-जहां नारी को शक्ति मान उसकी पूजा की जाती है, वहीं वो असहाय है

-21वीं सदी में भी हमारा समाज बदल नहीं पाया है

-बेटा-बेटी में भेदभाव, भ्रूण हत्या, दहेज जैसी कुरीतियां आज भी समाज को जकड़े हुए है

JAMSHEDPUR : यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता, जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं। यह विचार भारतीय संस्कृति का अंग है। आज देशभर में धूमधाम से दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाया जा रहा है। कहीं भव्य पूजा पंडालो में मां की मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना की जा रही है, कहीं सुबह-शाम मां की आरती हो रही है। यह पर्व भारतीय संस्कृति के उस पहलू का दर्शाता है जहां नारी को शक्ति मान उसकी पूजा की जाती है, लेकिन विडंबना है कि जिस देश में नारी को शक्ति माना जाता है, वहीं आज वो असहाय है।

बदलाव की जरूरत

रितू सिंह ने समाज की सोच में बदलाव की जरूरत बताते हुए कहा की ख्क्वीं सदी में भी हमारा समाज बदल नहीं पाया है। बेटा-बेटी में भेदभाव, भ्रूण हत्या, दहेज जैसी कुरीतियां आज भी समाज को जकड़े हुए है। उन्होंने कहा कि अगर हम विकास चाहते हैं, तो इस सोच को खत्म कर आगे बढ़ना होगा। डिस्कशन के दौरान अलका तिवारी ने कहा कि लड़की को अच्छी शिक्षा देकर उसे आत्मनिर्भर बनाकर हम ना सिर्फ उसे उसका अधिकार देंगे, बल्कि अच्छे समाज की नींव भी रखेंगे।

कहां है समानता

महिला सशक्तिकरण, समान अवसर की बातें होती हैं, लेकिन यह सिर्फ बातें ही बनकर रह जाती हैं। हकीकत कुछ और नजर आता है। यह कहना था रीता सिंह का। उन्होंने कहा कि बड़े शहरों में कुछ सौभाग्यशाली लड़कियों को अच्छी शिक्षा, अच्छा कॅरियर मिल जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि सभी को ऐसा ही सौभाग्य नसीब है। आज भी लड़कियों को पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ती है। अच्छे कॅरियर की बात तो दूर कई लड़कियां तो स्कूल का मुंह भी नहीं देख पातीं। रंजू सिन्हा ने कहा की एक महिला पूरे परिवार को संभालती है, लेकिन कई बार उसकी सेहत देखने वाला कोई नहीं होता। महिलाएं एनीमिया, कुपोषण की शिकार हैं, लेकिन इसे कोई बड़ी समस्या नहीं समझी जाती।

सिर्फ बातें होती हैं

टीवी चैनलों पर होने वाले डिस्कशन और न्यूज पेपर्स में छपने वाले आर्टिकल्स से लेकर सभी मंचों पर महिला सुरक्षा की बातें होती हैं। महिला सुरक्षा के लिए पहले से भी कई कानून हैं और हाल में भी बने हैं, पर इन सबके बावजूद कहां है महिला सुरक्षा? डिस्कशन के दौरान सोनारी की रहने वाली वर्षा खेर द्वारा उठाया गया यह सवाल अपने में कई सवालों को समेटे है। क्या महिला सुरक्षा बस एक मुद्दा बनकर रह गया है, क्या कानून सिर्फ किताबों में बने लफ्ज बनकर रह गए हैं? अलका तिवारी ने कहा कि आजादी के इतने सालों बाद भी वो माहौल नहीं बन पाया है, जहां महिलाएं सुरक्षित महसूस करते हुए आजादी से घरों से निकल सकें।

समाज से बेटा-बेटी के भेदभाव को मिटाना जरूरी है। अच्छी शिक्षा, समान अवसर, अच्छा स्वास्थ्य महिलाओं का भी हक है। लड़कियों, महिलाओं को उनका अधिकार मिले इसके लिए सार्थक पहल होनी चाहिए।

रितू सिंह

अच्छी शिक्षा तो सबका हक होता है, पर आज भी सभी लड़कियों को यह अधिकार नहीं मिल पाया है। लड़कियां शिक्षित होंगी तभी तो आत्मनिर्भर बनेंगी।

-रंजू सिन्हा

महिला सुरक्षा को सिर्फ एक मुद्दा बनाकर सिर्फ बातें नहीं होनी चाहिए। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस पहल होनी चाहिए। सिर्फ कानून बनाने के बजाय उसका सख्ती से पालन करना जरूरी है। एक ऐसा माहौल बनाना चाहिए जहां महिला खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।

-अलका तिवारी

आज भी लड़कियां खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। उनके मन में एक डर लगा रहता है। इसे निकालने की जरूरत है। यह डर तभी निकलेगा जब महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों को सही तरीके से पालन हो और महिलाएं खुद मजबूत बने।

-वर्षा खेर

महिला सशक्तिकरण की बातें होती हैं, लेकिन ये सिर्फ बातों तक ही सीमित दिखाई देता है। अगर महिलाओं को सशक्त करना है, तो जन्म से ही लड़कियों में दृढ़ इच्छाशक्ति डेवलप करनी होगी।

-रीता सिंह