोधी शक्तियों ने भ्रम फैलाया है। मुख्यमंत्री के इस बयान पर आपत्ति जताते हुए जेएमएम समेत विपक्षियों ने जमकर नारेबाजी की, जिस वजह से सदन की कार्यवाही पर असर पड़ा।

सीएनटी पर स्थिति स्पष्ट करें

सदन की कार्यवाही शुरू होते ही नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने मांग उठाई कि सीएनटी विधेयक वापसी पर सरकार सदन में स्थिति स्पष्ट करे। उन्होंने कहा कि विधेयक वापस लेने की बात सदन के बाद संसदीय कार्यमंत्री सरयू राय ने कही है। इसे लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोंकझोंक शुरू हुई तो मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मोर्चा संभाला। उन्होंने कहा कि दो-तीन सत्र से सदन बाधित है। अबतक जो हुआ उससे लोकतंत्र कलंकित हुआ है।

आज भी अडिग है सरकार

मुख्यमंत्री ने कहा कि सीएनटी-एसपीटी में जो संशोधन किए गए थे वे राज्य के हित में थे। सरकार इसपर आज भी अडिग है। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि किसी उद्योगपति को जमीन देने की बात नहीं की। 1996 में जब बिहार सरकार में जेएमएम शामिल था तब आदिवासियों की जमीन उद्योग के लिए देने का प्रस्ताव पारित किया गया था। इसपर विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन समेत अन्य नेताओं ने विरोध किया। मुख्यमंत्री के तीखे बोल से विपक्षी खेमा तिलमिला उठा। तुरंत कांग्रेस के सुखदेव भगत ने आपत्ति की। साथ में विधायक डा। इरफान अंसारी भी गुस्से में कुछ कहते देखे गए। । हंगामा बढ़ता देख स्पीकर ने सदन की कार्यवाही दोपहर 12.30 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।

विधेयक मर गया तो फिर हायतौबा क्यों? ॉ

सदन की कार्यवाही दोबारा आरंभ होने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का विधेयक वापस किया। बिल को अगर फिर से सदन में लाते तो उसपर चर्चा होती। राज्यपाल ने पद की गरिमा के अनुरूप उसे वापस लौटाया था। ऐसा कंफ्यूजन पैदा किए जाने के कारण हुआ। इसे टीएसी में भी रखा गया। जो सुझाव आए वे उसी आलोक में आए। जब विधेयक फिर से सदन में आया ही नहीं तो मर गया यानी खत्म हो गया। अब तो इसपर हायतौबा की जरूरत ही नहीं है।