मोह माया से जाना है दूर

चार साल तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे मगर गुरुवार से दोनों के लिए यह सांसारिक रिश्ता हमेशा के लिए टूट जाएगा। इस कहानी में तीसरा किरदार भी है। जुड़वा भाई, जो भाई-भाभी की तरह खुद भी संन्यासी बनेगा, लेकिन तीनों के लिए अब आपसी रिश्ता बेमानी होने वाला है। गुरुवार को तीनों खुद का पिंडदान करेंगे और मोह-माया से परे एक नए जीवन की शुरुआत होगी।

जमींदार है परीवार

यह कहानी हरियाणा के ऐसे जमींदार परिवार की है जिसके तीन सदस्य जीवन भर संन्यासी के रूप में रहेंगे। उनके लिए सांसारिक रिश्ते-नाते कोई मायने नहीं रखेंगे। इस कहानी का रोचक पहलू ये है कि पति-पत्नी दोनों अपनी मर्जी से संन्यासी बन रहे हैं। किसी ने भी एक-दूसरे को ऐसा करने के लिए प्रेरित नहीं किया।

उच्चशिक्षित हैं पति-पत्नी

अंग्रेजी में एमए तक शिक्षा पा चुकीं मिनाक्षी बताती हैं कि चार साल पहले मैंने गुरुदेवसिंह से शादी ही इस शर्त पर की थी कि विवाह के बाद हम संन्यास लेंगे, इसलिए हमने बच्चे भी पैदा नहीं किए। कई दिनों से हम नारायण पर्वत (बद्रीनाथ) में तपस्या कर रहे थे। सिंहस्थ कुंभ मेले में महामंडलेश्वर यतिन्द्रानंदगिरी से संन्यास दीक्षा लेने आए हैं। गुरुवार को दीक्षा पूरी होते ही हम मोह माया के बंधन से मुक्त हो जाएंगे। भाई और भाभी के साथ देवर सुखदेव भी संन्यासी बन जाएंगे।

शुरू से था आध्यात्म में रूचि

सुखदेव कहते हैं कि हम दोनों जुड़वा भाई का पहले से ही आध्यात्म की तरफ झुकाव रहा। हमारे परिवार में संतों का आना-जाना रहता था। हम दोनो भाइयों को बचपन से सांसारिक वस्तुओं को मोह नहीं रहा। यतिन्द्रानंद जी बताते हैं कि संन्यास लेने के बाद तीनों का नामकरण भी होगा। अब गुरुदेव, सुखदेव, मिनाक्षी का नया नाम राम लक्ष्मण और सीता होगा। संन्यासी जीवन शुरू होने के बाद इनका पुरानी जिंदगी से कोई वास्ता नहीं रहेगा। संन्यास दीक्षा इनके लिए नया जीवन है। अब ये दोनों पति-पत्नी के रूप में भी नहीं रह पाएंगे।

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